हरियाणा में बदलाव
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी कार्यंशैली के मुताबिक हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सिह सैनी को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाईं तो बहुत लोगों को आार्यं हुआ किन्तु वास्तविकता यह है कि जिन्हें पता है कि भाजपा हमेशा अपने नेताओं के कार्यं निष्पादन की प्रक्रिया जारी रखती है, उन्हें इस घटना से कोईं हैरानी नहीं हुईं।
दरअसल हरियाणा की राजनीति में सर्वाधिक प्राभावशाली जाति जाट 2.5 प्रातिशत है किन्तु पिछड़े वर्ग की संख्या भी कम नहीं है। उनकी संख्या वुल मिलाकर 40.49 प्रातिशत है। मजे की बात तो यह है कि जाटों को आरक्षण उनकी संख्या 25 प्रातिशत से ज्यादा यानि 28 प्रातिशत है जबकि 40 प्रातिशत होने के बावजूद ओबीसी को मात्र 27 प्रातिशत आरक्षण मिलता है। यही कारण है कि हरियाणा में जाट और ओबीसी में तनातनी बनी रहती है। कांग्रोस के पास प्राभावी जाट नेता भूपेन्द्र सिह हुड्डा हैं और चौटाला परिवार के साथ यह जाति जुड़ी हुईं है।
दूसरी ओर भाजपा के लिए इस जाति का वोट हासिल करना आसान नहीं है। जो भी जाट समुदाय के नेता भाजपा में हैं वे अपनी सीट भी जाट मतदाताओं के समर्थन से नहीं जीत पाते। यही कारण है कि भाजपा को राज्य में पिछड़े वर्ग का नेतृत्व स्वीकार करने पर बाध्य होना पड़ा। कांग्रोस का गणित बहुत स्पष्ट है कि वह मुस्लिम-जाट गठजोड़ से सत्ता चाहती है जबकि भाजपा पिछड़ा, अगड़ा और वैश्य वोटों से जाट राजनीति पर नियंत्रण करने के लिए सक्रियता से काम कर रही है। हरियाणा में जो वुछ भी हुआ उसके पीछे लोकसभा और अक्टूबर के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में जातीय समीकरण को साधना है। द्वारका एक्सप्रोस— वे के उद्घाटन के अवसर पर सोमवार को प्राधानमंत्री ने मुख्यमंत्री खट्टर की जमकर तारीफ की और यहां तक कहा था कि उनकी मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर वह पार्टी का काम साथ-साथ किया करते थे। किन्तु एक दिन बाद ही उनसे त्याग पत्र देने को कहकर पार्टी नेतृत्व ने स्पष्ट कर दिया है कि व्यक्तिगत संबंध अपनी जगह पार्टी का हित अपनी जगह हैंै।
नए मुख्यमंत्री नायब सिह सैनी हमेशा ही मनोहर लाल खट्टर के नायब रहे और दोनों में बहुत अच्छे संबंध हैं। वेंद्रीय नेतृत्व ने खट्टर के सुझाव पर ही सैनी का चयन किया। भाजपा ने इसी तरह चुपचाप गुजरात में भी नेतृत्व परिवर्तन किया था तो विजय रूपाणी के पक्ष में बहुत सारे राजनीतिक विश्लेषकों ने कहना शुरू कर दिया था कि यह तो राजनीतिक अन्याय है। किन्तु वास्तविकता यह है कि पाटीदार समुदाय को संतुष्ट करने और रूपाणी की अकर्मण्यता से उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए यह आवश्यक था कि रूपाणी त्याग पत्र देतें। संयोग देखिए कि रूपाणी ने प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक कार्यांम से लौटकर त्याग पत्र दिया था। उस कार्यंक्रम में प्राधानमंत्री ने रूपाणी के सौम्यता एवं राजनीतिक कौशल की जमकर तारीफ की थी। बहरहाल भाजपा ने अपनी राजनीतिक रणनीति के तहत ही खट्टर को हटाकर सैनी को जिम्मेदारी सौंपी है।