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सगोत्र विवाह का विरोध

👤 | Updated on:8 Aug 2010 12:08 AM GMT
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दिनांक 12 जुलाई 2010 के अंक में `कानून के लिए कानून' शीर्षक सम्पादकीय लेख में आपने विद्वतापूर्ण विचार व्यक्त किए हैं।  इस संबंध में हम इतना ही कहना चाहते हैं कि भारत में प्राचीनकाल से सगोत्र विवाह पर प्रतिबंध रहा है। एक ही गोत्र में विवाह तो भाई-बहन में विवाह जैसा हो गया। हिन्दू समाज में विवाह कोई निजी मामला नहीं है। यह उन 16 संस्कारों में एक है जो प्रत्येक हिन्दू के लिए अनिवार्य है।  हमारे यहां गोत्र के अतिरिक्त एक ही गांव में शादी करने पर भी प्रतबंध है। गांव के समान आयु के लड़के-लड़कियों, भाई-बहन, बड़े उम्र के लोग चाचा-चाची, ताऊ-ताई, आदि माने जाते हैं। वे चाहे किसी भी जाति या सप्रदाय के हों। हमारे लोग गीतों में सारे गीत कन्या के विवाह के उपरांत दूर गांव या शहर में जाने के सन्दर्भों से भरे हुए हैं। कहीं स्थानीय विवाह का संकेत तक नहीं है। इसकी अनदेखी करना जानबूझकर भारतीय धर्म और परम्परा का तिरस्कार करना है। पूरे विश्व में भारत एक ऐसा देश है जहां के संविधान में भारतीय परम्परा-संस्कृति के उपेक्षित किया गया है। उलटे यहां की संस्कृति का मजाक उड़ाकर  आधुनिक होने का दम्भ भरा जाता है। दुनिया के बाकी देशों में संविधान में उस देश के धार्मिक रीति-रिवाजों को स्थान प्राप्त है। भारत में चूंकि अंग्रेजों द्वारा बनाए गए संविधान को थोड़ा बहुत परिवर्तन करके लागू कर दिया गया। यहां के न्यायाधीशों, विदायकों, शासकों या प्रशासनिक अफसरों को हिन्दू धर्म की जानकारी रखनी अनिवार्य नहीं है। उलटे किसी न्यायाधीश, विधायक या सांसद से हिन्दू शास्त्राsं की चर्चा करते सुन लिया गया तो उस पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगा दिया जाता है। आपने ठीक लिखा कि `हिन्दू विवाह मुसलमानों या ईसाइयों की भांति कान्टैक्ट नहीं है।' हिन्दू विवाह में समझौते, संशोधनों एवं रियायतों की गुंजाइश हमेशा रहती है। कुछ लोग इसका नाजायज फायदा उठाते हैं। -रामाकांत सिंह शाहदरा, दिल्ली।  

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