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रेलमंत्री गरीब यात्री को भी इंसान समझें

👤 | Updated on:22 March 2016 12:16 AM GMT
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   रेलमंत्री हम गरीब जनता को भेड़-बकरी क्यों समझते हैं। हमें जीने का अधिकार मिला है। रोजगार के लिए आते हैं। अपने लिए बच्चों के लिए परिवार के लिए रेलयात्रा के जरिये भेड़-बकरी की तरह यही है लोकतंत्र या कुलीनतंत्र के हो तुम समर्थक तभी तो हमें समझते हैं। भेड़-बकरी हमें अरसों से कहते आए हैं। बरौनी-मोकामा-पटना के रास्ते हमें एक नई ट्रेन सेवा प्रदान करे ताकि हम सदियों के भीड़ से निजात पा जाएं। खगड़िया के लोग दिल्ली के लिए वैशाली का सतौला भाई हो नई रेल ट्रेन सवारी ताकि हम ईसीआर पटना मुगलसराय होते करें दिल्ली की सवारी। बरौनी-वैशाली एक्सप्रेस हाजीपुर गोरखपुर-लखनऊ होते दिल्ली ही भिन्न रूट हैं। बिहार में न कोई उद्योग तंत्र है। मजदूरों का पलायन होता है। इसी कारण ट्रेन नार्थ-ईस्ट से ही भरकर आती रहती है। जगह खाली किसी तरह हम भेड़-बकरी बनकर आ जाते हैं। सीमांचल और पूरबिया की बात पूछे तो इसमें कभी नहीं रहती जगह खाली आप हमें नई ट्रेन सेवा दो। -सुमन सिंह चौहान, नई दिल्ली। भीड़ का नहीं न्याय का राज चले लोकतंत्र आज भीड़तंत्र में बदल चुका है। भीड़ की चिल्लाहट में इंसाफ की आवाज इतनी धीमी पड़ जाती है कि कोई उसे सुन ही नहीं पाता। भीड़ में किसी के द्वारा किए गए अपराध को कानून भी उचित नहीं ठहराता। ईसा के तीखे उपदेश भी जब धर्म भावनाओं को नई दिशा दे रहे थे तब इसी भीड़ ने चिल्लाकर कहा थाöईसा विद्रोही है उसे फांसी पर लटकाया जाए जबकि न्यायाधीश चाहता था कि ईसा को छोड़ दिया जाए पर भीड़ चिल्लाई कि एक हत्यारा डाकू वरअण्णा को भले ही छोड़ दे लेकिन ईसा को तो कूस पर ही चढ़ना चहिए। भीड़ में इतनी समझ तो होनी चाहिए कि वह पहले सही गलत का निर्णय ले ले। आवेश के प्रवाह में इतनी जल्दी न बहें, कानून को अपने हाथ में न लें। ईसा के पवित्र बलिदान से निकले निष्कर्ष को याद रखें। उनका दोष बस इतना ही था वह सुनने वालों को यथार्थता और परंपरा के बीच का अंतर बता रहे थे। -आनंद मोहन भटनागर, लखनऊ। स्वतंत्र, निडर व निष्पक्ष पत्रकारों की सुरक्षा अनिवार्य लोकतंत्र के चौथे कीर्ति स्तंभ प्रेस की भूमिका अदा करने वाले देशभर के प्रतिभाशाली, निष्ठावान मिशन पत्रकारिता से जुड़े पत्रकारों को चहिए कि वो भारतीय लोकतंत्र के हितों की रक्षा के लिए देश की आजादी के 67 वर्ष बाद कीचड़ भरी राजनीति से दूर होकर अपनी स्वतंत्र, निडर व निष्पक्षता से सच्चाई को जानकर पत्रकारिता करनी चाहिए। मिशन पत्रकारिता का उद्देश्य समाज व देश की सेवा करना है। पत्रकारों को चाहिए कि वो अपने काम को समाज व देश सेवा के लिए लोकतंत्र के हितों के सुरक्षा प्रहरी समझें न कि व्यापारी, दुकानदारी समझें। यह ठीक है कि पत्रकारों का काम बेहद जोखिम भरा है। इसमें कई पत्रकार असामाजिक तत्वों या राष्ट्र विरोधी तत्वों द्वारा मौत का शिकार हो जाते हैं। अत पत्रकारों को चाहिए कि वो देश में बदली हुई घटिया, ओछी, अपराधीकरण, भ्रष्टाचार वाली राजनीति में नहीं आना चाहिए। मेरी सलाह है कि सभी पत्रकार दल-दल राजनीतिक दलों के संगठन से दूर होकर स्वतंत्र, निष्पक्ष व निडर होकर सच्चाई को पता लगाकर पत्रकारिता करें। भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष से अनुरोध है कि वो अपने देशभर के प्रतिष्ठावान पत्रकारों को निर्देश दें कि वो किसी भी राजनीतिक दल से जुड़कर किसी प्रलोभन में आकर उस राजनीतिक दल के पक्ष में पत्रकारिता कदापि न करें। ऐसा करना सर्वथा बेइमानी होगी तथा स्वाधीनता संग्राम में महान देशभक्त पत्रकार राष्ट्रवादी पंडित गणेश शंकर विद्यार्थी जी का अपमान होगा। केंद्र सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्री से अनुरोध है कि भारतीय लोकतंत्र के कीर्ति स्तंभ चौथे कीर्ति स्तंभ `प्रेस' पत्रकारों के जोखिम भरे कार्य को देखते हुए सर्वप्रथम अनिवार्य रूप से जोखिम बीमा लागू करें। दूसरा देश की जनता व सरकार के बीच सहयोग की कड़ी के रूप में काम करने वाली पत्रकारों की सुरक्षा हर छोटे-बड़े कार्यक्रम में अनिवार्य रूप से करने की व्यवस्था लागू की जाए। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी को मालूम होना चाहिए कि पत्रकारों पर जानलेवा हमला करना पूरे भारतीय लोकतंत्र पर हमला करना है। मेरा देशभर के पत्रकारों व दूरदर्शन पर समाचार चैनलों के संपादकों से अनुरोध है कि देश में हो रही घटनाओं के बारे में नमक-मिर्च न लगाएं। कभी भी किसी अप्रिय घटना को बढ़ाचढ़ा कर तथा कटु सत्य तथ्यों को पड़ताल किए बगैर पेश न करें। केंद्र सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्री से अनुरोध है कि वो देशभर के मिशन पत्रकारिता से जुड़े पत्रकार संगठनों की आवश्यक मांगें व उनकी समस्याओं पर तत्काल गौर करके उनका समाधान किया जाना चाहिए ताकि देशभर के पत्रकारों का पुलिस, प्रशासन, सरकार, राज्य व केंद्र सरकार के प्रति किसी प्रकार का रोष अपने मन में न रहे। देश की जनता को भी चाहिए कि वो अपनी गली-मौहल्ले व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर हो रही किसी भी वारदात की सही-सही जानकारी मीडिया वालों को उनके अनुरोध पर दें। लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता और उनकी पूरी सुरक्षा केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा लोकतंत्र के हितों की सुरक्षा के लिए अतिआवश्यक तौर पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके बगैर लोकतंत्र का सुरक्षित रहना अतिअसंभव है। मैं देशभर के उन पत्रकारों को साधूवाद देता हूं जो समाज, देश व राष्ट्र के कल्याण के लिए भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद व असामाजिक तत्वों की करतूतों के खिलाफ उनके कारनामें समाचार पत्रों में अपनी जान की हथेली पर रखकर सदैव निष्पक्ष, निडर, स्वतंत्र होकर खुलासा करते हैं। -देशबंधु, उत्तम नगर, नई दिल्ली। वोट बैंक मजबूत करने के लिए शिगूफा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में पांच साल या उससे ज्यादा समय से रहने वाले तमाम बांग्लादेशियों को नागरिकता दिए जाने की वकालत की है। लेकिन उनके इस प्रस्ताव पर अंगुलियां उठने लगी हैं। राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं कि क्या तृणमूल नेता ममता बनर्जी ने राज्य के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए ही यह शिगूफा उछाला है। दरअसल ममता बनर्जी ने बंगाल में वही दांव चला है जो बीते लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा ने पूर्वोत्तर राज्य असम में चला था। भाजपा ने तब कहा था कि अत्याचार के शिकार हो कर बांग्लादेश से आकर असम में बसने वाले लोगों को नागरिकता देने की कवायद शीघ्र शुरू की जाएगी। अब ममता ने वही प्रस्ताव बंगाल के मामले में दिया है। राज्य के दस सीमावर्ती जिले मुस्लिम बहुल हैं और वहां अल्पसंख्यकों के वोट ही निर्णायक हैं। ममता की दलील है कि अगर बांग्लादेश से आने वाले लोग राज्य में वैध तरीके से रह रहे हैं और उनके पास तमाम संबंधित दस्तावेज हैं तो उनको नागरिकता देने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। मुख्यमंत्री का कहना था कि नागरिकता देने का जिला अधिकारियों का अधिकार बहाल किया जाना चाहिए। राज्य में लगभग 28 फीसदी मुस्लिम आबादी है और किसी भी राजनीतिक दल के लिए सत्ता हासिल करने की खातिर उनका समर्थन बेहद अहम है। सीपीएम और कांग्रेस के बीच प्रस्तावित गठजोड़ की काट के तौर पर ही ममता ने अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए यह दांव फेंका है। -सुभाष बुड़ावन वाला, 18, शांतिनाथ कार्नर, खाचरौद। शरीरिक कमजोरी से मेटाबॉलिज्म तेज होती है विशेषज्ञों के अनुसार डॉक्टर्स के पास जाने वाले 90 प्रतिशत मरीज तनाव के कारण आते हैं। जब हमारे शरीर या मन को किसी चुनौती का सामना करना पड़ता है तो हमारी मेटाबॉलिज्म प्रक्रिया तेज हो जाती है, ब्लडप्रेशर और ह्रदय की धड़कन बढ़ जाती है और शरीर में रक्तसंचार तेज होता है। शरीर में एड्रनलीन की मात्रा बढ़ जाती है। यह स्थिति अधिक देर बनी रहे तो कई शारीरिक व मानसिक समस्या पैदा हो जाती हैं। कुछ भोजन ऐसे हैं, जो हमारे शरीर को तनाव से लड़ने की शक्ति देते हैं। संतरे, दूध व सूखे मेवे में पोटेशियम की मात्रा अधिक होती है, जो हमारे दिमाग को शक्ति प्रदान करती है। आलू में विटामिन `बी' समूह के विटामिन काफी मात्रा में होते हैं, जो हमें चिंता और खराब मूड का मुकाबला करने में सहायता देते हैं। चावल, फिश, बिन्स, और अनाज में विटामिन `बी' होता है, जो दिमागी बीमारियों और डिप्रेशन को दूर रखने में सहायक है। हरी पत्ते वाली सब्जियां, गेहूं, सोयाबीन, मूं गफली, आम और केले में मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है, जो हमारे शरीर को तनाव से लड़ने में सहायता देती है।  एक्सपर्ट्स के अनुसार तनाव की स्थिति में थोड़ा-थोड़ा करके कई बार खाना तनाव को दूर भगाने में सहायक हो सकता है। इससे उन लोगों को भी सहायता मिल सकती है, जो तनाव की स्थिति में अतिरिक्त खाने के आदी हैं। थोड़ा-थोड़ा खाने से शरीर को शक्ति मिलती रहती है। आप किसी भी कारण से तनावग्रस्त हों, अपनी समस्या अपने पार्टनर, प्रेमी या किसी करीबी मित्र से खुलकर चर्चा करें। इस चर्चा से ही आपका आधा तनाव दूर हो जाता है। शेष समस्या खाने, हल्की एक्सरसाइज और खुलकर सोने से दूर की जा सकती है। -मनोज सक्सेना, शाहदरा, दिल्ली।    

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