दिल्ली में खाद्य सुरक्षा कानून के प्रावधानों का उल्लंघन किया जा रहा हैः अध्ययन
नई दिल्ली, (वीअ)। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के लागू होने के चार वर्षों बाद दिल्ली में जन वितरण प्रणाली जमीनी स्तर पर मजबूती के साथ मूर्त रूप लेने से काफी दूर है और पारदश&िता एवं शिकायत निवारण व्यवस्थाओं के अभाव के चलते लाखों उपभोक्ता राशन डीलरों के रहमो-करम पर हैं। राष्ट्रीय राजधानी में इस कानून के क्dिरयान्वयन की स्थिति पर आधारित अध्ययन में दावा किया गया है कि राशन की दुकानें कामकाजी अवधि में आमतौर पर बंद होती हैं और अनाजों की आपूत&ि तय सीमा से कम होती है, उनकी गुणवत्ता भी खराब होती है, हालांकि दिल्ली सरकार की राय इससे जुदा है। दिल्ली रोजी रोटी अधिकार अभियान और त्र्सतर्क नागरिक संग"न की ओर से साल 2016-17 में किया गया यह अध्ययन आ" जिलों की 221 दुकानों पर केंद्रित है। दुकानों का यह आंकड़ा राष्ट्रीय राजधानी में स्थित कुल दुकानों का 10 फीसदी है। अध्ययन में कहा गया है कि कामकाजी अवधि के दौरान 60 फीसदी दुकानें बंद थीं जो गैरकानूनी हैं और यह लाइसेंस रद्द करने का आधार भी बनता है। खाद्य सुरक्षा कानून के अमल में आने के बाद दिल्ली में 19 लाख से अधिक राशन कार्ड जारी किए गए हैं।कई दुकानों में यह पाया गया कि पात्रता और मूल्य के विवरण से संबंधित सूचना पहले की है तथा यह उन राशन कार्ड की श्रेणियों से जुड़ी है जो खाद्य सुरक्षा कानून के लागू होने के बाद अमान्य हो चुके हैं। इसका मतलब यह है कि उपभोक्ताओं से अधिक पैसे लिए जा रहे हैं और उनको फायदों से उपेक्षित रखा जा रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून संसद द्वारा 2013 में पारित किया गया था। इसके तहत 50 फीसदी शहरी आबादी और 75 फीसदी ग्रामीण आबादी जन वितरण प्रणाली के तहत सब्सिडी वाले अनाज की हकदार है।अंत्योदय श्रेणी के तहत आने वाले परिवार 35 किलोग्राम अनाज प्रति माह पाने के हकदार हैं। अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकतर दुकानदार भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और वे अधिक पैसे ले रहे हैं या हर श्रेणी के राशन कार्ड पर तय सीमा से कम अनाज की आपूत&ि कर रहे हैं।