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`ग्लूकोमा` गुपचुप तरीके से नजरें चुराने वाला नेत्र रोग

👤 | Updated on:13 March 2013 12:03 AM GMT
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 विश्व ग्लूकोमा सप्ताह को लेकर जोधपुर स्थित एएसजी ग्रुप ऑप  हॉस्पिटल के डॉ. अरूण सिंघवी ने दैनिक `वीर अर्जुन` से की खास बातचीत, कहा-लापरवाही की स्थिति में स्थायी रूप से खत्म हो सकती हैं नेत्र ज्योति, भारतीय आबादी में ग्लूकोमा की उपस्थिति 2.6 पतिशत  घनश्याम डी.रामावत जोधपुर। समूचा विश्व इस समय आम व्यक्पि को ग्लूकोमा की गंभीरता को समझाने की लिहाज से ग्लूकोमा सप्ताह मना रहा हैं। आम तौर पर `ग्लूकोमा` को गुपचुप तरीके से नजरें चुराने वाला रोग कहा जाता हैं, क्योंकि इसके उपचार में अत्यधिक विलंब होने पर धीरे-धीरे इंसान की दृष्टि कम होने के साथ ही यह कष्टदायी रोग में तब्दील हो जाता है। ग्लूकोमा एक ऐसा खतरा है जिससे नेत्रज्योति स्थायी रूप से खत्म हो सकती हैं और इससे पीडिक्वत व्यक्पि यह भी नहीं जान पाता कि इसके लक्षणों की शुरुआत असल में कब हुई। यह रोग सही मायने में एक पकार की गडक्वबडक्वी है जो आंखों की दृष्टि नस को क्षतिग्रस्त कर देती है और इससे दृष्टि स्थायी रूप से खत्म हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकडक्वों के मुताबिक भारतीय आबादी में ग्लूकोमा की उपस्थिति 2.6 पतिशत है। हालांकि ज्यादातर लोग इस रोग से और इससे बचाव की जरूरत से वाकिप  भी नहीं हैं। लिहाजा आंखों की नियमित और संपूर्ण जांच ही शुरुआती स्तर पर इस रोग के लक्षण पहचानने तथा समय पर इस पर काबू पाने का एकमात्र तरीका हो सकती है। विश्वभर में मनाए जा रहे ग्लूकोमा सप्ताह के तहत जोधपुर स्थित एएसजी ग्रुप ऑप  हॉस्पिटल के डॉ. अरूण सिंघवी ने दैनिक `वीर अर्जुन` से खास बातचीत करते हुए बताया कि मुख्य तौर पर चालीस वर्ष की आयु को पार कर चुके व्यक्पि, ग्लूकोमा के इतिहास से संबद्ध पारिवारिक सदस्य, डायबिटीज, माइग्रेन से पीडिक्वत व्यक्पि, लगातार चश्मा बदलते रहने वाले व्यक्पि, ऋणात्मक चश्मे का नंबर पहनने वाले व्यक्पि, स्टेरॉयड का अक्सर इस्तेमाल करने वाले व्यक्पि और इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण ग्लूकोमा के इतिहास से जुडक्वे व्यक्पि में इस तरह के रोग की चपेट में आने का खतरा सर्वाधिक रहता हैं। डॉ. सिंघवी ने बताया कि कुछ लोगों में इस रोग के लक्षण आंखों की लालिमा, दर्द और धुंधली दृष्टि, पकाश के आसपास चौंध नजर आना, मिचलाहट और उल्टी आदि के रूप में दिखाई पडक्वते हैं। उन्होंने बताया कि ग्लूकोमा का सबसे आम रूप खामोश (कोनिक ओपन एंगल ग्लूकोमा) होता हैं जिसमें मरीज में कोई लक्षण नहीं दिखता है और वह अपनी दृष्टि के लगातार कमजोर होते जाने से पूरी तरह नावाकिप  रहता हैं। ऐसे मरीज को आखिरी चरण में ही पता चल पाता हैं किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व ग्लूकोमा सप्ताह 10 से 16 मार्च तक मनाया जाता हैं और इस मौके पर चिकित्सक लोगों से अपनी आंखों की स्थिति परखने और निश्चित अवधि पर जांच कराते रहने सहित इस रोग की गंभीरता को लेकर आमजन में जागृति लाने का कार्य करते हैं। डॉ. सिंघवी के अनुसार चालीस वर्ष की आयु को पाप्त कर लेने के साथ ही आंखो की नियमित जांच जरूरी है। उन्होंने आंखों की समग्र जांच को जरूरी बताया। समग्र नेत्र जांच में दृष्टि की जांच, स्लिट लैंप जांच, आईओपी (इंट्राक्यूलर पेशर) जांच और ऑप्टिक डिस्क का मूल्यांकन आदि शामिल हैं। ग्लूकोमा दृष्टि तंत्र के क्षतिग्रस्त होने के कारण नेत्र रोगों का एक समूह है। चूंकि ग्लूकोमा के मरीजों में शुरू से ही इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं, इसलिए इस रोग का शुरुआती स्तर पर पता लगा पाना आम तौर पर मुश्किल होता है। डॉ. सिंघवी के अनुसार दृष्टिहीन बनाने देने वाले इस रोग से बचाव के लिए आंखों की नियमित और संपूर्ण जांच ही एकमात्र उपाय है। डॉ. सिंघवी के अनुसार ग्लूकोमा का हालांकि कोई निदान नहीं है लेकिन एलिवेटेड इंट्रा ऑक्यूलर पेशर (आईओपी) में पि लहाल पमुख चिकित्सकीय जोखिम बना हुआ है। न्यूरोपोटेक्शन और वैसोपोटेक्शन जैसे क्षेत्रों में अब भी शोध चल रहा है। डॉक्टरों द्वारा सुझाए गए आई ड्रॉप जैसे सर्वाधिक पभावशाली उत्पादों से सकियतापूर्वक इलाज कराना महत्वपूर्ण है जो लंबे समय तक नियंत्रण के साथ एलिवेटेड आईओपी में अधिकतम कमी आ सकती है। कुछ मामलों में सर्जरी से भी मदद मिल सकती है। मरीजों के लिए डॉक्टरों के निर्देशानुसार उपचार कराना और ऐसे नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा नियमित जांच कराते रहना जरूरी है जो ग्लूकोमा के बढक्वते रोग को रोक सकते हैं और जिनके पास इलाज के विकल्प मौजूद हैं।  

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