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साइनसाइटिस के अधिक शिकार बनते हैं भारतीय

👤 | Updated on:17 Jun 2012 1:11 AM GMT
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  डॉ अतुल आहूजा आपकी नाक बंद है और सांस लेना मुश्किल लग रहा है। म्युकस की वजह से आपके गले में भी कुछ खिचखिच रहना स्वाभाविक है। और इस खिंचवा से आपके चेहरे, सिर तथा यहां तक कि दांत में भी दर्द महसूस हो सकता है।  आप धीरे-धीरे सूंघने और स्वाद महसूस करने की अपनी क्षमता भी खोने लगते हैं। हमेशा थके-थके रहते हैं तथा चिड़चिड़ापन आपको परेशान करता है। हो सकता है आप इसे जुकाम या फिर साल के इस वक्त में होने वाला एलर्जी का हमला समझने की भूल कर बै"sं।  आप एलर्जी या जुकाम से बचाव की दवाएं भी लेते हैं, मगर लक्षण हैं कि दूर ही नहीं हो रहे। हारकर आप अपने डॉक्टर को दिखाने जाते हैं।  आपके लक्षणों के बारे में पूरी जानकारी लेकर, जांच करने के बाद डॉक्टर आपको बताते हैं कि आप साइनसाइटिस के शिकार हैं, जो दरअसल, साइनस की अंदरूणी सतह की अस्थायी सूजन को कहते हैं और यह बैक्टीरिया जनित संकमण जिसे आमतौर पर साइनस संकमण कहा जाता है, की वजह से पैदा होती है। डॉक्टर आपको नाक में डालने वाले स्पे, स्टीरॉयड स्पे, डीकन्जैस्टेंट और केमिस्ट के पास आसानी से उपलब्ध दर्द निवारकों के पयोग की सलाह देते हैं ताकि आपको कुछ राहत मिल सके। लेकिन यदि आप 12 हफ्ते से अधिक की अवधि तक इन लक्षणों को महसूस करें तो हो सकता है कि आप कोनिक साइनसाइटिस के शिकार हैं और ऐसे में उपचार के लिए आपको कान, नाक एवं गला (ईएनटी) सर्जन (ओटोलैरिंगोलॉजी विशेषज्ञ) को दिखाना चाहिए। जुकाम आमतौर पर वायरस जनित संकमण है जो ऊपरी श्वसन तंत्र को पभावित करता है, जबकि एलर्जी शरीर में किसी पदार्थ (एलरजेन) की वजह से उत्पन्न होने वाली पतिकिया को कहते हैं। एलर्जी की वजह से जुकाम और साइनसाइटिस हो सकता है लेकिन जरूरी नहीं कि एलर्जी से ये तकलीफ अवश्य हों। साइनसाइटिस दरअसल, साइनस की भीतरी सतह में सूजन को कहते हैं जो बैक्टीरिया, वायरस और/अथवा माइकोबायल संकमण की वजह से पैदा होता है, या कई बार साइनस मुख (ऑस्टियम) पर संरचनात्मक अवरोधों की वजह से भी यह हो सकता है। यदि यह मुख बंद होता है, तो म्यूकस को निकलने का मार्ग नहीं मिलता जिसकी वजह से साइनस संकमण और सूजन पैदा हो सकती है।  साइनसाइटिस की पायः दो श्रेणियां हैं - एक्यूट तथा कोनिक। साइनसाइटिस से पहले अक्सर जुकाम, एलर्जी या पर्यावरणीय पदूषकों की वजह से खिचखिच पैदा होती है।  इसके चलते, शुरू में नाक में दबाव, नाक बंद रहने, नाक बहने, और बुखार की शिकायत पैदा होती है। लेकिन यदि ये लक्षण लंबे समय तक जारी रहें तो बैक्टीरिया जनित संकमण या एक्यूट साइनसाइटिस हो सकता है। यदि साइनसाइटिस बार-बार हो या तीन महीने से अधिक की अवधि तक बना रहे, तो यह कोनिक साइनसाइटिस का कारण बन सकता है। साइनस वास्तव में, खोपड़ी में खोखली जगह (यानी फंटल, एथमॉयड, स्फीनॉयड और मैक्सीलरी) को कहते हैं जो खोपड़ी को हल्कापन देने के साथ-साथ आवाज़ को भी रेज़ोनेंस पदान करता है। साइनस, जो कि नासिका में खुलती है, का मकसद म्यूकस पैदा करना है जिसकी वजह से नासिका भीतर से आर्द बनी रहती है और सांस लेने से सूखती नहीं तथा अवांछित पदार्थों को भी फेफड़ों में पहुंचने से भी रोकती है। एक्यूट या कोनिक साइनसाइटिस की वजह से नाक, साइनस और गले की म्यूकस झिल्लियों में सूजन पैदा हो जाती है, जो संभवतः पहले से कोल्ड या एलर्जी की वजह से हो सकती है। इस सूजन से साइनस मुख में अवरोध उत्पन्न हो जाता है और म्यूकस की राह अवरुद्ध हो जाती है जिससे म्यूकस एकत्र होकर दबाव पैदा करता है। इस रोग के लक्षणों में नाक अथवा गले के पिछले हिस्से से गाढ़ा, पीला या हरे रंग का स्राव, नाक का बंद होना या कंजेशन, आंखों, गाल, नाक और माथे के आसपास की त्वचा नाजुक महसूस होती है और उसमें सूजन आ जाती है या सूंघने तथा स्वाद महसूस करने की क्षमता भी घटने लगती है। किसी भी व्यक्ति की जीवन की गुणवत्ता पर इसका काफी असर पड़ता है और चेहरे या सिर में दर्द, सांस लेने में क"िनाई, सांस में बदबू, चिड़चिड़ापन, थकान या मितली आना जैसी शिकायतें पैदा हो सकती हैं। भारत में कोनिक साइनसाइटिस से करीब 134 मिलियन व्यक्ति पभावित हैं और इस तरह दुनिया में इस रोग के सबसे ज्यादा मरीज़ हमारे देश में हैं। कोनिक साइनसाइटिस किसी भी व्यक्ति की गुणवत्ता को पभावित कर सकता है और यह हृदयाघात तथा लगातार पी" दर्द का भी कारण बनता है। इसके अलावा, भारतीय मरीज़ों पर कराए गए एक अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि ज्यादातर मरीज़ इसका इलाज कराने से डरते हैं, कई बार वे दर्द की आशंका के चलते तो कई बार पकिया की सही जानकारी के अभाव में ऐसा करते हैं, और यह धारणा भी उन्हें इलाज से रोकती है कि सर्जरी की वजह से सिर्फ अस्थायी समाधान मिलेगा। अध्ययन से यह भी तथ्य सामने आया है कि कोनिक साइनसाइटिस के मरीज़ों की सेहत अक्सर नाजुक बनी रहती है, कार्यस्थलों पर उनकी उत्पादकता कम होती है और कई बार जीवन की इस कमजोर गुणवत्ता तथा आत्म-विशवास के अभाव के चलते उनकी सामान्य जिंदगी पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। यदि कोनिक साइनसाइटिस की आशंका हो तो मरीज़ को कान, नाक और गला (ईएनटी) विशेषज्ञ (ओटोलैरिंगोलॉजी विशेषा) को दिखाना चाहिए। ईएनटी चिकित्सक कोनिक साइनसाइटिस की जांच के लिए कई पकार की विधियों की मदद लेते हैं जैसे सामान्य जांच, नाक की एंडोस्कोपी, सीटी स्कैन, या नेज़ल और साइनस कल्चर। कोनिक साइनसाइटिस की पुष्टि होने तथा उसके संभावित कारण का पता लगने के बाद ईएनटी विशेषज्ञ इलाज शुरू कर देते हैं।  स्वास्थ्य सेवा पदाताओं को कोनिक साइनसाइटिस के अधिकांश मामलों में दवाओं से ज्यादा फायदा नहीं मिल पाता। एक अनुमान के मुताबिक, कोनिक साइनसाइटिस के 60 फीसदी तक मामलों में दवाओं से सफलतापूर्वक उपचार नहीं हो पाता। 2005 से, बैलून साइनोप्लास्टी की कांतिकारी पकिया का इस्तेमाल कोनिक साइनसाइटिस के लिए किया जा रहा है। इस न्यूनतम इन्वेसिव पकिया के तहत्, एक खास पकार के बैलून कैथेटर को नासिका के भीतर डाला जाता है जो संकमित साइनस कैविटी तक पहुंचता है।  फिर धीरे-धीरे बैलून को फुलाया जाता है जिससे साइनस मार्ग फैलता है। यह पकिया कम-से-कम रक्तस्राव का कारण बनती है और इसमें सामान्य संरचना में काट-छांट की जरूरत नहीं पड़ती। फूला हुआ बैलून अवरुद्ध साइनस की भीतरी सतह को खोलता है। यह पकिया अवरुद्ध साइनस से म्यूकस का बहाव सामान्य बनाए रखते हुए साइनस की कार्यपणाली को दुरुस्त रखती है। बैलून साइनोप्लास्टी का इस्तेमाल शल्यचिकित्सकों द्वारा कोनिक साइनसाइटिस के शिकार उन मरीज़ों के कारगर और सुरक्षित इलाज के लिए किया जाता है जो 12 सप्ताह तक दवाओं के सेवन के बावजूद "ाrक नहीं हो पाते हैं। अमरीकी एफडीए और भारतीय डीसीजीआई द्वारा स्वीकृत इस पकिया को भारत में मेडिकल इंश्यारेंस के तहत् भी कवर किया गया है।    

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