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अनावश्यक सक्रियता

👤 Veer Arjun | Updated on:20 March 2024 6:20 AM GMT

अनावश्यक सक्रियता

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सुप्रीम कोर्ट ने नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) पर रोक लगाने से इंकार करने पर भी शीर्ष अदालत में प्रौक्टिस कर रहे एक वरिष्ठ राजनेता का कहना था कि आखिर अगली तारीख यानि 9 अप्रौल तक सीएए पर सरकार रूक जाती तो क्या हो जाता। मतलब यह कि इस पूर्व मंत्री व वर्तमान में सांसद वकील की वेदना इसी से महसूस की जा सकती है कि उन्हें इस बात को लेकर कितनी हताशा है कि सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून पर क्रियान्वयन पर रोक नहीं लगाईं। उन्हें यह पता है कि सुप्रीम कोर्ट सीएए के विरोध में दायर याचिका को खारिज कर सकता है फिर भी वह अपने कानूनी पैंतरेबाजी से राजनीतिक लाभ की उम्मीद कर रहे थे।

दरअसल देश में एक ऐसा सिडीकेट सक्रिय है जो हर हाल में ऐसे मुद्दे नकारात्मक तरीके से उठाते हैं और असफल होते देख भावनात्मक मुद्दे उठाकर भ्रमित करते हैं। यह कानूनी पेशे में लोगों द्वारा कलात्मक कौशल माना जा सकता है। सच तो यह है कि जिस मंत्रिपरिषद के यह वकील सदस्य रहे हैं, उसके मुखिया खुद ही नागरिकता (संशोधन) कानून की सार्थकता महसूस करते थे। यह दूसरी बात है कि उन्हें वह आजादी नहीं मिली जो आज की सरकार के मुखिया के पास है।

असल में जो वकील इन दिनों सीएए पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे हैं, ये वही वकील है जिन्होंने 2019 में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि राम जन्म भूमि मंदिर संबंधी मामले को आम चुनाव के बाद सुना जाए अन्यथा एक पार्टी विशेष को फायदा होगा। सच तो यह है कि जब से राजनीति में वकीलों की संख्या बढ़ी है और राजनीतिक पार्टियां उन्हें फीस के स्थान पर राज्यसभा की सीटें देना शुरू की हैं तब से सियासी खुराफात ज्यादा होने लगी है। ये काले कोट वाले राजनेता अपनी कीमत बढ़ाने के लिए गैर मुद्दे को भी मुद्दा बनाते हैं और राजनीतिक विरोध शत्रुता का स्थाईं भाव बन जाता है ऐसा नहीं है कि वकील पहले राजनीति में नहीं थे। देखा जाए तो 20वीं सदी में जितने भी शीर्ष राजनेता पैदा हुआ और जिन्होंने राजनीति में कदम रखा उनमें से सर्वाधिक कचहरी में प्रौक्टिस करने वाले वकील ही थे। राजनीति और वकालत दोनों में किसी तरह का प्रातिरोधात्मक संबंध नहीं है किन्तु जब व्यक्ति नकारात्मकता को अपनी योग्यता का मापदंड मान लेता है तो वह हर प्रोपेशन को विषाक्त करने में सक्षम होता है।

बहरहाल सीएए का चुनाव से ठीक पहले लागू करने की एक राजनीतिक रणनीति का शिकार बनने से किसे फायदा होगा, यह कहने की जरूरत नहीं है। यदि सरकार ने इस कानून को लागू करने का सही वक्त चुनाव से ठीक पहले का चुना तो कोशिश होनी चाहिए थी इस मुद्दे पर ज्यादा मुखर न हुआ जाए। यदि विपक्ष की तरफ से इस परिणामस्वरूप विधेयक पर ज्यादा बवाल मचा तो इसके स्वरूप जो राजनीतिक फायदा होगा, वह भाजपा के ही खाते में जाएगा। सच तो यही है कि डॉ. मनमोहन सिह की सरकार के लिए उनके सहयोगी वकील राजनेता ही घातक साबित हुए थे। आज जो भी राजनीतिक द्वेष का वातावरण है, उसमें तत्कालीन दो वकील मंत्रियों की भूमिका को भी श्रेय जाता है। लब्बोलुआब यह है कि हर उस मुद्दे के प्राति सावधानी बरतना विपक्ष के लिए जरूरी है जिसकी प्रतिक्र‍िया हो और उसका फायदा सत्ताधारी पार्टी को हो।

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