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रात्रि में काम करने से शरीर पर विपरीत असर होता है

👤 | Updated on:12 April 2016 12:02 AM GMT
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 पिछले कुछ सालों में हुए अध्ययन इस बात की ओर इशारा करते हैं कि रात में काम करना आपकी सेहत के लिए बहुत खतरनाक है। जो लोग रात में काम करते हैं उनके लिए यह चिंता की बात है। सायरा मांटेग्यू बता रही हैं कि रात में काम करने का शरीर पर क्या असर होता है। मैं सालों से काम पर जाने के लिए आधी रात को उठती रही हूं। और यह सब आज का कार्यक्रम प्रजेंट करने के लिए करना पड़ता है और मैं खुशी खुशी यह कीमत चुकाती हूं। लेकिन मैं हमेशा ये सोचती हूं कि क्या इसका लंबे समय में नुकसान होगा। उस समय उठना जब शरीर बिल्कुल इनकार कर रहा हो, क्या कोई गंभीर और स्थाई नुकसान वाली बात है? मैं उन 35 लाख ब्रितानी नागरिकों में से एक हूं जो नाइट शिफ्ट में काम करते हैं। इनमें से कुछ और ज्यादा घंटे और कुछ तो पूरी रात काम करते हैं। 50 साल पहले आम तौर पर लोग आठ घंटे की नींद लेते थे। लेकिन अब यह घटकर औसतन 6.5 घंटे हो गई है। बहुत सारे लोग नींद को आलस मानते हैं। लेकिन यह उतना ही जरूरी है जितना सांस लेना और खाना। ये वो समय है जब हमारा दिमाग दिन भर के कामों और यादों को व्यवस्थित करता है। और इस दौरान शरीर कुछ अंदरूनी मरम्मत का काम भी करता है। हमने पाया है कि भरपूर नींद लेने के बाद भी रात में काम करने का समय गलत है। हमेशा से यह माना जाता था कि शरीर की जैविक घड़ी रात में काम के हिसाब से खुद को अभ्यस्त कर लेती है। लेकिन ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से जुड़े स्लीप एक्सपर्ट प्रोफेसर रसेल फोस्टर कहते हैं कि कई सारे अध्ययन बताते हैं कि ऐसा नहीं है। जो लोग रात में लंबे समय तक काम करते हैं, उनको टाइप 2 डायबिटीज, हृदय रोग और कैंसर का गंभीर खतरा होता है। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि मेरी तरह ही काम पर सुबह चार बजे पहुंचने वाले लोगों का दिमाग उतना ही सुस्त होता है जितना दो चार व्हिस्की या बियर पिए हुए इंसान का दिमाग होता है। जैविक घड़ी जब मैं सुबह छह बजे के प्रोग्राम के शुरुआती शब्द बोलती हूं तो अक्सर मैं उन लोगों के बारे में सोचती हूं, जिनकी नींद में हम खलल डाल रहे हैं। सुबह के चार बजे की बजाय छह बजे का अलार्म लगाना क्यों बहुत आसान होता है? असल में हमारे मस्तिष्क में कुछ हजार ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जहां हमारे शरीर की मुख्य जैविक घड़ी होती है। कब सोना है, कब जगना है या भोजन पचाने के लिए लीवर को कब एंजाइम पैदा करना है, जैविक घड़ी इन सबको नियंत्रित करती है। यह घड़ी हमारे दिल की धड़कन को भी नियंत्रित करती है, यह सुबह धड़कन को तेज और शाम को सुस्त करती है। जैविक घड़ी पर 20 सालों तक काम कर चुके कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर माइकल हैस्टिंग्स कहते हैं कि हमारे सभी अंग खास समय पर खास काम करने के लिए पहले से तय अनुवांशिक निर्देशों के अधीन होते हैं। यह इंजीनियरिंग का एक बेहतरीन नमूना है जो क्रमिक विकास का नतीजा है। यह नीदरलैंड के गुफा मानवों के लिए बिल्कुल सटीक है लेकिन 21वीं सदी के रात की पाली में काम करने वालों के लिए नहीं। खतरा जैसा कि मैं करती हूं आधी रात को चॉकलेट खाने से शुगर और फैट दिन के मुकाबले कहीं देर तक खून में दौड़ता रहता है। खून में शुगर की अधिक मात्रा से टाइप 2 डायबिटीज होता है और फैट का स्तर बढ़ने से दिल का रोग होता है। इसीलिए रात की पाली में काम करने वालों में दिल के रोग का खतरा डेढ़ गुना ज्यादा होता है। रात में काम करने वालों मोटापे का भी यही कारण है। कैंसर से भी इसका संबंध है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2007 में कहा था कि रात में काम करना कैंसर का कारण हो सकता है। रोगों की सूची लंबी है।  एक हालिया शोध में पता चला है कि दस साल तक रात की पाली में काम करने वाले मजदूर का दिमाग 6.5 साल बूढ़ा हो जाता है। उन्हें सोचने और याद रखने में दिक्कत आती है। अमेरिका में उन 75 हजार नर्सों पर एक अध्ययन हुआ जो पिछले 22 साल से पालियों में काम करती हैं। पता चला कि उन नर्सों में दस में से की मौत जल्दी होगी, जिन्होंने छह साल तक पालियों में काम किया। मुआवजाöमैंने रात में काम करने वाले एक सफाई कर्मचारी से बात की। वो कहते हैं कि ड्यूटी के बाद घर जाकर सोने की बजाय वो दिन में ट्रक चलाते हैं। और वो ऐसा सप्ताह के छह दिन करते हैं यानि औसत नींद तीन घंटे होती है। ब्रिटेन में रात में काम करने वालों के लिए कोई विशेष स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के नियम नहीं हैं। लेकिन कुछ कंपनियों और सरकारों ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेना शुरू किया है। डेनमार्प की सरकार ने उन महिलाओं को मुआवजा दिया है जिन्हें रात में काम करने के कारण ब्रेस्ट कैंसर हो गया था। प्रदूषण की वजह से होने वाली बीमारियों के कारण रात में काम करने वाले इलेक्ट्रानिक्स वर्परों को कोरिया ने मुआवजा दिया है। -सुभाष बुड़ावन वाला, 18, शांतिनाथ कार्नर, खाचरौद। वैज्ञानिकों ने अक्सर पशु-पक्षियों पर प्रयोग किया एक बार कुछ वैज्ञानिकों ने एक बड़ा ही रोचक प्रयोग किया। उन्होंने 5 बंदरों को एक बड़े से पिंजरे में बंद कर दिया और बीचोंबीच एक सीढ़ी लगा दी जिसके ऊपर केले लटक रहे थे। जैसा की अनुमान था जैसे ही एक बंदर की नजर केलों पर पड़ी वो उन्हें खाने के लिए दौड़ा। पर जैसे ही उसने कुछ सीढ़ियां चढ़ीं उस पर ठंडे पानी की तेज धार डाल दी गई और उसे उतर कर भागना पड़ा। पर वैज्ञानिक यहीं नहीं रुके, उन्होंने एक बंदर के किए गए की सजा बाकी बंदरों को भी दे डाली और सभी को ठंडे पानी से भिगो दिया। बेचारे बंदर हक्के-बक्के एक कोने में दुबक कर बैठ गए। पर वे कब तक बैठे रहते, कुछ समय बाद एक दूसरे बंदर को केले खाने का मन किया और वो उछलता कूदता सीढ़ी की तरफ दौड़ा। अभी उसने चढ़ना शुरू ही किया था कि पानी की तेज धार से उसे नीचे गिरा दिया गया और इस बार भी इस बंदर के गुस्ताखी की सजा बाकी बंदरों को भी दी गई। एक बार फिर बेचारे बंदर सहमे हुए एक जगह बैठ गए। थोड़ी देर बाद जब तीसरा बंदर केलों के लिए लपका तो एक अजीब वाक्य हुआ। बाकी के बंदर उस पर टूट पड़े और उसे केले खाने से रोक दिया ताकि एक बार फिर उन्हें ठंडे पानी की सजा न भुगतनी पड़े। फिर वैज्ञानिकों ने प्रयोग किया। -राजन गुप्ता, विकासपुरी, दिल्ली।

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