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चुनाव की घोषणा

👤 Veer Arjun | Updated on:17 March 2024 5:42 AM GMT

चुनाव की घोषणा

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निर्वाचन आयोग ने शनिवार को 18वीं लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों की घोषणा कर दी। इस बार चुनाव 19 अप्रौल से एक जून के बीच सात चरणों में संपन्न होंगे और परिणाम 4 जून को घोषित होंगे। तिथियों की घोषणा से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव वुमार ने इस चुनाव में मतदान करने वाले मतदाताओं की सांख्यिकी भी समझाने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि देश में वुल 97 करोड़ मतदाता हैं। इनमें से 49.7 करोड़ मतदाता पुरुष हैं जबकि 47.1 करोड़ महिलाएं और 48 हजार ट्रांसजेंडर शामिल हैं। इसी के साथ चुनाव आयोग ने एक आंकड़ा और बताया कि जो लोग पहली बार मतदाता बने हैं उनकी संख्या 8 करोड़ है।

चुनाव आयोग ने प्रातिबद्धता जताईं कि वह हिसा मुक्त चुनाव कराना चाहता है, इसलिए 7 चरणों में चुनाव करवाया जा रहा है ताकि वेंद्रीय सुरक्षा बलों की समुचित तैनाती सुनिाित हो सके। ऐसा नहीं है कि सात चरणों में चुनाव 2024 के लिए ही हो रहे हैं। 2019 में भी 7 चरणों में ही चुनाव कराए गए थे। पािम बंगाल में वुछ छुटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो कहीं भी कोईं बहुत बड़ी घटना नहीं हुईं थी।

इस बार के चुनाव की एक विशेष बात यह है कि कईं राज्यों के विधानसभा चुनाव भी लोकसभा के साथ ही हो रहे हैं। चुनाव आयोग पर चुनावी प्रक्रिया का संचालन और सुरक्षा दोनों का ही दायित्व है। यही कारण है कि चुनावी चरणों का बढ़ाना उसकी मजबूरी है। भारत एक बड़ा देश है और चुनाव संचालन में साधनों की उपलब्धता के व्यवधान की चिता चुनाव आयोग को होना स्वाभाविक है। सभी पार्टियां कभी न कभी सरकार चला चुकी हैं अथवा सरकार में किसी न किसी गठबंधन की सहयोगी रह चुकी हैं, इसलिए संवैधानिक संस्थाओं के दायित्व, मजबूरियों और उनके अधिकारों की जानकारी राजनीति पार्टियों को भी है। यही कारण है कि तिथियों के बारे में कांग्रोस को छोड़कर किसी भी पार्टी को कोईं ऐतराज नहीं है और न ही होना चाहिए। कांग्रोस की आपत्ति है कि कईं चरणों में चुनाव कराने से विकास में बाधा उत्पन्न होती है, किन्तु उसके पास इस सवाल का जवाब नहीं होता कि बार-बार विधानसभा के चुनावों से क्या ज्यादा विकास बाधित नहीं होता? तिथियों से चुनाव पर कोईं असर पड़ता भी नहीं, जिस पार्टी को जितना वोट मिलना है, वह तो मिलेगा ही। रही बात मोदी सरकार के चुनाव प्राबंधन से चुनावी तिथियों के संदर्भ की तो यह बात बिल्वुल सही है कि भाजपा नेतृत्व अपनी तैयारी तिथियों के अनुरूप करने में बहुत विशेषज्ञ है।

यही कारण है कि रामजन्म भूमि का पैसला 9 नवम्बर 2019 को हुआ और उन्होंने नवनिर्मित मंदिर के उद्घाटन की तिथि 22 जनवरी 2024 को निर्धारित कर दी। लेकिन विपक्षी पार्टियां अपना जो भी गठबंधन बनाना था या जो भी एजेंडा तैयार करना था, जो भाजपा के एजेंडे का समुचित जवाब साबित हो नहीं कर पाया। इसी तरह तमाम विकास योजनाओं को पूरा करने और उद्घाटन का समय चुनाव के निकट निश्चित किया गया किन्तु विपक्ष ऐसा कोईं विमर्श निर्मित नहीं कर पाया जिससे कि वह भाजपा को चुनौती दे सके। यही कारण है चुनावी परिदृश्य स्पष्ट होता जा रहा है।

पार्टियां ही चुनाव हारती भी हैं और वही हराती भी हैं किन्तु उन्हें इस बात का हमेशा ध्यान होना चाहिए कि चुनाव जीतने के लिए वह कोईं अनैतिक हथकंडा न अपनाएं जिससे कि लोकतांत्रिक भावना आहत हो और राष्ट्रीय छवि खराब हो। यदि राष्ट्र की छवि अच्छी बनेंगी तो राजनेताओं के लिए भी लाभदायक होगा। इसलिए राष्ट्र प्राथम की भावना से हर परीक्षा के क्षण में राजनीतिक पार्टियों को नैतिक साधनों से सत्ता का साध्य हासिल करना चाहिए।

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