हर इंसान अपनी इच्छा से धर्म अपना सकता है
हर इंसान को अपने धर्म का चुनाव विवेक और अपने भीतर की खास जरूरत के आधार पर करना चाहिए। धर्म का चुनाव उन्हें अपने पास पैसा न होने, शिक्षा न होने, या भोजन न होने की वजह से या इन जैसी चीजों से प्रभावित होकर नहीं करना चाहिए। किसी को भी इन बातों के आधार पर कोई धर्म अपनाने का फैसला नहीं करना चाहिए। मैं किसी खास धर्म से नहीं जुड़ा हुआ हूं और किसी भी धर्म विशेष से अपनी पहचान नहीं बनाता। अगर कोई इंसान सचमुच आध्यात्मिक राह पर चल रहा है, तो वह कभी भी किसी खास वर्ग या धर्म से अपनी पहचान नहीं बना सकता। दुनिया के सभी धर्म लोगों के लिए उपलब्ध होने चाहिए। फिर लोगों को अपनी पसंद के हिसाब से उनका चुनाव करने दें। मुझे लगता है कि किसी को भी इस धर्म या उस धर्म में परिवर्तित करने की जरूरत नहीं है और न ही इंसान के लिए किसी धार्मिक दल से जुड़ना जरूरी है। आजकल आप जिसे धर्म के रूप में देख रहे हैं, वह धर्म नहीं है। सही मायने में धर्म शब्द का अर्थ है अपने भीतर की ओर उठाया हुआ एक कदम। धर्म कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे आप सड़कों या चौराहों पर प्रदर्शित करते हैं। दरअसल, यह तो अपने भीतर परिर्वतन करने वाली चीज है। जब यह वाकई एक आंतरिक प्रक्रिया है, तो फिर किसी को जबरन या फुसलाकर परिवर्तित करने या अपना दल बनाने की कोई जरूरत नहीं है और न ही अपने दल में सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए बेचैन होने की जरूरत है। फिर यह काम चाहे जो भी दल या संप्रदाय कर रहा हो, यह अनुचित है। मैं एक सामान्य बात कर रहा हूं, किसी खास संप्रदाय की नहीं। आज धर्म व धर्म के प्रचार-प्रसार के नाम पर लोग सारी सीमाएं तोड़कर संस्कृतियों को जड़ से मिटाने में लगे हैं। एक बार जब कोई संस्कृति उखड़ जाती है, तो उससे जुड़े अधिकांश लोग जीवन में अपने आचार-विचार को खो देते हैं। इस तरह के बलपूर्वक परिवर्तन से दुनिया के जो देश व समाज बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं, उनमें ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी और उत्तरी अमेरिका में रेड-इंडियन मुख्य हैं। -सुभाष बुड़ावन वाला, 18, शांतिनाथ कार्नर, खाचरौद।