रेलवे दुर्घटना
लीजिए और एक भयानक रेल दुर्घटना घट गई। यह दुर्घटना घटी सैंथिया बगाल में। इस भयानक हादसे में अब तक की खबरों के अनुसार 61 जानें जा चुकी हैं और सौ के लगभग लोग घायल हुए हैं। उनमें से भी कितने अपनी जानों से हाथ धो सकते हैं। कुछ नहीं कहा जा सकता। जब रेल दुर्घटना किसी तोड़फोड़ या आतंकरादी गतिविधि के कारण होती है तो समझा जा सकता है कि सरकार की लाचारी रही होगी हालांकि वहां भी जिम्मेदारी तो सरकार की ही बनती है कि वह सुरक्षा उपलब्ध कराए। लेकिन इस बार तो सीधे-सीधे मानवीय लापरवाही का मामला है। एक लाइन पर गाड़ी खड़ी है उसी पर दूसरी कैसे आ गई और यदि सिग्नल, एक मिनट के लिए मान भी लें कि खराब था तो भी इतनी बड़ी रेल क्या उस रेल के चालक को दिखाई नहीं दी और जो गति रेल की बताई जा ही है उससे तो यही लगता है कि कहीं दोनों ही चालक सो तो नहीं रहे थे। क्योंकि समय भी रात के लगभग एक दो बजे का था। कुछ भी हो कारण कोई भी हो लेकिन इस भूल ने कितने परिवार उजाड़ दिए। अब आप उनको मुआवजा दो या नौकरी लेकिन जो क्षति उन परिवारों की हो गई वह तो पीर नहीं हो सकती। माननीया रेल मंत्री ममता बनर्जी अब जरा लापरवाह लगती हैं। ऐसा लगता है क Gिन्हें निकट भविष्य में बंगाल में होने वाले चुनावों की ज्यादा चिन्ता है बनिस्बत रेलवे विभाग के। और जिस विभाग का मुखिया ही इतना लापरवाह हो जाएगा तो नीचे वालो तो और भी लापरवाही दिखाएंगे ही। उनके मंत्रित्वकाल में इतनी ज्यादा दुर्घटनाएं हो चुकी हैं कि यदि कोई गैरतमंद मंत्री होता तो बिना कहे ही इस्तीफा दे देता पर यहां तो ऐसी परम्परा ही नहीं है। यहां तो मुश्किल से मिली कुर्सी से चिपकना ज्यादा महत्वपूर्ण है बजाय उसे छोड़ने के। ममता जी को अब इस मंत्रालय के ऊपर रहम करना चाहिए और कोई और मंत्रालय संभालना चाहिए जहां उसके भट्ठा बैठाने की काफी गुंजाइश हो। यहां तो बहुत हो चुका। -इन्द्र सिंह धिगान, किंग्जवे कैम्प, दिल्ली।