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कांग्रोस का संकट

👤 Veer Arjun | Updated on:22 March 2024 5:41 AM GMT

कांग्रोस का संकट

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कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि सरकार ने उसके खातों पर रोक लगाकर उसे आर्थिक रूप से पंगु बना दिया है। चुनाव के वक्त जब किसी भी पार्टी के बैंक खाते को सील कर दिया जाता है तो निश्चित रूप से उस पार्टी के लिए अत्यन्त गंभीर संकट का वक्त होता है। कांग्रेस के साथ भी यही हुआ है। कांग्रेस इस घटना को अपने खिलाफ प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साजिश बताकर दुराशय पूर्ण कार्रवाईं साबित करने में लगी है। कांग्रेस की यह शिकायत तो सही है कि बैंक खातों के प्रीज होने से पार्टी की सारी गतिविधियां ठप पड़ जाती हैं। लोकतंत्र में चुनाव के वक्त इस तरह की समस्याएं किसी पार्टी के लिए घातक होती हैं। लेकिन साथ यह भी सच है कि कांग्रेस पार्टी ने अपने दुर्भाग्य की कुंडली खुद ही लिखकर तैयार की है।

छोटी-छोटी घटनाओं को लेकर कांग्रेस के वकील छोटी-बड़ी सभी अदालतों में याचिका लगाते हैं किन्तु आयकर मामलों में जिस तरह पार्टी ने व्यवहार किया है उससे दो सवाल उठते हैं। पहला यह कि आयकर संबंधी मामलों में उनकी उदासीनता ने उनका यह दुर्दिन ला दिया अथवा कांग्रेस नेतृत्व ने परिणाम को अनदेखा किया? 2019 के पहले से आयकर संबंधी यह मामला कानूनी पचड़े में पड़ा है। लगभग 100 करोड़ के आयकर का मामला है। दिल्ली हाईंकोर्ट ने गत 13 मार्च को आयकर अपीलीय अधिकरण (आईंटीएटी) के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें 100 करोड़ रुपए से अधिक बकाया कर की वसूली के लिए कांग्रेस पार्टी को आयकर विभाग की ओर से जारी नोटिस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। यदृापि उच्च न्यायालय ने पार्टी को तब नए स्थगन आवेदन के साथ आईंटीएटी का रुख करने की स्वतंत्रता दी जब उसके ध्यान में आया कि बैंक ड्राफ्ट के नगदीकरण के बाद आयकर विभाग द्वारा 65.94 करोड़ रुपए की राशि पहले ही वसूल की जा चुकी है।

यह मामला लोकतांत्रिक भावनाओं के बिल्वुल विपरीत साबित किया जा सकता है किन्तु यह भी सच है कि जब कांग्रेस नेतृत्व इस बात को अच्छी तरह जानती है कि उसे किसी भी तरह की रियायत आयकर विभाग से मिलने वाली नहीं है तो उन्होंने इस मामले को सही तरीके से तैयारी करके अदालत से राहत पाने की कोशिश क्यों नहीं की? सच तो यह है कि आयकर संबंधी मामले की कार्यंवाही किसी से छिपी नहीं है। शुरुआत में इस मामले को गंभीरता से न लेकर पार्टी ने अपनी आर्थिक स्थिति बंटाधार कर ली। कांग्रेस ने इस आर्थिक मामले को राजनीतिक अखाड़े में घसीट कर जो भी हासिल करना चाहती हो किन्तु इतना तो सच है कि उसे राहत आदलत से ही मिलने वाली है। जनता में इस मुद्दे पर कांग्रेस के प्राति सहानुभूति की लहर पैदा होगी, इसकी तो संभावना नहीं दिखती किन्तु जिस तरह चुनाव के ठीक पहले उसके खाते सील किए गए उसको देखते हुए बड़ी आसानी से सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा सकता है कि यदि कांग्रेस पार्टी के खातों को सीज करने जैसी कठोर कार्रवाईं आयकर विभाग को करनी ही थी तो 6-7 वर्षो तक इस मामले को क्यों लटकाया।

बहरहाल कांग्रेस के लिए अत्यन्त विपत्ति का काल खंड है। इस मामले को विधिक तरीके से निपटाने में पार्टी नेतृत्व को समझदारी से कार्यं करना होगा उसे मात्र इस बात पर संतुष्ट होने की जरूरत नहीं है कि उनके आरोपों से भाजपा के वोट कम हो जाएंगे और कांग्रेस के बढ़ जाएंगे और कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी जरूरत यह है कि वह वास्तविकता को स्वीकार करे और अपने बही खाते सावधानीपूर्वक संभाले। सरकार के लिए जरूरी है कि वह वुछ भी ऐसा न करे जिससे कि कांग्रेस के सामने चुनावी वक्त में आर्थिक संकट न पैदा हो, अन्यथा उसकी छवि लोकतंत्र विरोधी बनना तय है।

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