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कच्चे तेल के रिजर्व स्टॉक खोलने का ऐलान

👤 Veer Arjun | Updated on:27 Nov 2021 5:00 AM GMT

कच्चे तेल के रिजर्व स्टॉक खोलने का ऐलान

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-अनिल नरेन्द्र

कच्चे तेल की कीमत में पिछले एक साल में आईं करीब 60 प्रातिशत वृद्धि को देखते हुए भारत और अमेरिका समेत प्रमुख तेल आयातक देशों ने अपने रिजर्व स्टॉक का एक हिस्सा बाजार के लिए जारी करने का जो पैसला किया है, उससे फौरी तौर पर तो तेल के दाम घटेंगे ही, इससे उन तेल उत्पादक देशों पर दबाव बनने की भी उम्मीद है, जो जानबूझ कर कम तेल उत्पादन करते हैं, जिसके कारण दाम बढ़ाते हैं। तेल और गैस की ऊंची कीमतों से जूझते दुनिया के प्रामुख देशों ने तेल की आपूर्ति बढ़ाने का जो पैसला किया है यह एक ऐतिहासिक पैसला है। अमेरिका ने पांच करोड़, भारत ने 55 लाख और जापान ने 42 लाख तेल (बैरल) निकालने का ऐलान किया है। 1990 में खाड़ी युद्ध के चलते अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी उछाल से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी गिरावट आईं थी। तब हमारे पास केवल तीन हफ्ते के आयात का पैसा बचा था। तेल के भावी संकट को देखते हुए तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 1998 में भंडार बनाने का सुझाव दिया था। दुनिया के काफी देशों ने तेल के रणनीतिक रिजर्व भंडार के बारे में शायद पहली दफा सुना होगा। रणनीतिक भंडार इसलिए बनाना जरूरी है कि प्रावृतिक आपदाओं, युद्ध और आपूर्ति में अनपेक्षित व्यवधान से निपटने के लिए रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार बनाए जाते हैं।

भारत के पास पूवा और पश्चिमी समुद्र तटों पर जिन जगहों पर बनी भूमिगत गुफाओं में 3.8 करोड़ बैरल कच्चा तेल आपातकालीन भंडार के रूप में रखा है। यह भंडार आंध्र प्रादेश के विशाखापत्तनम, कर्नाटक के मंगलूरो और पदूर में है। 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार ने ओडिशा के चंडीखोल और कर्नाटक के पदूर में दूसरे चरण के भंडार बनाने की मंजूरी दी है। कच्चा तेल भंडारण जमीन के नीचे पत्थरों की गुफाओं में किया जाता है। इन्हें हाइड्रो कार्बन जमा करने के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता है। आपातकालीन तेल भंडार खोलने के ऐलान के बाद कच्चे तेल के दामों में गिरावट देखी गईं। लोग यह जानना चाहते हैं कि सरकारों के रिजर्व तेल निकालने के फैसले से क्या उन्हें सस्ता पेट्रोल- डीजल मिलेगा। लेकिन इसके पीछे कईं कारक जिम्मेदार होते हैं। रिफाइनरियां कच्चे तेल की अग्रिम खरीद करती हैं। ऐसे में वह फिलहाल महंगे तेल को शोधित कर रही हैं। अभी कच्चे तेल के दाम ज्यादा घटने के आसार कम हैं, पर चुनावी मौसम में सरकार पहले की तरह रोज-रोज पेट्रोल-डीजल महंगा करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती। इसी कारण हाल में हुए उपचुनावों के नतीजे आने के बाद जो भाजपा के लिए निराशाजनक थे, पिछले दिनों ईंधन पर ज्यादा शुल्क में कटौती की ही गईं पर चूंकि उपभोक्ता पर ज्यादा असर नहीं पड़ा, इसलिए अब यह उपाय अपनाया जा रहा है।

हमारी सरकार के लिए रिजर्व स्टॉक जारी करना इसलिए भी आसान है, क्योंकि कोविड के दौर में उसने करीब 19 डॉलर प्राति बैरल कच्चा तेल प्राचुरता में खरीद कर अपना रिजर्व स्टॉक भर लिया था। लेकिन तेल उत्पादक देशों की दबंगईं के खिलाफ उठाए जा रहे इस कदम की तारीफ तो की ही जानी चाहिए। अच्छी बात यह भी है कि तीसरा सबसे बड़ा आयातक भारत अब सऊदी अरब के नेतृत्व वाले कोटे पर निर्भरता की बजाय आयात के दूसरे विकल्पों पर भी गंभीरता से विचार कर रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि ओपेक तेल उत्पादक देश इस कदम को सही सन्दर्भ में लेते हैं और इस पर सकारात्मक ढंग से रिएक्ट करते हैं।

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