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पदक जीतने वाला चाय बेचने पर मजबूर

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:11 Sep 2018 6:36 PM GMT
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हमारे देश के प्रतिभावान व होनहार खिलाड़ियों को कितना सम्मान व सुविधाएं मिलती हैं यह किसी से छिपा नहीं। दूसरे देशों में यहां तक कि भारत से बहुत छोटे देशों में भी युवाओं को इतनी सुविधाएं दी जाती हैं ताकि वह एक दिन अपने देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मैडल लाकर देश का झंडा ऊंचा करें। एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। घरों पे नाम थे। नामों के साथ ओहदे थे, बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला। बशीर बद्र की यह शायरी इंडोनेशिया में हाल ही में सम्पन्न हुए एशियन गेम्स में सेपक टकरा में कांस्य पदक जीतने वाले 23 वर्षीय हरीश के हालात को बयां करती है। देश का नाम रोशन करने वाला यह होनहार खिलाड़ी मुफलिसी में जीवन बसर करने को मजबूर है, लेकिन बड़े-बड़े दावे करने वाला भारत सरकार का खेल मंत्रालय और दिल्ली सरकार इस खिलाड़ी के घर खुशियों का एक चिराग तक नहीं जला पा रही है। मजनू का टीला स्थित चाय स्टालों का शुक्रवार एकदम अलग नजारा था, वहां ग्राहक चाय की चुस्कियों के साथ-साथ चाय बेचने वाले युवक के संग सेल्फी भी ले रहे थे। यह युवक कोई और नहीं, बल्कि एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीतने वाले हरीश कुमार थे। हरीश जकार्ता से लौटते ही हमेशा की तरह एक बार फिर अपने पिता की चाय की दुकान पर पहुंच गए हैं। मजनू का टीला स्थित चाय की दुकान पर ही उनके घर की आजीविका टिकी हुई है। सेपक टकरा खेल में देश के लिए कांस्य पदक जीतने वाले हरीश कुमार ने बताया कि उनका परिवार बड़ा है और आय के स्रोत कम हैं। 23 वर्षीय हरीश ने कहा कि वह चाय की दुकान पर अपने पिता की मदद करता है। इसके साथ ही रोजाना दोपहर दो बजे से शाम छह बजे तक चार घंटे खेल का अभ्यास करते हैं। हरीश ने बताया कि वर्ष 2011 में उन्होंने इस खेल को खेलना शुरू किया था। वह टायर के साथ खेला करता था। कोच हेमराज ने उन्हें देखा और वह उन्हें स्पोर्ट्स अथारिटी ऑफ इंडिया ले गए जहां उनके हुनर को तराशा गया। सेपक टकरा खेल को 1982 में दिल्ली एशियन गेम्स के दौरान मान्यता मिली थी। इसे बॉलीवाल की तरह खेलते हैं, बस फर्प इतना है कि इसमें हाथ की जगह पैरों का प्रयोग होता है। इससे पहले एशियन गेम्स में कुश्ती में कांस्य पदक जीतने वाली दिल्ली की दिव्या काकरान ने भी सुविधाओं को लेकर नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था कि गरीब खिलाड़ियों की मदद नहीं की जाती। बस पदक मिलने पर ही उन्हें पूछा जाता है। हरीश ने कहा कि तमाम परिस्थितियों के बावजूद वह देश के लिए और अधिक पुरस्कार प्राप्त करने के लिए हर दिन अभ्यास करते रहेंगे। 2020 में टोक्यो ओलंपिक होने वाला है। सरकारों को इन पदक विजेताओं (संभावित) को पूर्व पूरी सुविधाएं देना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

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