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चीन चाहता ही नहीं एलएसी पर शांति

👤 Veer Arjun | Updated on:10 Aug 2020 4:45 AM GMT

चीन चाहता ही नहीं एलएसी पर शांति

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चीन भारत के साथ सीमा विवाद को जारी रखने में ही अपना फायदा देखता है, इसलिए वह चाहता ही नहीं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति हो। यही कारण है कि वह भारत को उकसाने के लिए एलएसी पर सेना का जमावड़ा करता है। किन्तु भारत ने भी अब अपनी रणनीति बदल ली है और चीन को दो टूक शब्दों में बता दिया है कि आज का भारत उसकी दबंगईं की परवाह नहीं करता। मतलब यह कि चीन जिस भाषा में समझेगा, उसे उसी भाषा में समझाने में सक्षम है भारत। चीन चाहता ही नहीं कि भारत के साथ उसके सीमा विवाद का समाधान हो।

गत सप्ताह भारत-चीन संबंधों को लेकर दो रिपोर्टे आईं। पहली रिपोर्ट भारतीय रक्षा मंत्रालय की आईं और इसमें कहा गया था कि '17-18 मईं को वुंगरंग नाला, गोगरा और पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर चीनी सेनाओं ने अतिव््रामण कर लिया है।' इसी रिपोर्ट में आगे कहा गया था कि 'चीन द्वारा एकतरफा आव््रामकता के चलते पूवा लद्दाख में स्थिति संवेदनशील बनी हुईं है, इस पर लगातार करीबी निगरानी और त्वरित कार्रवाईं की आवश्यकता है।' रिपोर्ट में कहा गया है कि ये गतिरोध लंबे समय तक बना रह सकता है। इस रिपोर्ट का शीर्षक था 'चाइनीज ऐग्रोसन आन एलएसी'। इस रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गईं थी कि भारतीय सेना की सहायता के लिए अपग्रोडेड फीचर्स के साथ 156 इन्प्रौंट्री काम्बेट व्हीकल (आईंसीवी) को तैनात करने का भी आर्डर दिया गया है। रक्षा मंत्रालय की इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 12 जून को इंडियन कोस्ट गार्ड में एक फास्ट पेट्रोल वैसल (एफपीवी) आईंसीजीएस कनकलता बरुआ को भी शामिल किया गया है, जिसे काकीनाडा में तैनात किया गया है। रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि जून में भारत इलेक्ट्रानिक लिमिटेड (बीईंएल) द्वारा निर्मित और 761 करोड़ की लागत के 30 एडवांस तारपीडो दिकाय सिस्टम (एटीडीएस) भी तैनात किए गए हैं।

असल में यह रिपोर्ट जून की है जो 7 अगस्त को रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट से हटा ली गईं। इस रिपोर्ट के 'एकतरफा आव््रामकता' से पैदा हुए हालात संवेदनशील बने हुए हैं और यह गतिरोध लंबा चल सकता है एक ऐसा अंश है जिसे लेकर काफी चर्चा हुईं। कहा जाने लगा कि चीनी सेना तो भारतीय भूभाग पर कब्जा करके बैठी है।

इसी बीच एक और रिपोर्ट आईं एम्सटर्डम स्थित यूरोपियन फाउंडेशन फार साउथ एशियन स्टडीज से। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 'चीन के साथ पूवा लद्दाख पर सीमा विवाद के बाद भले ही पूरी दुनिया, खासकर अमेरिका भारत के साथ हो, भारत अकेले दम पर ही चीन को चुनौती देने का विश्वास रखता है।' रिपोर्ट में कहा गया है कि 'अमेरिका ने भारत को पेइचिग के खिलाफ क्वाड का गठन करने का मौका भी दिया लेकिन भारत ने दिखाया है कि वह खुद ही चीन के सामने किसी भी मुद्दे पर मजबूती से खड़ा हो सकता है।' रिपोर्ट में कहा गया है कि 'जून में चीन और भारत की सेनाओं में हुईं झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच कईं वार्ताएं हुईं हैं और पूरी तरह न सही, वुछ हद तक सीमा पर स्थिति सामान्य हुईं है।' रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पैंगोंग पर सेना पीछे करने के शुरुआती चरण में चीनी सेना फिगर 4 से फिगर 5 पर गईं लेकिन पहाड़ी के किनारे तैनाती जारी रखी। भारत इस बात पर जोर दे रहा है कि चीन फिगर 5 से हटकर 8 पर जाए। वहीं चीन के प्रातिनिधि भारत से मांग कर रहे हैं कि वह फारवर्ड इलाके से हटे लेकिन भारत ने तब तक हटने से इंकार कर दिया है कि जब तक चीन पूरी तरह से पीछे नहीं चला जाता।

भारतीय रक्षा मंत्रालय की जिस रिपोर्ट पर भारत में काफी चर्चा है उसी के आधार पर यूरोपियन फाउंडेशन फार साउथ एशियन स्टडीज ने कहा है कि 'दोनों पक्षों को मान्य हों, ऐसे नतीजों पर पहुंचने के लिए सैन्य और वूटनीतिक स्तर पर वार्ता जारी है, लेकिन फिलहाल यथास्थिति वुछ वक्त तक बनी रहेगी।' रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चीन भारत को द्विपक्षीय संबंध सुधारने का लालच दे रहा है और कह रहा है कि भारत आसान रास्ता अपनाए किन्तु भारत ने अपनी स्थिति इतनी मजबूत कर ली है कि किसी भी टकराव की स्थिति में वह मजबूत साबित होगा और अपने क्षेत्र की सुरक्षा करने में सक्षम साबित होगा।

भारत की हिम्मत से चीन को भले ही हैरानी हो रही है किन्तु सच यही है कि भारत अब चीन को इस बात का एहसास कराना चाहता है कि चीन को अब हकीकत समझने की जरूरत है। असल में दोनों देशों की एलएसी के बारे में अपनी धारणा हैं और वुछ क्षेत्रों में यह धारणा ओवर लैप यानि एक दूसरे के क्षेत्र को प्राभावित करती है। चूंकि एलएसी का सीमांकन नहीं किया गया है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और दायित्वों के प्राति बहुत कम सम्मान रखने वाला चीन, बिना सीमांकन वाली लाइन का फायदा उठाते हुए अपनी विस्तारवादी अतिव््रामण रणनीति के तहत नए दावे करता है और वहां तब तक सैनिकों की तैनाती और बुनियादी ढांचे का विकास करता है जब तक कि उसका विरोध न किया जाए या फिर संघर्ष की नौबत न आ जाए। भारतीय सेना की तरफ से हर बार विरोध 'गतिरोध में बदल जाता है।' गतिरोध खत्म करने में समस्या ये आती है कि दोनों देशों में भावनाओं एवं राष्ट्रवाद और मीडिया की नजर के कारण सम्मानजनक वापसी बेहद मुश्किल हो जाती है, इस प्राकार दोनों पक्षों के लिए किसी भी समझौते पर पहुंचना राजनीतिक तौर पर महंगा पड़ता है। एलएसी का सीमांकन होने तक गलवान और पेगांग त्सो न तो पहला और न ही आखिरी गतिरोध है, बशत्रे दोनों पक्ष 'सहमत होने के लिए सहमत' हों।

चीन की परेशानी यह है कि भारत तेजी से एलएसी पर इंप्रास्ट्रक्चर विकसित कर रहा है। उसे लगता है कि यदि भारत भी उसी की तरह एलएसी पर इंप्रास्ट्रक्चर विकसित कर लेगा तो वह अपना रणनीतिक लाभ खो देगा। चीन एलएसी का सीमांकन तब तक नहीं चाहेगा जब तक कि उसे इस बात का एहसास न हो जाए कि यदि सीमांकन नहीं हुआ तो चीन की हालत खराब होगी।

चीन के प्राति भारत को किसी भी तरह नरमी का व्यवहार नहीं करना चाहिए और चीन को एहसास कराना होगा कि भारत जहां उससे निपटने में अकेले ही सक्षम है वहीं क्वाड के माध्यम से चीन को हतोत्साहित करने के लिए मित्र देशों अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान और ब्रिटेन के साथ हर अवसर का इस्तेमाल करेगा। चीन को अपनी पुरानी आदतों को बदलने के लिए मजबूर करना होगा और चीन को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर तभी किया जा सकता है जब देश दीर्घकालिक रणनीति के तहत आर्थिक, सामरिक एवं वूटनीतिक रूप से ऐसा करने का संकल्प ले। भारतीय जनमानस से यह गलतफहमी निकालनी होगी कि भारत तो चीन की तुलना में कमजोर देश है। चीन को इस बात का एहसास कराने के लिए कि वह भारत के साथ पंगे लेकर अपना ही नुकसान कर रहा है, सरकार, सेना और समाज को एक साथ एक निष्ठभाव से संकल्प करना होगा।

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