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ऑनर किलिंग

👤 | Updated on:28 July 2010 1:47 AM GMT
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`मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की।' ऑनर किलिंग के मामले में तो कुछ ऐसा ही हो रहा लगता है। लगभग प्रतिदिन ही समाचार पत्रों तथा टीवी समाचार चैनलों में कहीं न कहीं ऑनर किलिंग का कोई न कोई समाचार आ ही जाता है। समझ नहीं आता कि इतनी घटनाओं के घट जाने के बाद भी लोग सबक क्यों नहीं लेना चाहते? यदि आपके बेटा-बेटी व्यस्क हैं और वे अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से जीना चाहते हैं तो उनको आजादी देने में क्या हर्ज है। यदि सगोत्र में शादी आपको मंजूर नहीं और सचमुच सदियों पुरानी परम्परा से हटना भी कोई आसान नहीं, लेकिन यदि कोई इस रिश्ते को बर्दाश्त नहीं कर सकता तो उनके लिए सीधा-सा आसान-सा उपाय यही है कि उन नवविवाहित जोड़ों को उस गांव से कहीं और जाकर बसने और अपनी जिन्दगी बसर करने की सलाह दें। उनको क्रोध व आवेश में मौत के घाट उतारने के बाद खुद खून करने वालों की जिन्दगी भी तो कोर्ट-कचहरी के चक्करों में बर्बाद हो जाती है सो अलग। परिवार को जो आर्थिक परेशानियां झेलनी पड़ती हैं उसकी कोई सीमा नहीं।  दूसरे शब्दों में कहें तो सजा देने वालों का खुद का परिवार भी बर्बाद हो जाता है और ये बातें जब समझ में आती हैं तो तब तक पानी सिर से उपर जा चुका होता है और उस समय सिवाय पछताने के और कुछ हाथ नहीं लगता। वैसे यह एक सामाजिक समस्या है और जितनी जल्दी तथा प्रभारी तरीके से समाज इस समस्या से निपट सकता है उतना कानूनी व सरकारी तरीकों से नहीं निपटा जा सकता। इसलिए बेहतर है कि खाप पंचायतें स्वयं ही कोई ऐसा सर्वसम्मत व सबको मान्य तरीका निकालें जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। दूसरी तरफ सरकार को भी ऐसे अपराधों से निपटाने के लिए त्वरित अदालतों का गठन करना चाहिए और किसी भी हालत में ऐसे मामलों का निपटारा तीन माह में ही कर दिया जाना चाहिए। ऐसे जोड़ों को सुरक्षा देने के लिए भी पर्याफ्त कदम उठाए जाने चाहिए। -इन्द्र सिंह धिगान,  दिल्ली।  

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