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क्या आपको भी सुनाई पड़ती है मर्दांनगी पर खतरे की घंटी

👤 | Updated on:19 Feb 2017 12:07 AM GMT
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 कई सालों से सुनने में आ रहा है कि अगले 50 साल में दुनिया के सभी मर्द नपुंसक हो जाएंगे! मर्दों के बदलते हावभाव, चालढाल, मिजाज और तौर तरीकों पर गौर करें तो लगता है भविष्यवाणी सही उतरेगी। अनेक वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि मर्दों में स्पर्म काउंट यानि संतान पैदा करने के लिए जिम्मेदार शुक्राणुओं की संख्या पिछले 50 सालों में आधी रह गई है और इसमें लगातार गिरावट जारी है। यह स्थिति कई मायनों में खेदजनक है। वैसे भी, हायतौबा कितनी भी मचाई जाए, दुनिया के ज्यादातर मुल्कों में आबादी की चिंता की कोई वजह नहीं है। आबादी जितनी है वहीं थमे रखने के लिए भी 2.3 की वृद्धि जरूरी है क्योंकि सभी सलामत रहेंगे इसकी गारंटी नहीं है। और फिर आज के युवा दम्पत्तियों को पहले तो संतान दो-चार साल बाद चाहिए, इस प्रक्रिया में प्रजनन प्रक्रिया क्षीण पड़ने के आसार बढ़ते हैं। महिला तीस की हो जाए तो डिलीवरी सामान्य नहीं होने की दिक्कतें अलग। जब संतान चाहिए भी होती है तो एक या दो को पालना भी भारी पड़ता है। वैज्ञानिक दृष्टि से मर्दों के शुक्राणुओं में लगातार गिरावट के लिए मोटापा, अल्कोहल व अन्य मादक पदार्थों का सेवन, धूम्रपान, प्रदूषण और बढ़ता तनाव दोषी है। किंतु इससे इतर पक्ष भी हैंöवेशभूषा, चाल-चलन, उ"ना-बै"ना, आदतें वगैरह। युवाओं में जनानों की तर्ज पर लंबे बाल रखने, जब कभी अपने बदन-कपड़ों पर सेंट-इत्र-फ्रैंगरेंस-डीओडरेंट छिड़कते रहने, जनाना कार्यों मे दिलचस्पी रखने जैसे शौक चर्राने लगे हैं। इन सभी कृत्यों और महिलाओं को खुशनुमां रखने की मशक्कतों से उनकी रगों में जनानापन घर रहा है और मर्दांनगी घट रही है। व्यवस्था के रहनुमा बार-बार मर्दों को बच्चों की परवरिश में भागीदारी की हिमाकत करते हैं, नेताओं को उनके बहुमूल्य वोट की दरकार है। उनका बस चले तो मर्दों को बच्चे पैदा करने को भी बाध्य कर दें। मर्द लोग कितना बुझदिल हो सकते हैं इसका अनुमान हाई वे पर नहीं, शहर के बीचोंबीच चलती डीटीसी की भीड़भरी बस में यात्रियों के लुटते रहने से मिल जाता है। हर तीन-चार महीने ऐन दोपहर ऐसी वारदात हो जाती है। अंजाम देने वाले चार पांच से ज्यादा नहीं होते। एक हिम्मत करे और पांच-सात लोग हर बदमाश से लिपट जाएं या उसे दबोच लें तो ऐसी नापाक वारदातें रुक जाएं लाजिमी है, बस में 15-20 युवा भी जरूर होंगे। क्या उनकी मर्दांनगी महज प्रेमिका को फर्राटेदार बाइक में सैर कराने तक सीमित है? मर्दों के खून के "ंडेपन का अंदाज मुझे पहली बार करीब 32 साल मुझे एक सर्द रात भोपाल की ट्रेन में हुआ था। रात के ग्यारह बजे थे, भिंड स्टेशन पर ट्रेन रुकी। मैंने डब्बे से कुछ आगे बढ़ कर "sलीवाले से चाय का कुल्हड़ लिया कि ट्रेन चल पड़ी। मेरे डिब्बे का दरवाजा लॉक हो चुका था। दरवाजा "ाsकते-पीटते, गला फाड़ कर चिल्लाते रहने के 5-10 मिनट बाद दरवाजा खुला और मैं बच गया।  

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