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नजमा अख्तर : जामिया के इतिहास में जुड़ा एक नया पन्ना

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:14 April 2019 5:37 PM GMT
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हमारे संवाददाता

नई दिल्ली। नजमा अख्तर को जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर बनाया जाना एक नियुक्ति भर नहीं है बल्कि यह एक ऐसी नजीर है जो देश के शैक्षणिक हलकों में बार बार दोहराई जानी चाहिए। दरअसल देश के इस प्रतिष्"ित संस्थान के 100 बरस के इतिहास में यह पहला मौका है जब इसके दोनो शीर्ष पदों पर नजमा हैं। वर्ष 2018 में पूर्व केन्द्राrय मंत्री नजमा हेपतुल्लाह को जामिया का कुलाधिपति नियुक्त किया गया था।

केंद्रीय विश्वविद्यालयों के विजिटर की हैसियत से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से मिले प्रस्ताव के बाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (न्यूपा) की प्रमुख डॉ. नजमा अख्तर को वाइस चांसलर की जिम्मेदारी सौंपने पर अपनी मंजूरी की मोहर लगा दी। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में गोल्ड मेडल के साथ पढ़ाई करने वालीं जानी मानी शिक्षाविद प्रोफेसर नजमा अख्तर ने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट किया। वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाती भी रही हैं और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से भी सक्रियता से जुड़ी रहीं हैं।

1953 में जन्मीं प्रोफेसर नजमा के अध्ययन और उपलब्धियों की सूची बहुत लंबी है। उन्होंने राष्ट्रमंडल छात्रवृत्ति सहित कई अंतरराष्ट्रीय प्रशस्तियां अपने नाम की हैं। वह प्रतिष्"ित अंतरराष्ट्रीय संस्थानों जैसे ब्रिटेन के वारविक विश्वविद्यालय और नाटिंघम विश्वविद्यालय के अलावा आईआईईपी पेरिस यूनेस्को से शिक्षा प्राप्त कर चुकी हैं। उन्होंने यूनेस्को, यूनिसेफ के साथ काम किया है और कई देशों के साझा अनुसंधान कार्यों में भी शामिल रही हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुकीं प्रो नजमा को चार दशक के लंबे शैक्षणिक नेतृत्व का अनुभव है और वह एनआईपीए में 130 देशों के वरिष्" अधिकारियों के लिए अंतरराष्ट्रीय शैक्षिक प्रशासक पा"dयक्रम का 15 वर्ष तक सफल नेतृत्व करने के लिए जानी जाती हैं। देश में शैक्षिक प्रशासक तैयार करने के लिए इलाहाबाद में प्रदेश स्तर के पहले प्रबंधन संस्थान एसआईईएमईटी को स्थापित और सफलतापूर्वक विकसित करने का श्रेय भी उन्ही को जाता है। 1920 में स्थापित जामिया मिलिया इस्लामिया के इतिहास में प्रो नजमा अख्तर पहली महिला वाइस चांसलर बनी हैं। वह दिल्ली स्थित किसी भी केंद्रीय विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति भी हैं। इसे शैक्षणिक नेतृत्व के इतिहास में एक प्रगतिवादी निर्णय माना जा रहा है जो जामिया के लिए भी गौरव का विषय है। पूरे जामिया समुदाय ने इस नियुक्ति के निर्णय का स्वागत किया और उनके अनुभव के आधार पर विभिन्न विषयों और ज्ञान तथा अध्ययन के क्षेत्र में सकारात्मक प्रगति की उम्मीद जताई।

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