Home » आपके पत्र » असहिष्णुता बनाम सहिष्णुता

असहिष्णुता बनाम सहिष्णुता

👤 | Updated on:29 March 2016 12:46 AM GMT
Share Post

 सत्ता के गलियारे में सहिष्णुता और असहिष्णुता पर बहस चल रही है मुद्दा सिर्प इतना है कि तुम्हारी कमीज हमारी कमीज से सफेद क्यों? जेडीयू सांसद कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर को छोड़कर किसी विधानसभा में विधानसभा अध्यक्ष मुस्लिम नहीं है। जेडीयू सांसद केसी त्यागी से मुझे बस इतना कहना है कि बिहार में उनकी सरकार है वहा क्यों नहीं मुख्यमंत्री या विधानसभा अध्यक्ष मुस्लिम है? भारतीय राजनीति में ओवैसी, लालू, थरूर, राहुल, मुलायम, मायावती जैसे न जाने कितने नेता हैं जो दलित मुस्लिम वोट बैंक के लिए कब क्या बोल जाएं कब अपनी दलगत राजनीति के चलते देश में असहिष्णुता का वातावरण पैदा कर दें कुछ नहीं कहा जा सकता। विपक्ष के अधिकांश मुद्दे उबाऊ, झूठे और मनगढ़ंत हैं। यह इसलिए इसी देश में दलित के नाम पर बाबा अम्बेडकर को उतना ही सम्मान मिला जितना डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को, वीर योद्धा अब्दुल हमीद को फिल्म अदाकार खान बंधुओं को। भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ऐसे ही उपराष्ट्रपति नहीं बन गए। जो नेता असहिष्णुता के नाम पर संसद का समय बर्बाद कर रहे हैं। वह देश के विकास में सबसे बड़ा रोड़ा है। देश की जनता को ऐसे ऊल-जुलूल बयानों और साजिशों से सावधान रहना होगा। -आनंद मोहन भटनागर, लखनऊ। मनुष्य अपने जीवन का स्वयं शत्रु है ऐसा प्रायः कहा जाता है कि मनुष्य अपने जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है। संसार का कोई भी जानवर अपने शरीर का नुकसान नहीं करता, लेकिन मनुष्य अपने ही शरीर को अपने ही नाखूनों से क्षतविक्षत कर लेता है और फिर उसके दर्द से कराहने लगता है। मनुष्य जैसा अविवेकी प्राणी खोजना मुश्किल है। ऐसा इसलिए, क्योंकि मनुष्य केवल अहंकार में जीता है। वह प्रेम कर सकता है, लेकिन अहंकार के कारण वह किसी से प्रेम नहीं कर सकता। घृणा, ईर्ष्या और द्वेष में आसानी फंस जाता है। ऐसा लगता है कि उसके अंदर का रस सूख गया है। कोई दूसरा अगर उसे क्षति पहुंचाता है तो यह बात समझ में आती है, लेकिन जब वह स्वयं अपने सुंदर शरीर को रौंदने लगता है, उसका नाश करने लगता है तो बड़ा आश्चर्य होता है। एक कहानी है। एक दिन किसी होटल में दो बुजुर्ग पति-पत्नी खाना खाने गए। खाना आया। पहले पति ने खाना शुरू किया और बूढ़ी औरत आंचल से पंखा झेलने लगी। थोड़ी देर बाद पत्नी खाना खाने लगी और पति रूमाल से मक्खी उड़ाने लगा। दूसरी टेबल पर कुछ लोग और बैठे थे। लोगों ने देखा कि दोनों में कितना प्यार है। इस उम्र में कितने प्यार से दोनों एक-दूसरे को खाते समय पंखा झल रहे हैं। यह अच्छा दृश्य देखकर बगल के टेबल पर बैठे एक व्यक्ति ने पूछा, दादाजी! इस उम्र में भी आप दोनों इतने प्यार से कैसे रह लेते हैं। यह सुनकर दादाजी ने कहा कैसे बेटे। फिर उस व्यक्ति ने कहा कि आप खाना खा रहे थे तो दादी पंखा झल रही थीं और दादी खाना खा रही थीं तो आप पंखा झल रहे थे। यह सुनकर वृद्ध व्यक्ति ने कहा कि दरअसल इसमें प्रेम की कोई बात नहीं है। हम दोनों के पास दांत का एक ही सेट है। इसीलिए बारी-बारी से खाना खाता हूं। सच पूछा जाए तो यही जीवन का रस है। जब तक जीवन में रस बना रहता है तब तक जीवन में फूल खिलते रहते हैं। रस के सूखते ही जीवन नष्ट हो जाता है। हमें प्रयास करना है कि हमारे जीवन में प्रेम की कमी न हो, क्योंकि प्रेम ही है जो मनुष्य को जीवित रखता है। -प्रदीप चौहान, कंझावला, दिल्ली। डॉक्टर की बातें भी बना सकती हैं बीमार अगर डॉक्टर आपसे शिष्टता से मिले, तो आप जल्दी स्वस्थ्य हो सकते हैं। लेकिन अगर डॉक्टर आपसे सही से बर्ताव नहीं करते, बात नहीं करते, तो आपकी तबीयत बिगड़ भी सकती है। आप किसी ऐसे डॉक्टर के पास कभी गए हैं? क्या आपने ऐसा महसूस किया है कि आपको डॉक्टर के पास जाने से ज्यादा फायदा नहीं हुआ? बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के डिस्कवरी प्रोग्राम के प्रेजेंटर ज्यॉफ वाट्स ने घुटनों की समस्या के बारे में डॉक्टर मार्प पोर्टर से बात की। इस बातचीत में पोर्टर की बातों में मरीज के लिए केवल नाकारात्मक बातें ही निकलीं। डॉक्टर ने कहा कि उनके पास कुछ खराब समाचार हैं कि घुटने ऑस्टियो-आर्थराइटिस के चलते घिस जाते हैं और दवाओं से कुछ फायदा तो होता है लेकिन इससे आंतों को नुकसान होता है। वाट्स ने ये जानने की कोशिश की कि ऐसा होने का पता किन शारीरिक लक्षणों से लगता है? पोर्टर ने बताया कि मैं जिस तरह से समस्या के बारे बात करता हूं, उससे आपके घुटने को लेकर चिंता बढ़ सकती है। आपको लगेगा कि ये बर्बाद हो चुका है। इसके साइड इफेक्ट्स के बारे में भी मैं सही अनुपात में बताता हूं। प्रयोगों से पता चला है कि लोगों को किसी भी साइड इफेक्टस के बारे में चेतावनी देने से मुश्किल बढ़ जाती है। उन्हें उल्टी, थकान, सिर दर्द और दस्त की शिकायत हो सकती है, भले उन्हें बाद में ऐसी दवाइयां दी जाएं, जिनका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। मेडिसीन की दुनिया में लंबे समय से प्लेसीबो इफेक्ट की बात होती रही है, अच्छी उम्मीदों का उपचार। इसी तरह का दूसरा पहलू भी होता है नोसेबो इफेक्ट, जो कहीं ज्यादा शक्तिशाली होता है। वाट्स कहते हैं कि नुकसान पहुंचाना कहीं ज्यादा आसान होता है। ये चिंतित करने वाला भी है क्योंकि नोसेबो का निगेटिव प्रभाव मेडिकल जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। विकट परिस्थितियों में ये जानलेवा भी हो सकता है। कई बार तो सोच भी मौत का सबब बन सकती है। हालांकि इनमें अच्छी खबर ये है कि दिमाग और शरीर का कनेक्शन और डॉक्टरों का अच्छा व्यवहार इलाज में जादुई असर डाल सकता है। एक अध्ययन के मुताबिक अवसाद से पीड़ित मरीज को डॉक्टर के सहानुभूति पूर्वक प्लेसीबो पिल्स देने पर बेहतर परिणाम मिलते हैं। जबकि ज्यादा एक्टिव दवाई भी डॉक्टर अगर तटस्थ भाव से देता है, तो उसका असर कम होता है। कुछ वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि डॉक्टरों को प्लेसीबो इफेक्ट का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि मरीजों को कम दवाएं दी जा सकें, मरीज अपने दिमाग का इस्तेमाल कर अंतर महसूस कर सकें। एक्सेटर मेडिकल स्कूल की पॉल डायपे कहती हैं कि स्व-उपचार एक वास्तविकता है। -सुभाष बुड़ावन वाला, 18, शांतिनाथ कार्नर, खाचरौद।          

Share it
Top