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चीन में मुसलमानों पर अत्याचार

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:11 Nov 2018 5:17 PM GMT

चीन में मुसलमानों पर अत्याचार

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  • चीन में लगभग दस लाख उइगर मुसलमानों को सरकारी कैंप में रखकर उन्हें यातनाएं देने की खबर निश्चित रूप से लोकतांत्रिक देशों के लिए खासकर मानवाधिकार का सम्मान करने वाले देशों के लिए एक चुनौती है। इस खबर की पुष्टि सबसे पहले न्यूयार्प टाइम्स ने की, बाद में संयुक्त राष्ट्र की एक समिति ने चीन के इस अमानवीय व्यवहार पर मुहर लगाई। लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ से फ्लोरिडा के सीनेटर मार्को रूबियो और न्यूजर्सी के सीनेटर क्रिस स्मिथ ने पत्र लिखकर शिकायत की। दोनों सीनेटरों ने चीन सरकार के इस अमानवीय व्यवहार पर चिन्ता व्यक्त करते हुए उम्मीद जताई कि ``हमें उम्मीद है कि अमेरिकी विदेश विभाग इन दुर्व्यवहारों की निन्दा के अलावा अंतर्राष्ट्रीय मंचों और बहुपक्षीय संस्थानों के साथ इस मानवाधिकार संकट को आगे बढ़ाने के लिए समान विचारधारा वाली सरकारों के साथ मजबूत राजनयिक जुड़ाव भी करेगा'' चीन सरकार के खिलाफ यह आरोप लगभग साबित हो गया है कि वह उइगर मुसलमानों को शिविरों में रखकर यातनाएं दे रहा है और उन्हें इस्लामिक कट्टरता छोड़ने के लिए इस्लाम धर्म त्यागने पर विवश कर रहा है। चीन पर यह आरोप भी साबित होता है कि चीन उइगर मुसलमानों को इस्लाम धर्म न छोड़ने की स्थिति में कम्युनिस्ट बनकर नास्तिक बन जाने के लिए भी दबाव डाल रहा है।
  • दरअसल चीन का मानना है कि उइगर मुसलमान इस्लामिक कट्टरपंथ की वजह से अलगाववादी एवं आतंकी बन रहे हैं। अभी हाल ही में बहुत सारे उइगर मुस्लिम युवक आईएस में शामिल हो गए हैं। अपने स्तर पर स्थानीय प्रशासन और चीन की केंद्र सरकार ने उइगर मुसलमानों को मुख्यधारा में लाने के लिए बहुत प्रयास किए किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद चीन सरकार ने समान रूप से देश के मुसलमानों को इस्लामिक कट्टरता छोड़ने के लिए विवश करने की रणनीति अपनाई। इसके लिए उन्होंने देश की कुल तीस हजार मस्जिदों में नमाज पर प्रतिबंध लगा दिया और इन मस्जिदों में संचालित होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों पर पूर्ण प्रबंध लगा दिया साथ ही कुरान को पुलिस स्टेशनों में जमा करा लिया। सरकारी कर्मचारियों पर रोजा रखने और नमाज पढ़ने पर तो पहले ही प्रतिबंध लग चुका था। बाद में यह प्रतिबंध सभी मुसलमानों पर लगा दिया गया। महिलाओं को बुर्का ओढ़ने पर मनाही है। यह मनाही देश के सभी दस फिरकों के मुसलमानों पर लागू है किन्तु शिनजियांग प्रांत के लगभग एक करोड़ मुसलमानों में से ज्यादातर उइगर समाज के लोगों की जिन्दगी तो नारकीय बन गई है। चीन सरकार को इस बात का डर है कि ये तुर्की मूल के उइगर मुस्लिम सुरक्षा बल के जवानों पर हमले करते हैं और चीन से अलग होकर स्वतंत्र राष्ट्र बनाना चाहते हैं। चीन सरकार का मानना है कि ये मुस्लिम अलगाववादी खुराफात की सारी तरकीबें इस्लाम से ही सीखते हैं इसलिए सरकार इस्लाम पर ही प्रतिबंध लगाने पर विवश हुई।
  • हैरानी की बात तो यह है कि दुनियाभर के किसी मुस्लिम देश ने चीन की इन बर्बर कारनामों की आलोचना तक नहीं की। असल में चीन के इन अमानवीय गतिविधियों की वीडियो एवं फोटो मिलना अत्यंत दुष्कर है। इसीलिए किसी भी मुस्लिम देश का कोई भी पत्रकार उइगर मुसलमानों के नारकीय जीवन पर न तो लिखता है और न ही बात करता है। चीन सरकार के लगभग सभी मुस्लिम देशों से अच्छे व्यापारिक संबंध हैं इसलिए कोई भी मुस्लिम देश चीन से इस मुद्दे पर बात करने को तैयार नहीं है। वाशिंगटन थिंक टैंक ताहिर इंस्टीट्यूट फॉर मिडिल ईस्ट पॉलिसी ने चीन के बर्बरतापूर्ण कारनामों पर कई बार मुस्लिम देशों की आंखों पर पड़े पर्दे हटाने का काम किया है। इस संस्थान के फेलो डॉ. हसन हसन का मानना है कि कोई भी मुस्लिम देश चीन की इन शैतानी हरकतों की निन्दा नहीं करेगा। लेकिन इस बात पर आश्चर्य जरूर है कि जिस पाकिस्तान की सरकार, सेना और मुल्ले इस्लाम के प्रति भावनात्मक रूप से जुड़े हैं, वे ईशनिंदा के नाम पर तो अपने देश में कुछ भी अमानवीय हरकतें करने के लिए तैयार रहते हैं किन्तु इस्लाम को आतंक का स्रोत बताकर मुसलमानों को रौंदने वाले चीन के तलवे चाटने में कोई संकोच नहीं करती। पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर ने एक बार बताया था कि पाकिस्तान के नॉन-एक्टर कठमुल्लों ने 1990 के दशक की शुरुआत में उइगर मुसलमानों के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की थी। कुछ कट्टरपंथियों ने शिनजियांग जाने की कोशिश भी की थी किन्तु चीन सरकार ने पाकिस्तान से दो टूक शब्दों में कह दिया था कि यदि भविष्य में फिर ऐसी हरकतें दोहराई गईं तो परिणाम बहुत बुरे होंगे। बाद में वे ही नॉन-एक्टर संयुक्त राष्ट्र संघ की आतंकी सूची में आ गए और पाकिस्तान ने उनकी जान बचाने के लिए चीन के पैर पकड़ लिए। ऐसी हालत में चीन के खिलाफ पाकिस्तान से सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर कोई आवाज उठना मुश्किल है। पाकिस्तान में सभी सरकारी और गैर-सरकारी मीडिया म्यांमार के सात लाख रोहिंग्या मुसलमानों के लिए छाती पीट रहा है। चीन से 180 गुना छोटी अर्थव्यवस्था वाले म्यांमार को मुस्लिम देशों से धमकियां तक मिल रही हैं किन्तु चीन दस लाख उइगर मुसलमानों के साथ अत्याचार कर रहा है उस पर किसी मुस्लिम देश की जुबान नहीं खुल रही है। मुस्लिम देशों के शासकों की छोड़िए, उन देशों के स्वतंत्र मुस्लिम संगठन भी चुप्पी साधे हैं किन्तु भारत के मुसलमान इतने स्वतंत्र और निर्भीक हैं कि उन्होंने उइगर मुसलमानों के प्रति संवेदना एवं समर्थन व्यक्त करते हुए मुंबई में 14 सितम्बर को प्रदर्शन किया। चीन में मुसलमानों के सिर्प 10 फिरके हैं जबकि भारत में कुल 74 फिरके शांतिपूर्वक अपने संवैधानिक अधिकारों के साथ रहते हैं। सभी फिरकों के मुसलमानों को सारे मौलिक अधिकार इस्लामिक देशों में भी नहीं मिले हैं। यदि किसी इस्लामिक देश में उइगर मुसलमानों के पक्ष में कोई संगठन प्रदर्शन करता तो शायद उसके खिलाफ सरकार कानूनी कार्रवाई करती है किन्तु भारत में ऐसी कोई मनाही नहीं है।
  • बहरहाल लोकतांत्रिक देशों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को मानवता के प्रति घोर अत्याचार के खिलाफ आवाज के स्वर उठाने चाहिए और जो पाकिस्तान की मीडिया भारतीय सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाने वाले आतंकी समर्थकों के प्रति संवेदना व्यक्त करती है उन्हें उइगरों की स्थिति महसूस करनी चाहिए। भारत के चीन समर्थक सेकुलरिया ब्रिगेड को अहसास होना चाहिए कि आतंक के खिलाफ चीन ने एक फिरके को नियंत्रित करने के लिए समूचे इस्लाम को ही आतंक का स्रोत घोषित कर दिया है। जबकि भारत सरकार की नीति रही है कि वह किसी धर्म विशेष को आतंकवाद का स्रोत नहीं मानती। दुनिया का कोई भी विकसित लोकतांत्रिक देश चीन की तरह बर्बरता नहीं करता। तिब्बती बौद्धों के खिलाफ निर्ममता के लिए बदनाम चीन को एक बार फिर उइगर मुसलमानों के खिलाफ कूरता के लिए इस बात का अहसास दिलाया जाना चाहिए कि वह उइगर मुसलमानों के खिलाफ शैतानी हरकतें न करे और यह काम लोकतांत्रिक देश ही कर सकते हैं। इसके लिए चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाया जा सकता है। लोकतांत्रिक सरकारों को चाहिए कि चीन के उत्पादन खरीदने से मना कर दें क्योंकि उस देश में कौम को समाप्त करने का षड्यंत्र चल रहा है। संभव है कि चीन आर्थिक प्रतिबंध से डर कर उइगर मुसलमानों पर अत्याचार बंद कर दे।

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