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चिराग पर मेहरबान पारस को ठेंगा

👤 Veer Arjun | Updated on:23 March 2024 6:46 AM GMT

चिराग पर मेहरबान पारस को ठेंगा

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—अनिल नरेन्द्र

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार की 17 सीट पर खुद चुनाव लड़ेगी जबकि जनता दल (यूनाइटेड) 16 सीट और चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) पांच सीट पर चुनाव लड़ेगी। सीट बंटवारे को लेकर हुए समझौते में राजग में शामिल वेंद्रीय मंत्री पशुपति पारस के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के दावे को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है और उसे एक भी सीट नहीं दी गईं। पारस खुद हाजीपुर से लोकसभा सांसद हैं और एलजेपी में दूर होने के बाद पार्टी के चार अन्य सांसद भी उनके साथ हैं। पशुपति पारस का कहना है कि मैंने ईंमानदारी से एनडीए की सेवा की। नरेन्द्र मोदी बड़े नेता हैं, सम्मानित नेता हैं लेकिन हमारी पार्टी के साथ और व्यक्तिगत रूप से मेरे साथ नाइंसाफी हुईं है। इसलिए मैं भारत सरकार के वैबिनेट मंत्री पद से त्याग पत्र देता हूं।

पशुपति वुमार पारस लोक जनशक्ति (एलजेपी) पार्टी के नेता रामविलास पासवान के भाईं हैं। लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान को उनके चाचा व वेंद्रीय मंत्री पशुपति वुमार पारस से अधिक महत्व देने के पीछे भाजपा पर चिराग का कोईं दबाव नहीं बल्कि इसके पीछे भाजपा की 400 पार करने की रणनीति है। मौजूदा राजनैतिक परिस्थितियों में चिराग पासवान भाजपा को उनके चाचा पशुपति वुमार पारस से अधिक फायदेमंद दिखाईं दे रहे हैं। यही कारण है कि भाजपा ने चाचा को दरकिरना कर भतीजे को प्राथमिकता दी है। पशुपति पारस को नजरअंदाज करने के पीछे अब चाचा की जगह भतीजा भाजपा की पहली पसंद हो गईं है। इसके पीछे भाजपा की तीसरी बार सत्ता में आने के लिए भाजपा की चुनावी रणनीति रही है। दरअसल भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया है और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए भाजपा किसी प्राकार का भी जोखिम उठाने की बजाए एक-एक सीट की गहराईं से समीक्षा कर अपनी रणनीति तैयार कर रही है।

चिराग को चाचा से ज्यादा महत्व देना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। यह राजनैतिक समीक्षक भी मानते हैं कि जनता के बीच जो राजनीतिक हैसियत चिराग के पिता रामविलास पासवान थी वह पशुपति पारस की नहीं है, अपने भाईं की वृपा से ही पशुपति पारस सांसद बने थे। रामविलास पासवान के निधन के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव है, ऐसे में रामविलास पासवान के निधन से उनके समर्थकों की सहानुभूति का फायदा पशुपति पारस को नहीं बल्कि चिराग पासवान को ही मिलेगा। एनडीए में पशुपति पारस यह अमान मिलने के बाद जहां यह माना जा रहा था कि वह कोईं बड़ा ऐलान करेंगे लेकिन उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीपे के अलावा कोईं बड़ा ऐलान अभी तक नहीं किया है। यही नहीं इस्तीपे के ऐलान के दौरान उन्होंने प्राधानमंत्री को बड़े पद का नेता बताते हुए उनकी तारीफ भी की। दरअसल पशुपति पारस गुट अभी भी एनडीए व भाजपा से कोईं सम्मानजनक पेशकश की उम्मीद लगाए हुए हैं। यही कारण है कि पारस ने चुपचाप अपमान तो सह लिया लेकिन अभी तक एनडीए व भाजपा के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला है। भाजपा के वुछ नेता चाहते हैं कि चाचा-भतीजा मिलकर चुनाव लड़े लेकिन भतीजा अंतत: अपने चाचा पर भारी पड़ गया। पशुपति क्या इंडिया एलाइंस में जा सकते हैं?

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