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राफेल पर नए खुलासे से बढ़ी तकरार

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:11 Feb 2019 6:38 PM GMT
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फ्रांस से राफेल विमानों के सौदे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार हमले कर रही कांग्रेस को उस वक्त नया हथियार मिल गया, जब रक्षा मंत्रालय के एक नोट के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) फ्रांस के साथ अलग से बातचीत कर रहा था और इससे रक्षा मंत्रालय व भारतीय वार्ताकारों का पक्ष कमजोर हो गया था। मीडिया में ताजा खुलासे में दावा किया गया है कि फ्रांस से राफेल डील फाइनल करने में प्रधानमंत्री कार्यालय ने दखल दिया था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि इस नोट से साफ है कि प्रधानमंत्री ने राफेल सौदे में बिचौलिये का काम करके रक्षा मंत्रालय का पक्ष कमजोर किया और अपने मित्र अनिल अंबानी को ठेका दिलवाया। मैं कहने पर मजबूर हूं कि प्रधानमंत्री चोर हैं उन्होंने आगे कहा। राहुल ने दो टूक कहा कि आप (नरेंद्र मोदी) रॉबर्ट वाड्रा, पी. चिदम्बरम या किसी और के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया चलाना चाहते हैं तो चलाइए, लेकिन राफेल पर जवाब दीजिए। विपक्षी दलों ने भी लोकसभा में यह मुद्दा उठाते हुए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने और पीएम के इस्तीफे की मांग की। सरकार की ओर से जवाब देते हुए रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने जवाब में कहा कि यह गढ़े मुर्दे उखाड़ने जैसा है। पीएमओ द्वारा मामलों की जानकारी लेने को दखलंदाजी नहीं कहा जा सकता। रक्षामंत्री ने अखबार की रिपोर्ट को एकतरफा बताया और कहा कि न तो अखबार और न ही विपक्ष ने नोट के नीचे लिखी उस टिप्पणी को बताया, जिसमें तब के रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने ऐसी आशंकाओं को ओवर रिएक्शन बताया था। द हिन्दू अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक रक्षा मंत्रालय में डिप्टी सैकेटरी एसके शर्मा ने 24 नवम्बर 2015 को नोट लिखा था। इसमें कहा गया था कि राफेल पर पीएमओ की समानांतर बातचीत से रक्षा मंत्रालय और वार्ताकारों की भारतीय टीम का पक्ष कमजोर हुआ है। हमें पीएमओ से ऐसा न करने को कहना चाहिए। दावा किया गया है कि 24 नवम्बर 2015 के इस नोट में पीएमओ की ओर से बातचीत पर असहमति जताई गई। कहा गया कि पीएमओ के जो अफसर फ्रांस से वार्ता दल में शामिल नहीं हैं, उन्हें फ्रांस सरकार के अफसरों से समानांतर चर्चा नहीं करनी चाहिए। हालांकि तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने इस आपत्ति को अनावश्यक बताया था। राहुल गांधी ने जो दस्तावेज पेश किए हैं उनकी प्रमाणिकता पर कोई संदेह नहीं। बेशक सरकार अपने बचाव में कोई भी दलील दे पर प्रश्न तो यह है कि इस पूरे प्रकरण का भारत की जनता पर क्या असर होगा? दरअसल कांग्रेस की पूरी कोशिश यह साबित करने की है कि इस सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है और अनिल अंबानी को सौदा दिलाने में प्रधानमंत्री का सीधा हाथ है। प्रधानमंत्री की स्वच्छ व बिना दाग की छवि को गलत साबित करने के लिए यह कवायद हो रही है। कांग्रेस ने तय कर लिया है कि वह लोकसभा चुनाव में यह अपने मुख्य मुद्दों में से राफेल सौदे को बनाए रखेगी। लगता तो यह है कि नोट इस ओर इशारा करता है कि तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर और रक्षा मंत्रालय दोनों को ही राफेल सौदे पर अंतिम बातचीत या समझौते की कोई जानकारी नहीं थी। अंतिम शर्तें पीएम ने खुद तय की थीं।

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