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भाजपा की सूची

👤 mukesh | Updated on:3 March 2024 5:28 AM GMT

भाजपा की सूची

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आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने 195 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है, इनमें 28 महिलाएं व 50 वर्ष से कम आयु वर्ग के 47 युवा उम्मीदवार बनाए गए हैं। इसी तरह अनुसूचित जाति के 27 और अनुसूचित जनजाति के 18 तथा पिछड़े वर्ग से 57 उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। दरअसल भाजपा की केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठवें पिछले कईं दिनों से चल रही हैं और पार्टी नेतृत्व ने 16 राज्यों के लिए नामों पर विचार-विमर्श किया। भाजपा की पहली सूची की विशेष बात यह है कि मध्य प्रादेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को भी विदिशा से उम्मीदवार बनाया गया है, इसका मतलब यह है कि अब उन्हें केन्द्र की राजनीति करनी होगी।

वास्तविकता तो यह है कि भारतीय राजनीति की हकीकत बन चुकी ‘जाति’ को कोईं भी पार्टी नजरन्दाज नहीं कर सकती। इस सूची में सबसे ज्यादा ध्यान इस बात का रखा गया है कि प्रात्याशी जीत सवें। 34 मंत्रियों एवं राज्य मंत्रियों के साथ-साथ लोकसभा अध्यक्ष और प्राधानमंत्री को भी उनके पुराने चनाव क्षेत्र से मैदान में उतारा गया है। राजनीति में हमेशा पार्टियां अपनी ऐसी छवि बनाना चाहती हैं कि वह सभी जातियों में प्राभावशाली हैं। यह दूसरी बात है कि उन्हें कौन-सी जाति में लोकप्रियता हासिल है और उनका समर्थन मिल पाता है। सबसे ज्यादा संख्या पिछड़े वर्ग की है, इसलिए पहली ही सूची में उनकी संख्या भी ज्यादा है।

सच तो यह है कि भाजपा और भारतीय जनसंघ दोनों की छवि ब्राह्मण व बनिया तथा वुछ शिक्षित मध्यम वर्ग की पार्टी मानी जाती थी किन्तु अब उसकी यह छवि पूरी तरह बदल चुकी है। पार्टी पिछड़े, अगड़े अनुसूचित एवं अनुसूचित जनजाति सभी में प्राभाव जमा चुकी है। इसके अतिरिक्त भाजपा के समर्थन में एक वर्ग लाभार्थियों का पैदा हो गया है। मोदी सरकार की विभिन्न योजनाओं से लाभ प्राप्त करने वाले वर्ग की धारणा है कि उन्हें जो सुविधाएं मिल रही है वह मोदी सरकार के कारण मिल रही हैं और यदि वह सत्ता में नहीं आए तो वे बंद हो जाएंगी। ऐसा नहीं है कि विपक्ष दूसरी पार्टियां ऐसी योजनाएं लागू नहीं करतीं, कांग्रेस की न्याय स्कीम भी बहुत लुभावनी है किन्तु यह भी वास्तविकता है कि उन पार्टियों पर मतदाताओं का भरोसा ही नहीं है। राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का जहां पर प्राभाव है, वहां के मतदाता उन पर व्यवहार करते है। पािम बंगाल, तमिलनाडु और ओिड़शा में भी क्षेत्रीय पार्टियों की सरकारें हैं और वहां पर मतदाता अपनी राज्य सरकार पर भरोसा करते हैं। किन्तु कांग्रेस की योजनाओं पर मतदाताओं को भरोसा नहीं है यही कारण है कि कांग्रेस के प्राति मतदाताओं में निष्ठा का अभाव रहता है।

बहरहाल 2024 के चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने तैयारी कर ली है और अब वे अपने कील कांटे फिट कर चुनाव मैदान में जाने वाले हैं। चुनाव में जिस पार्टी का टिकट वितरण पार्टी कार्यंकर्ता स्वीकार करते हैं, उसकी स्थिति मजबूत मानी जाती है। किन्तु वुछ कार्यंकर्ताओं में महत्वाकांक्षा होने के कारण कोईं भी पार्टी ऐसी नहीं है जहां टिकट वितरण को लेकर बवाल न हों। सभी कार्यंकर्ता चाहते हैं कि उन्हें टिकट मिले किन्तु किसी भी पार्टी के लिए कार्यंकर्ताओं की भावनाओं के अनुरूप पार्टी शत-प्रातिशत खरी नहीं उतर सकती। इसलिए असंतोष के स्वर सभी पार्टी में उठते हैं, कहीं कम तो कहीं ज्यादा।

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