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आपके बच्चे की लाइफलाइन तो नहीं बन रही फेसबुक

👤 | Updated on:18 Jan 2015 12:26 AM GMT
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 एक सवाल है। आपके गिर्द बच्चों सहित ऐसे कितने व्यक्ति हैं जिनका फेसबुक या अन्य सोशल साइट में अकाउंट नहीं है? ढूंढते रह जाएंगे! तेजी से डिजिटल होते युग में बेशक कम्प्यूटर और इंटरनेट चलाने की बुनियादी समझ जरूरी है, इनके बिना गुजारा नहीं। तो भी कुल मिलाकर लोग इनसे कितना नफा-नुक्सान है इसका ईमानदारी से जायजा लिया जाए। इंटरनेट के साथ हमें ढेरों ऐसे फालतू `संदेशों' की बौछार झेलनी पड़ती है जिनसे बचे रहना कम ही लोगों के बस की है, अधिकांश बहे जा रहे हैं, उन्हें इंटरनेट चलाता है। दुर्भाग्य यह कि ये अवांछित संदेश जब बार-बार पस्तुत होते हैं तो हमारा अवचेतन इन्हें स्वीकार कर अपनाने लगता है। एक अनुमान के अनुसार औसत व्यक्ति अपना 30 पतिशत समय कम्प्यूटर के क्रीन के सामने बिताता है। मीडियाकर्मी जैकलीन लियो कहते हैं, `एक ईमेल आपकी एकाग्रता को 15 मिनट के लिए भंग कर सकता है; मोबाइल पर एक कॉल या एक ट्विट आपका रुटीन ठप कर सकता है, जरूरी मीटिंग से बाहर खदेड़ सकता है।' इसकी लत अनेक अहम कार्यों पर पानी फेर सकती है। यों इंटरनेट में जानकारी और बढ़ोत्तरी के अवसरों की अपार सामग्री है किंतु इसका मुख्य इस्तेमाल चैटिंग और फेसबुक में कमेंट्स पोस्ट करने के लिए हो रहा है। दोस्ती के मायने भी उलटापलटा दिया है फेसबुकी जमात ने, जिनके सैकड़ोंöकुछ के हजारों में `दोस्त' हैं। अपनी समझ में सही दोस्ती कुछेक से ही निभाई जा सकती है। दस-बारह हो जों तो उनके नाम भी गड़बड़ाने लगते हैं। फेसबुक पर वे लोग भी आपके `दोस्त' बनना चाहते हैं जो सामने आने पर आपको पहचानना नहीं चाहते। वाह रे दोस्ती! बच्चों की तो दूर, मां-बाप को भी मंजूर नहीं फेसबुक से दूरी, ख्वाहिश इतनी जो बच्चे अकाउंट खोलने के पात्र नहीं उनका अकाउंट खोलने में खुशी-खुशी मदद करते हैं और बेताबी इस कदर कि नवजात बच्चों के फेसबुक अकाउंट खुलने लगे हैं, ऐसी अनेक रिपोर्टें सामने आ रही हैं। संपति फेसबुक सदस्यों में 38 पतिशत वे हैं जो सदस्यता के लिए जरूरी 13 साल से कम के हैं। क्या फेसबुक के संचालक यह नहीं जानते? वे यह भी जानते हैं कि छोटे-बड़े कोई भी फेसबुक से जुदाई झेल नहीं पाएंगे, इसीलिए दो डॉलर पतिमाह वसूलने का शिगूफा छोड़ा गया है, पतिक्रियाओं से यह आंकने के लिए कितना चार्ज रखा जाए। बच्चे सही पटरी पर रहें इस दृष्टि से हमारा कोई दायित्व यदि है तो उसका वाहन हम कैसे करते हैं, यह अहम है। फेसबुक आदि से दूर रहने का पलोभन देकर, जैसा पॉल बेयर ने अपनी 14 साल की बेटी को 200 डॉलर देकर किया या किसी और तरीकों से। फेसबुक तथा अन्य सोशल साइटों से जहां सूचना के पचार-पसार में क्रांति आई है वहीं असामाजिक व हिंसाई तत्वों ने इन के जरिए छद्म नाम से `दोस्त' बनकर `शिकार' पर धावे शुरू हुए हैं। चिकने-चुपड़े संवादों से पहले ये लोग `शिकार' का दिल जीतते हैं, फिर अपने पर आते हैं। इन्हीं साइटों के जरिए असामाजिक तत्व बच्चों से सेक्स व अन्य कई दुर्व्यवहार करते हैं जिनसे पिंड छुड़ाना बच्चों को भारी पड़ता है। अतः फेसबुक के बाबत सोच में आमूल तब्दील की जरूरत है।  

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