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कश्मीर की आग

👤 | Updated on:5 Aug 2010 1:31 AM GMT
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सोपोर में हालात नियंत्रित किंतु चिंताजनक बने हुए है। वहां लोग हिंसात्मक पदर्शन पर उतारु थे। पुलिस ने आंसू गैस व लाठी चार्ज किया तथा मामले को शांत करने का पूरा पयास किया लेकिन खबर है कि पदर्शन के दौरान हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने भीड़ में से पुलिस पर फायरिंग आरंभ कर दी। मजबूरन पुलिस को भी फायरिंग करनी पड़ी। यदि भीड़ हिंसा पर उतर आए तो पुलिस के पास सिवाय बल पयोग के और क्या मार्ग रह जाता है। वहां के लोग एक बात का नही समझ रहे कि जो आतंकवादी अलगाववादी तथा कट्टरवादी ताकते उन्हें बरगला रही हैं वे अपना तो उल्लू सीधा कर रहे हैं पर साथ ही इस देश से देशद्रोह तो कर ही रहे हैं पर साथ ही जनता को भी बेवकूफ बना रहे हैं। एक लंबे अरसे से कश्मीर हमारा सिरदर्द बना हुआ है। यह एक ऐसी छिपकली साबित हो रहा है जिसे न खाते बन रहा है और न ही उगलते। बिल्कुल वही हालत हो रही है जो सांप के मुंह में छूछंदर के आने पर होती। वहां शाति के सारे उपाय असफल हो चुके हैं। हम पिछले 60 सालों से ज्यादा पीओके पीओके का राग गाते आ रहे हैं लेकिन न तो आज तक हम उस पीओके को पाक से छुड़ा ही सके हैं और न हम ही उसे छोड़ने को तैयार हैं। वहां आये दिन पदर्शन धरना हाय हत्या मची रहती है। कभी अलगाववादी उधम मचाते हैं तो कभी देशद्रोही ताकतें। पाक के झण्डे वहां ऐसे फहराये जाते हैं जैसे वह भारत का हिस्सा हो ही नहीं। सुरक्षाबल व पुलिस देखते रहते हैं। यदि कहीं भूल से गोली चल जाए और किसी को लग गई तो समझो और आफत। आजकल सोपोर में यही तो हो रहा है।                    इंद्र सिंह धिगान, किंग्जवे कैंप, दिल्ली।        

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