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पारादीप रिफाइनरी के लिये इंडियन आयल और ओडिशा सरकार के बीच हुआ समझौता
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नई दिल्ली, (भाषा)। ओडिशा सरकार और इंडियन आयल कार्पेरेशन ाआईओसा के बीच 34,555 करोड़ रुपये की पारादीप रिफाइनरी के लिये 700 करोड़ रुपये सालाना का ब्याज-मुक्त कर्ज उपलब्ध कराने सहित कुछ कर रियायतें देने पर सहमति बन गई है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंन्द्र प्रधान ने आज यह जानकारी दी।
राज्य सरकार और इंडियन आयल के बीच यह समझौता तब हुआ है जब कल प्रधान ने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात की। प्रधान ने इस मुलाकात के बाद ट्ववीट कर कहा, स्त्र् त्र्राज्य सरकार 15 साल के लिये 700 करोड़ रुपये सालाना का ब्याज मुक्त रिण उपलब्ध करायेगी। स्त्र् स्त्र्
प्रधान के कहने पर बुलाई गई बै"क में आईओसी और राज्य सरकार नई शर्तों पर सहमत हुये हैं।
सूत्रों ने बताया कि कंपनी और राज्य सरकार के बीच हुये ताजा समझौते के मुताबिक पारादीप रिफाइनरी को वित्तीय रूप से वहनीय बनाने के लिये राज्य सरकार हर साल 700 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज उपलब्ध करायेगी। यह कर्ज 15 साल के लिये प्रत्येक तिमाही समान किस्तों में दिया जायेगा। प्रत्येक तिमाही दिये गये ब्याज मुक्त रिण की वापसी उसी के अनुरूप 16वें साल से शुरू होगी। दूसरी तरफ आईओसी बेचे गये पेट्रोलियम उत्पादों पर वैट अथवा जीएसटी का भुगतान राज्य सरकार को करेगी।
पारादीप रिफाइनरी के उत्पादों की बिक्dरी पर वर्ष 2015- 16, 2016-17 और चालू वित्त वर्ष के दौरान जो भी वैट कंपनी ने वसूला है और उसका राज्य सरकार को भुगतान नहीं किया वह तुरंत राज्य सरकार के खाते में जमा कराया जायेगा। दूसरी तरफ ओडिशा सरकार आईओसी को 2016- 17 के लिये और चालू वित्त वर्ष की तीन तिमाहियों के लिये दिसंबर 2017 या फिर जनवरी 2018 तक ब्याज मुक्त कर्ज उपलब्ध करा देगी और उसके बाद प्रत्येक तिमाही यह रिण उपलब्ध कराया जाता रहेगा।
सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार आईओसी से रोके गये वैट पर ब्याज और जुर्माना नहीं लेने पर सहमत हुई है।
सूत्रों ने कहा कि राज्य सरकार और कंपनी के बीच हुये इस समझौते के बारे में ओडिशा उच्च न्यायालय, कटक में संयुक्त निवेदन दायर किया जायेगा।
ओडिशा सरकार ने इससे पहले 22 फरवरी को आईओसी को पत्र लिखकर अपने पहले किये गये वादे से पीछे हटने की जानकारी दी थी। तब राज्य सरकार ने कंपनी को 11 वर्ष तक बिक्dरी कर के भुगतान को आगे के लिये टालने का वादा किया था लेकिन बाद में इससे पीछे हट गई। इससे कंपनी को 2,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और कंपनी ने राज्य सरकार को अदालत में चुनौती दे दी और वैट देना बंद कर दिया। बहरहाल, नये समझौते से विवाद सुलटने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
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