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मोदी मंत्रिपरिषद में संतुलन

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:31 May 2019 6:41 PM GMT
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पधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी की दूसरी पारी उनके शपथ ग्रहण के साथ ही शुरू हो गई है। अपने मंत्रिपरिषद के 40 पतिशत सहयोगियों को बदलते हुए श्री मोदी ने 29 में से 22 राज्यों को पतिनिधित्व दिया है। पधानमंत्री सहित 58 सदस्यों के मंत्रिपरिषद में 24 कैबिनेट और 33 राज्य मंत्रियों ने शपथ ली। इनमें से 20 नए सदस्यों ने मंत्री पद की शपथ ली। इस मंत्रिपरिषद में सभी जाति को पतिनिधित्व मिला है किंतु 32 सदस्य सवर्ण जाति के हैं। इनमें 9 ब्राह्मण जबकि 3 ठाकुर हैं। अनुसूचित जाति के 6 और 4 अनुसूचित जनजाति के हैं। मंत्रिपरिषद में पधानमंत्री मोदी सहित ओबीसी सदस्यों की संख्या 13 है जबकि दो सिख और एक मुस्लिम को पतिनिधित्व मिला है। मंत्रिपरिषद में महिला सदस्यों की संख्या 6 है जो समूचे सदस्यों की 10 पतिशत है। इन 6 में से तीन कैबिनेट दर्जे की हैं जबकि 3 राज्यमंत्री।

मंत्रिपरिषद के संतुलन की दृष्टि से क्षेत्रीय एवं सामाजिक पतिनिधित्व पर ध्यान दिया जाता है। इस दृष्टि से मोदी के मंत्रिपरिषद के बारे में एक बात तो स्पष्ट है कि मुस्लिम पतिनिधि कम हैं जबकि ईसाई पतिनिधि इस बार कोई भी नहीं है। रही क्षेत्रीय पतिनिधित्व की तो 29 में से 22 राज्यों के सदस्यों को शामिल करके क्षेत्रीय संतुलन कायम रखने का पयास जरूर किया है किंतु यह पर्याप्त नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कुछ राज्यों का अभी और पतिनिधित्व बढ़ेगा जबकि एक ईसाई को भी मंत्रिपरिषद में स्थान मिलेगा। भाजपा के साथ यह मजबूरी है कि उसके मुस्लिम और ईसाई पत्याशी चुनाव नहीं जीत पाते। भाजपा के दो मुस्लिम और एक ईसाई पत्याशी खड़े थे किंतु वे हार गए। इसीलिए उनका पतिनिधि भी पर्याप्त नहीं हो पाता। इसीलिए मुस्लिम और ईसाई पतिनिधि पिछली सरकार में भी राज्यसभा के ही सदस्य थे। राज्यसभा से ही लाना पड़े तो सरकार को लाना चाहिए तभी मंत्रिपरिषद में सामाजिक संतुलन कायम हो पाएगा।

इस मंत्रिपरिषद की विशेषता यह है कि इसमें जनपतिनिधि के अलावा विशेषज्ञों को भी स्थान मिला है। मशहूर रक्षा विशेषज्ञ के सुब्रह्मण्यम के पुत्र और सेवा निवृत्त विदेश सचिव एस. जयशंकर एक कुशल कूटनीतिक व्यक्तित्व के लिए लब्ध पतिष्ठ हैं। उन्हें कई देशों में भारत डिप्लोमैटिक एजेंट के रूप में कार्य करने का अवसर मिला है और वे विदेश नीति एवं कूटनीति के मर्म को अच्छी तरह समझते हैं। अमेरिका, चीन, रूस और यूरोपियन देशों के साथ भारतीय संबंधों को अपने राष्ट्रीय हितों के अनुकूल संबंधों को सुधारने और संवर्धन में उन्हें महारत हासिल है।

इस मंत्रिपरिषद में सुषमा स्वराज के शामिल न होने से ज्यादा हैरानी इसलिए नहीं हुई क्योंकि अक्टूबर 2018 में ही उन्होंने मध्यपदेश की एक जनसभा में ऐलान कर दिया था कि अब वे चुनाव नहीं लड़ेंगी किंतु राजनीति में सकिय रहेंगी। उनका संकेत स्पष्ट था कि पार्टी नेतृत्व चाहेगा तो राज्यसभा से राजनीति में सकिय रखने का अवसर दे सकता है। किंतु एस. जयशंकर द्वारा कैबिनेट मंत्री पद की शपथ लेने से स्पष्ट हो गया कि विदेश मंत्री के रूप में अब सुषमा जी की जरूरत नहीं रही पधानमंत्री मोदी को।

अरुण जेटली का इस मंत्रिपरिषद में न होना बड़ी बात है। श्री जेटली वित्तमंत्री की भूमिका में अधिकारियों के साथ सामंजस्य कायम करने में कुशल तो थे ही साथ ही पार्टी के लिए बड़े उपयोगी थे। पार्टी के पवक्ता उनसे दिशा-निर्देश लेते थे और जब नया आइडिया लेना होता था तब पवक्ता उन्हीं से संपर्प करते थे। संसद में कई अवसर आए जब उन्होंने सरकार के खिलाफ राफेल, नीरव मोदी, विजय माल्या, मेहुल चौकसी और ललित मोदी से संबंधित मुद्दों पर हमलावर हुए विपक्ष को तार्पिक जवाब दिया। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि अरुण जी के संबंध जितने अच्छे पत्रकारों से थे उतने ही अच्छे सभी राजनीतिक दल के नेताओं, न्यायपालिका के जजों व वकीलों तथा उद्योगपतियों से भी थे। सरकार और पार्टी के लिए बहुत उपयोगी थे अरुण जी। मजे की बात तो यह कि अरुण जी पधानमंत्री मोदी और अमित शाह दोनों के कानूनी सलाहाकार भी रहे हैं और दोनों उन पर बहुत भरोसा करते हैं।

चर्चा तो पहले से ही थी कि अमित शाह इस बार मोदी मंत्रिपरिषद में शामिल होंगे इसलिए जब उन्होंने कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली तो लोगों को बहुत हैरानी नहीं हुई। गुजरात में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंत्रिपरिषद में अमित शाह थे तो राज्य मंत्री किंतु वे गृह विभाग के साथ-साथ कई विभाग संभालते थे। मोदी जी ने शाह को हमेशा अपना विश्वसनीय सहयोगी माना। पधानमंत्री मोदी की सबसे बड़ी पाथमिकता है आर्थिक सुधार, कृषि सुधार, किसान कल्याण तथा राष्ट्रीय सुरक्षा एवं गरीबें की कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाना। मोदी जी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि सरकार में रहकर भी अमित शाह और वे स्वयं पार्टी की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं। जो भी पार्टी का अध्यक्ष बनेगा, वह मोदी-शाह के बिना कोई भी बड़ा फैसला नहीं कर पाएगा। रही चुनावी रणनीति की तो वह पहले दो लोग तय करते थे अब तीन लोग तय कर लिया करेंगे। अमित शाह की भूमिका ठीक उसी पकार की होगी जैसी की वाजपेयी सरकार में आडवाणी की थी। आडवाणी जी न सिर्प गृह मंत्रालय के साथ पार्टी मामलों को देखते थे बल्कि दूसरे मंत्रालयों के कामकाज की निगरानी भी उन्हें ही रखनी पड़ती थी। इसीलिए उन्हें बाद में उप पधानमंत्री बना दिया गया ताकि दूसरे मंत्रालय की फाइलें पहले उनके पास आएं फिर पधानमंत्री कार्यालय जाएं। लगता है पधानमंत्री मोदी ने अमित शाह को सामंजस्य की भूमिका के लिए ही मंत्रिपरिषद में शामिल किया है।

चर्चा का विषय यह भी है कि जनता दल (यू) का कोई पतिनिधि मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं हुआ क्योंकि पार्टी पमुख नीतिश कुमार सांकेतिक पतिनिधित्व नहीं चाहते थे। नीतीश का मानना है कि सदस्य संख्या के अनुसार ही मंत्रियों की संख्या तय की जानी चाहिए। पधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष ने तय किया था कि अभी मंत्रिपरिषद का आकार छोटा रहेगा। इसलिए सहयोगियों की पार्टी से एक-एक सदस्य को कैबिनेट में शामिल किया जाए। बाद में जब कैबिनेट का विस्तार होगा फिर घटक दलों के एक से अधिक सदस्यों को अवसर दिया जाएगा। नीतीश का मानना है कि जब मंत्रिपरिषद का विस्तार होगा तभी वे पतिनिधित्व पर विचार करेंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि उन्हें किसी तरह की सरकार से नाराजगी

नहीं है।

बहरहाल संविधान के 91वें संशोधन के माध्यम से 2003 में केन्द्राrय व राज्य सरकारों के मंत्रिपरिषद के स्वरूप संबंधी कानून के मुताबिक केन्द्र सरकार लोकसभा की कुल सीटों की संख्या का 15 पतिशत तक का मंत्रिपरिषद गठित कर सकती है जबकि राज्य सरकार विधानसभा के कुल सदस्यों के 15 पतिशत सदस्यों की संख्या के बराबर ही मंत्री नियुक्त कर सकते हैं। अभी सरकार क्षेत्रीय संतुलन के साथ-साथ एनडीए घटक दलों एवं अपनी पार्टी के कुछ लोगों को सरकार में पतिनिधित्व देने के लिए मंत्रिपरिषद का विस्तार करेगी।

बहरहाल मंत्रिपरिषद की कार्यकुशलता उसके नेता यानि पधानमंत्री के सकियता एवं कौशल पर निर्भर है। 2014-19 तक मंत्रिपरिषद पर जैसा नियंत्रण एवं निर्देशन पधानमंत्री का था उसको देखते हुए जनता ने यदि पधानमंत्री पर इतना भरोसा व्यक्त किया है तो ईमानदारी से जन सेवा एवं कल्याण के लिए समर्पित मोदी सरकार के `सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' के संकल्पों वाली सरकार और अच्छी साबित हो सकती है।

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