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भाजपा की सूची

👤 Veer Arjun | Updated on:17 Jan 2022 4:45 AM GMT

भाजपा की सूची

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उत्तर प्रदेश उन सभी पांच राज्यों में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र है जहां चुनाव होने जा रहे हैं। इसका कारण है कि उत्तर प्रादेश में जो भी राजनीतिक प्रायोग आजमाया जाता है, उसी को पूरे उत्तर भारत में लागू करने का प्रायास किया जाता है। पहले चरण में कुल 113 सीटों पर चुनाव होने हैं। भाजपा ने 107 सीटों का ऐलान किया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रासाद मौर्यं की सीटों को लेकर कोईं संदेह न रह जाए इसलिए इन दोनों सीटों का भी ऐलान कर दिया गया है।

योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से पडरौना की दूरी ज्यादा नहीं है मात्र 70 किलोमीटर है जहां से स्वामी प्रासाद मौर्यं चुनाव लड़ते हैं। स्वामी प्रासाद मूल रूप से प्रातापगढ़ के निवासी हैं किन्तु उन्होंने अपना कार्यंक्षेत्र देवरिया जिले के पडरौना को बनाया हुआ है।

प्रात्यक्ष रूप से पूर्वाचल की सीटों को प्राभावित करने की रणनीति के तहत ही योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से लड़ाने का पैसला हुआ है। इससे समाजवादी पाटा की तिलमिलाहट भी सामने आ गईं। सपा को ऐसा महसूस हुआ कि उत्तर प्रादेश के पूवा जिलों में भाजपा की सीटों पर सव््िरायता के लिए ही योगी को गोरखपुर से लड़ाने का पैसला हुआ है।

भाजपा ने 107 में से 44 सीटें पिछड़े वर्ग यानि ओबीसी को दी हैं, 19 अनुसूचित जाति एवं जनजाति के प्रात्याशियों को जबकि 44 सीटों पर सवर्ण प्रात्याशी उतारे हैं। ओबीसी और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के 60 प्रातिशत प्रात्याशी घोषित हुए हैं तो 40 प्रातिशत में उन सवर्ण प्रात्याशियों को भी समाहित करने की कोशिश हुईं है जो भाजपा के परंपरागत समर्थक रहे हैं।

भाजपा एक रणनीति के तहत अभी हाल ही में पार्टी छोड़कर समाजवादी पाटा में गए पिछड़े वर्ग के नेताओं के खिलाफ तीखा कटाक्ष करने से भले ही बच रही है किन्तु उसकी नजरें ओबीसी वोट पर हैं और वह इस बात का एहसास दिलाने का प्रायास करती है कि जो पाटा छोड़कर गए हैं उनकी व्यक्तिगत मजबूरी रही होगी। भाजपा स्वामी प्रासाद मौर्यं के उस भाषण को भी अपने पक्ष में मानती है जिसमें उन्होंने सवर्णो के ईंडब्ल्यूएस आरक्षण को निशाना बनाया तथा यह कि उनके बसपा छोड़ने की वजह से ही अब बसपा जनाधारविहीन पाटा हो गईं है। अपने भाषण में सवर्णो को निशाना बनाकर पिछड़े वर्ग में कितनी लोकप््िरायता उन्हें मिली यह तो चुनाव परिणाम आने पर पता चलेगा किन्तु उनके भाषण के बाद अखिलेश यादव ने जरूर महसूस किया कि अतिउत्साह में सवर्ण वोटों की उम्मीद लगाए बैठे उनके प्रायासों पर पानी पेर गए स्वामी प्रासाद मौर्यं। असल में उत्तर प्रादेश के सवर्णो की मजबूरी भी बन गईं है भाजपा, क्योंकि जितना उन्हें योगी से डरवाया जाता है उससे ज्यादा उन्हें मोदी पर भरोसा रहता है।

सच तो यह है कि उत्तर प्रादेश हो या देश का कोईं भी राज्य जातीय समीकरण एक हकीकत है जिसे नजरंदाज करने का कोईं भी साहस नहीं करता किन्तु पिछले सात वर्षो में पीएम मोदी ने जातीय समीकरण से हटकर एक लाभाथा वर्ग की अलग ही श्रेणी बना दी है। यह लाभाथा वर्ग किसी भी जाति या धर्म का हो, वह अपना भला देखता है। अब सिर्प जातीय एवं धार्मिक उन्माद की लहर पर चुनावी वैतरणी पार करना संभव नहीं रह गया है। भाजपा को अपने इन्हीं लाभाथा वर्गो पर भरोसा है।

इसीलिए भाजपा अपने इसी लाभाथा वर्ग को प्राभावित करने के उद्देश्य से विपक्ष के किसी उकसावे की तीव्र प्रातिव््िराया देने से बच रही है। भाजपा इस बात का संदेश देने का प्रायास कर रही है कि उस पर पिछड़े वर्ग के नेताओं के पाटा छोड़ने से कोईं असर पड़ने वाला नहीं क्योंकि वह तो सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास पर भरोसा करती है।

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