तोते की कहानियां
अपनी दादी/नानी मांओं से कभी बचपन में हम तोतों की कहानियां सुना करते थे कि फलां राज्य में एक राक्षस रहता था। उसकी जान एक तोते में थी। फिर कोई वीर या बचन धुन का पक्का आदमी उस जगह पर जाता था, जहां वह तोता पिंजरे में बन्द रहता था। वह उसे तोते को पकड़ता तो उस राक्षस को अहसास हो जाता कि तोते को किसी ने पकड़ लिया है और वह व्यक्ति तोते के जिस-जिन अंग को तोड़ता राक्षस का वही-वही अंग कट-कट कर उसके शरीर से अलग होता जाता। कुछ यही हाल हमारी सीबीआई का भी सरकार ने बना रखा था। हमारी सारी राजनैतिक पार्टियों विपक्षी नेताओं की जान उस सीबीआई रूपी तोते में कैद रहती है। सरकार रूपी ताकतवर आदमी जब चाहे तोते को पकड़ कर उसके कान ऐंठ देता है और बेचारे विपक्षी दल और नेता फड़फड़ाने लगते हैं। माननीय कोर्ट ने इस तथ्य को पकड़ लिया और सरकार की वो धज्जियां उड़ाईं कि यदि कोई शर्मसार हो तो डूब मरे। कोर्ट के चाभुक के बाद तोते को आजाद करने की कवायद आरम्भ हुई। अब भी कवायद आरम्भ ही हुई है। पता नहीं परवान चढ़ती भी है या नहीं। लेकिन कांग्रेस के भोंपू प्रवक्ता दिग्विजय सिंह को जरूर ज्यादा तकलीफ हो रही है और वे सीबीआई को तोता कहने पर उबल रहे हैं। वे कहते हैं कि यदि हम इन विभागों को तोता और चूजा जैसे शब्दों से संबोधित करेंगे तो इनका मनोबल तो गिरना तय है। दिग्विजय सिंह जी जरा यह तो बताइए कि इस प्रकार की नौबत आई क्यों और इसका जिम्मेदार है कौन? इस सवाल का जवाब जरा मुश्किल है और इतना मुश्किल है कि शायद आप देना भी न चाहें। मैं नहीं कहता कि सिर्प कांग्रेस ने ही सीबीआई का इस्तेमाल किया असल में जो भी सत्ता में रहा। सीबीआई बेचारी उसी के हाथों में खेलती रही। यह तो इस देश का सौभाग्य है कि यहां की न्यायपालिका इतनी स्वतंत्र और मजबूत है कि वह इस बात का रोना छोड़िए कि इसे तोता कहें या चूजा अब तो इस बात की फिक्र कीजिए कि तोता कब और किस सीमा तक आजाद किया जाएगा। -इन्द्र सिंह धिगान, किंग्जवे कैम्प, दिल्ली।