जाट आंदोलन से देश की एकता व अखंडता को खतरा
कई दिनों से आरक्षण के नाम पर चल रहे जाट आंदोलन भ्रष्ट राष्ट्र विरोधी राजनीतिक दल के नेताओं द्वारा उकसाने से गंभीर रूप धारण कर लिया। इस आंदोलन को राज्य सरकार के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा रोकने, समाप्त करने या समस्या का शीघ्र समाधान करने का आश्वासन देने की बजाय आरक्षण की आग भयंकर रूप धारण कर समूचे हरियामा के सभी जिलों में फैल गई। जाट आंदोलन में असामाजिक तत्व जाटों के साथ मिलकर सार्वजनिक सम्पत्ति को लूटने, जलाने, मकानों, घरों, दुकानों, मॉल को लूटने व आगजनी करके तथा कई स्कूलों में तोड़फोड़, आग लगाकर नष्ट करने, राष्ट्रीय सम्पत्ति रेलवे पटरी को उखाड़ने, रेलवे स्टेशनों को जलाने, प]िलस स्टेशन पूंकने, रोडवेज की बसों को जलाने के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर रुके ट्रकों, कारों व अन्य वाहनों को आगजनी के हवाले करने के अलावा आम लोगों के साथ मारपीट कर हत्या करने, गोली मारने यहां तक कि हरियाणा के सोनीपत जिले के अंतर्गत मुरथल में अनेक महिलाओं के साथ घिनौनी हरकत यानि गैंगरेप की वारदातें प्रकाश में आई हैं। सोनीपत, झज्जर, रोहकर, भिवानी, गुड़गांव, कैथल, हिसार, बहादुरगढ़, सांपला तथा अन्य शहरों में भारी जानमाल की तबाही मचाकर पूरे देश को 15 अगस्त 1947 को देश विभाजन के दौरान भारत-पाक में हिंसा का तांडव याद दिला दिया। हरियाणा में सबसे ज्यादा जानमाल का नुकसान रोहतक जिले में हुआ। राष्ट्रीय सम्पत्ति की क्षति कम से कम 200 करोड़ रुपए से अधिक हुई है। हरियाणा में आंदोलनकारियों द्वारा हुए नुकसान की भरपायी कौन करेगा? राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा के अंतर्गत ऐसे पकड़े जाने वाले अपराधियों से नुकसान की भरपायी वसूली की जाए साथ ही उन्हें कठोर सश्रम बिना जमानत के कारावास की सजा भी दी जाए। आशा है कि केंद्रीय गृहमंत्री इस तरफ तत्काल विशेष ध्यान देंगे ताकि भविष्य में ऐसी घातक घटना या आंदोलन किसी अन्य राज्य में न हो सके। इस संबंध में देश के सभी राज्य सरकारों को आवश्यक दिशानिर्देश जारी हों। -देशबंधु, सोनीपत, (हरियाणा)। देशद्रोह अस्वीकार्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तब तक सही है जब तक राष्ट्र की अस्मिता, अखंडता और देश की प्रतिष्ठा पर कोई आंच न आए। आज तो हाल यह है कि कोई कश्मीर की आजादी की बात कर रहा है, कोई घर-घर में अफजल गुरु बनाने तो कोई भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी तो कोई देश का अन्न खाकर पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाकर राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करता है। यह सब इसलिए हो रहा है कि हमारी पूरी व्यवस्था लचर है। जिस न्यायालय को ऐसे गंभीर मुद्दों पर त्वरित निर्णय लेना चाहिए वह ऐसे केसों में कई दशक निर्णय देने में लगा देते हैं। उपरोक्त सभी बयान राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आते हैं। इनके लिए वही सजा होनी चाहिए जो एक राष्ट्रद्रोही की होनी चाहिए। हिन्दुस्तान ही दुनिया में एक ऐसा मुल्क है जहां सब चलता है। कोई नेता चारा खाता है उसे जेल मिलती है जो पूरी गाय खा जाता है उसको हज की सब्सिडी मिलती है। जेएनयू के बहादुर शेरो जो आवाज तुम्हारी आज भारत में निकल रही है एक बार इस्लामाबाद जाकर बलूचिस्तान की आजादी के नारे लगाकर देखो। अमेरिका में जाकर ओसामा बिन लादेन की बरसी मना कर देख या चीन, सऊदी में उस देश के खिलाफ कुछ बोलकर दिखाओ। इतने डंडे पड़ेंगे कि आगे की तीन पीढ़ियां जब भी पैदा होंगी पीठ पर प्लास्टर बांधकर ही पैदा होगी वहां तुम हिन्दुस्तान की तरह दंत्तेवाड़ा में 76 सीआरपीएफ के जवानों के शहीद होने पर जश्न नहीं मना पाओगे। -आनंद मोहन भटनागर, लखनऊ। आखिर लोगों को खुजली क्यों होती है अक्सर आप लोगों को खुजलाते देखते होंगे। खुद भी दिन में कई बार ऐसा करते होंगे। कभी आपने सोचा कि आखिर खुजली क्यों होती है? क्यों अपनी ही देह पर खरोंचने का मन होता है? इन सवालों के जवाब ढूंढें, उससे पहले आपको एक अमरीकी वैज्ञानिक जेआर ट्रेवर का किस्सा सुनाते हैं। अपने 40वें जन्मदिन पर ट्रेवर को अपने शरीर में खुजली महसूस हुई। अगले 40 साल उन्होंने इसकी वजह ढूंढ़ने, इसका इलाज करने में गुजार दिए। वह दुनिया से चली गईं, मगर खुजली का मर्ज नहीं गया। उन्होंने खुजलाते-खुजलाते अपनी चमड़ी तक उधेड़ ली। इसके टुकड़े बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को भेजे, ताकि बीमारी पता चल सके। यहां तक कि अपनी खुजली पर रिसर्च पेपर तक लिख डाला। उन्हें शक था कि खुजली की यह बीमारी एक घुन की वजह से हुई। एक डॉक्टर ने उन्हें मनोवैज्ञानिक के पास जाने की सलाह दी। मगर ट्रेवर ने उस वैज्ञानिक को भी गच्चा दे दिया। वह मर गईं, मगर बीमारी नहीं मरी। आज हमें पता है कि ट्रेवर को किसी घुन ने परेशान नहीं किया था। उन्हें दिमागी बीमारी थी। जिसका नाम है `डेलुजरी पैरासिटोसिस।' यह है जेहन में किसी बीमारी का वहम। कई बार ये आमतौर पर होने वाली खुजली से हो जाता है और ट्रेवर जैसे लोगों में मामला गंभीर हो जाता है। मगर मसला यह है कि खुजली से धरती का कमोबेश हर इंसान जूझता है। आज साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है। मगर मजे की बात यह है कि खुजली की जो परिभाषा आज चलन में है, वह आज से कोई साढ़े तीन सौ बरस पहले एक जर्मन डॉक्टर सैमुअल हैफेनरेफर ने तय की थी। उन्होंने लिखा था खुजली शरीर को महसूस होने वाली ऐसी सनसनी है, जो खुजलाने से शांत होती है। यही परिभाषा आज भी चलन में है। दिक्कत यह है कि इससे खुजली को लेकर हमारी समझ जरा भी बेहतर नहीं होती। वैज्ञानिक नजरिए से देखें, तो खुजली और दर्द में ज्यादा फर्प नहीं। असल में हमारी त्वचा में ऐसी नसों का जाल बिछा है जो हमारी रीढ़ की हड्डी और उसके जरिए दिमाग से जुड़ी हैं। इन्हें तंत्रिकाएं कहते हैं। इनका काम हमारे शरीर पर आने वाले खतरे से दिमाग को आगाह करना होता है। जब यह खतरा मामूली होता है, तो इससे खुजली का अहसास होता है। मगर खतरा बड़ा हुआ, तो दर्द महसूस होता है। वैसे कुछ वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि दर्द और खुजली का अहसास कराने वाली तंत्रिकाएं अलग-अलग होती हैं। खुजली हमें कई वजह से हो सकती है। मसलन, कीड़े के काटने से या चमड़ी सूखने से या एक्जीमा, सोराइसिस जैसी बीमारियों की वजह से। ब्रेन ट्यूमर, जिगर की बीमारी, एड्स जैसी बीमारियों से भी कई बार खुजली महसूस होती है। इसके अलावा कई बार खुजली मनोवैज्ञानिक कारणों से भी होती है। कुछ लोगों में खुजलाने की आदत, जुनून की हद तक होती है। खुजलाने की ऐसी सनक चढ़ती है कि वो कई बार अपना नुकसान तक कर बैठते हैं। खुजली महसूस होने पर लोग नाखूनों से खुजलाते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि इससे उस खास जगह की तंत्रिकाएं शांत होती हैं क्योंकि खुजली एक तरह से हल्का दर्द है। जिसे लोग सहलाकर, खुजलाकर दूर करते हैं। कई बार बर्प लगाने या सेंकने से भी खुजली दूर हो जाती है। मगर कई बार दर्द की दवा खाने से खुजली होने भी लगती है। वैसे दर्द और खुजली में बुनियादी फर्प यह है कि दर्द होने की सूरत में हम उस चीज से दूर भागते हैं, जिसकी वजह से दर्द होता है। जैसे जलती हुई मोमबत्ती के करीब हाथ ले जाएंगे तो तकलीफ होगी। इसीलिए हम वहां से फौरन हाथ हटा लेते हैं। मगर खुजली में इसके उलट होता है। जहां खुजली होती है, वहां हमारा हाथ तुरंत पहुंच जाता है। मतलब शरीर का वह हिस्सा हमारा ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए खुजली का अहसास कराता है। ये कुदरती देन है हमें। इससे हम कई खतरों से खुद को बचा लेते हैं। जैसे किसी कीड़े के काटने से खुजली होगी, तो हम उस जगह को देखेंगे, कीड़े को हटाएंगे ताकि वह फिर न काट ले। ऐसे ही कोई झाड़ या कांटा हाथ या पैर से छू जाए, तो फौरन खुजली महसूस होती है। हम उस कांटे से बचने का तरीका निकालते हैं। असल में जब कोई कीड़ा हमें काटता है या कांटा चुभता है तो वहां से हिस्टामाइन नाम का केमिकल निकलता है। ये हमारी रीढ़ की हड्डी तक संदेश पहुंचाता है कि कुछ गड़बड़ है। रीढ़ की हड्डी फौरन हाथ को निर्देश देती है उस जगह की खोज-खबर लेने के लिए। कई बार खुजलाने से काम चल जाता है। वरना फिर रीढ़ की हड्डी ये परेशानी हमारे शरीर के हेड ऑफिस यानि दिमाग को रिपोर्ट करती है। वैसे खुजली, छुआछूत की बीमारी जैसी है। आसपास किसी को खुजलाते देखेंगे तो आपका हाथ भी खुद-ब-खुद चल पड़ता होगा कई बार। जैसे आसपास बैठे लोग झपकी लें तो आपको भी जम्हाई आने लगती है। -सुभाष बुड़ावन वाला, 18, शांतिनाथ कार्नर, खाचरौद।