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यकृत की सबसे गंभीर बीमारी लीवर सिरोसिस

👤 | Updated on:16 March 2013 12:17 AM GMT
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   बदलती जीवनशैली से जहां लोगों का खानपान प्रभावित हुआ हैं, वहीं इससे उनकी सेहत भी बिगड़ी है। कम उम्र में शराब की आदत ने युवाओं के फेफड़े और लीवर को खासा नुकसान पहुंचाया है। ज्यादातर की इससे मौत भी हो जाती है। अल्कोहल से होने वाली लीवर प्रोब्लम को 'सिरोसिस आफ लिवर' कहा जाता है। इस बीमारी में लिवर की कोशिशाओं पर कटे जैसे निशान बन जाते हैं। ऐसी अवस्था में लिवर के सामान्य टिशू खत्म हो जाते हैं और उसकी जगह स्कार टिशू आ जाते हैं। ऐसी बीमारी होने की ओर भी वजह हैं। जैसे हेपटाइटिस 'सी' वायरस और ाढाsनिक सूजन वगैरह पर सबसे बड़ी वजह है- अल्कोहल का सेवन। ज्यादातर मरीज जिन्हें सिरोसिस की समस्या होती है, वे इसके शुरुआती लक्षण से अनजान होते हैं। जब तक जांच में यह बात साबित नहीं हो जाती। लीवर पांमण के कई लक्षण पहले नजर आने लगते हैं जैसे थकान, उल्टी और चक्कर आना, डायरिया और पेट दर्द वगैरह। जो लोग ज्यादा अल्कोहल का सेवन करते है, उन्हें खुद पर ध्यान रखने की ज्यादा जरूरत है। उन्हें डॉक्टरी जांच कराते रहना चाहिए ताकि लीवर पांमण के आखिरी चरण पर पहुंचने से पहले इलाज शुरू हो सके। सबसे बड़ी बात यह कि अगर अपने खानपान में बदलाव लाया जाए, तो लीवर पांमण से काफी हद तक बचा जा सकता है। दवाइयों के अलावा अगर लाइफस्टाइल में थोड़ा बदलाव किया जाए तो लीवर को स्वस्थ रखने में काफी मदद मिल सकती है। लिवर पांमण को भी कम किया जा सकता है। हर दिन नियमित रूप से कम से कम थोड़ी देर जरूर टहलें। वजन को नियंत्रण में रखें। खान-पान में बदलाव बहुत जरूरी है। अगर आप नॉन-वेजिटेरियन हैं, तो आपको मांसाहारी भोजन से नुकसान हो सकता है। जितना संभव हो शाकाहारी खाना खाए। शाकाहारी खाना आसानी से पच जाता है जिससे लीवर को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। अगर लिवर सिरोसिस गंभीर है तो शुरुआत में सिर्प कच्चे और ताजे फल और सब्जियां या उनके जूस पीएं। बाद में धीरे-धीरे दाल-चावल खाना शुरू करें। सामान्य दूध की बजाय बकरी का दूध ज्यादा फायदेमंद है। यह जल्द पचता है और शरीर को जरूरी प्रोटीन देता है। तला हुआ खाना और डेजर्ट वगैरह से हमेशा दूर रहें इससे लिवर डैमेज होने का खतरा ज्यादा होता है क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा फैट और चीनी होता है। एलोवेरा जूस का सेवन नियमित रूप से करें। इससे पाचन ािढया मजबूत होती है। शराबखोरी के कारण अथवा अन्य कारणों से क्षतिग्रस्त हो चुके लीवर को नया जीवन देने के लिए टिप्स पद्धति से एक शंट लगाया जाता है। इस शंट से पेट के खून की नसों में बढ़े हुए तनाव को कम किया जा सकता है। लीवर सिरोसिस नामक बीमारी में लीवर की कोशिकाएँ कड़क हो जाती हैं, उसके परिणामस्वरूप लीवर तक रक्त लाने वाली खून की नली जिसे कि पोर्टल वैन कहते हैं, उसमें प्रेशर बढ़ जाता है। इसे पोर्टल हाईपरटेंशन कहते हैं। लीवर सिरोसिस होने के कई कारण हैं, परंतु प्रमुख रूप से अत्यधिक एवं नियमित शराबखोरी के अलावा हिपेटाइटिस ए, हिपेटाइटिस बी या सी किस्म के पांमण हैं। एक बार लीवर सिरोसिस हो जाए तो उसका एकमात्र उपाय है लीवर ट्रांसप्लांट करना। यकृत को पूर्ण रूप से ठीक करने के लिए निम्ने उपचार करने होगें । 1.गर्म ठन्डा सेकः-यकृत का गर्म ठन्डा सेक अतयन्तं प्रभावकारी उपचार है 4 मिनट गर्म 2 मिनट ठन्डा करीव दिन में पाच से छः बार से करने पर नष्ट व दबी कोशिकायें ठीक होने लगती है गर्म ठन्डे सेक द्वारा लीवर पर रक्त का दबाब तेजी से पडता है फलस्वरूप यकृत तेजी से कार्य कर अपने को ठीक करने में लग जाता है । 2. मिटटी पटटी एनीमा ः-यकृत व पेट की मिटटी पटटी यकृत पर संकुचन पैदा कर विषाक्तट तत्वों को बाहर निकालने में मदद करती है नीम गिलोम व छाछ का एनीमा आंतों की सफाई कर पाचक रसों के स्त्राव को बढाकर तिल्ली के आकार को कम करने में मदद करता है ताकि पामक रोग का खतरा टल सके । 3. आहार ः-इस रोग में आहार की महत्वपूर्ण भूमिका है । इस रोग में नमक, मिर्च, एल्कोहल, ध्रुमपान व रासायनिक दवाओं के सेवन से परहेज रखना जरूरी है इस रोग में अनार, पपीता, ज्वा रे का रस, नीम गिलोय का सत, आवला महत्वरपूर्ण है । इस रोग में यदि रोगी 60 दिन का फलाहार व रसाहार उपवास करता है तो आशातीत लाभ मिलता है। विश्व में सिरोसिस आफ लीवर रोगियों की संख्या बढती जा रही है एक अनुमान के अनुसार भारत में करीब 5 प्रतिशत लोग सिरोसिस आफ लिवर के शिकार है । इस रोग में लीवर(यकृत) की नलियों के मार्ग में लचकदार सौत्रिक ततुं इस कदर पैदा हो जाता है की यकृत की जो कोशिकायें पाचक रस उत्पकन कर रही थी नष्ट हो जाती है या दब जाती है फलस्वरूप मुख्यि कोशिकाओं व शिराओं में रक्त के आने जाने में बाधा पड जाती है । किसी भी प्रकार का सिरोसिस आफ लीवर निम्न कारणों के कारण पनपता है । 1. मदिरा का अधिक सेवन 2. लम्बे समय तक कब्ज व एसिडिटी 3. मलेरिया, खसरा, पेचिश आदि पामक रोग पनपने के बाद 4. तिल्ली का बढ जाना व खून की कमी 5. स्टेलराइड व दर्द निवारक दवाओं का प्रयोग के कारण 6. रिकेटस, क्षय रोग, हद्वय रोग आदि स्थितियों में भी पनप जाता है । इस रोग में रोगी की हालत बदर हो जाती है पेरों में सूजन आ जाती है तिल्ली का आकार बढ जाता है, पेशाव कम आने लगता है भूख मर जाती है, शरीर का रंग बदल जाता है आदि लक्षण प्रकट होने लगते है । सिरोसिस आफ लिवर ठीक होने वाली बीमारी है यकृत अपने आप में पुनरूद्व भवन की क्षमता रखता है यकृत की कोशिकायें स्वयं ठीक होना जानती है । यकृत की जो कोशिकायें नष्ट हो गई है उनकी जगह नई कोशिकायें बनने की क्षमता यकृत के पास होती है । यह यकृत की सबसे गंभीर बीमारीडकैंसर के बाद़ है , इस बीमारी का इलाज लीवर प्रत्यारोपण के अलावा और कोई नहीं है। इस रोग में यकृत कोशिकाएं बडे पैमाने पर नष्ट हो जाती हैं और उनके स्थान पर फाइबर तंतुओं का निर्माण हो जाता है। यकृत की बनावट भी असामान्य हो जाती है, जिससे पोर्टल हाइपरटैंशन की स्थिति बन जाती है। चूहों पर किए गए अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने कहा है कि हल्दी में पाए जाने वाले करक्यूमिन से सिरोसिस यानी लीवर की बीमारी को ठीक किया जा सकता है।ऑस्ट्रिया के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि चूहों को दिए गए करक्यूमिन से जलन कम होती है। जलन की इस बीमारी से लीवर की कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। करक्यूमिन के कारण ही हल्दी का रंग पीला होता है.इसके पहले हुए अध्ययनों में कहा गया था कि इसके एंटी-इनफ्लेमाटरी और एंडीऑक्सीडेंट गुणों के कारण यह रोगों से आसानी से लड़ सकता है। वहीं कुछ अन्य अध्ययनों में यह बताया गया था कि यह कैंसर के ट्यूमर को दबा देता है। जो लोग मसालेदार खाना अधिक खाते हैं उनमें कैंसर की संभावना कम होती है। ऑस्ट्रिया के वैज्ञानिक यह पता लगाना चाहते थे कि करक्यूमिन लीवर की बीमारियों को कुछ समय के लिए टाल सकता है या नहीं. इन स्थितियों में प्राइमरी स्क्लेरोसिंग और प्राइमरी बिलिअरी सिरोसिस प्रमुख हैं.ये दोनों स्थितियाँ जीन संरचना में किसी कमी या स्व प्रतिरक्षित बीमारियों के कारण हो सकती हैं। इन दोनो स्थितियों मे लीवर को कई तरह का ऩुकसान पहुँच सकता है। वैज्ञानिकों ने बताया कि इससे उत्तकों को ऩुकसान पहुँच सकता है और अंततः घातक लीवर सिरोसिस हो सकता है.इस अध्ययन के प्रमुख ऑस्ट्रिया के ग्राज के चिकित्सा विश्वविद्यालय के गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी और हिपोटोलॉजी (लीवर का अध्ययन) के माइकल टर्नर थे। इस दल ने लीवर की गंभीर बीमारियों से पीड़ित चूहों को करक्यूमिन मिला हुआ और बिना करक्यूमिन वाला खाना दिया। वैज्ञानिकों ने चार से आठ हफ्ते तक इन चूहों के खून और उत्तकों का विश्लेषण किया। इसमें पता चला कि करक्यूमिन युक्त खाने ने पित्त की नली की रुकावट को महत्वपूर्ण रूप से दूर कर दिया और लीवर की कोशिकाओं का खराब होना रोक दिया। यह अध्ययन अभी शुरुआती दौर में है लेकिन वैज्ञानिकों को कहना है कि भविष्य में इससे लीवर की बीमारियों का इलाज हो सकता है।                                          (स्वास्थ्य-टीम)    

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