राष्ट्रपति शासन की आशंका
दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की संभावनाएं बढ़ती ही जा रही है। गिरफ्तार होने के बाद जिस तरह से आम आदमी पार्टी के संयोजक और मुख्यमंत्री अपने पद से त्याग पत्र न देने की जिद ठाने हैं, उससे स्पष्ट हो गया है कि अब संवैधानिक संकट से निपटने का एक विकल्प दिख रहा है। जेल से सरकार चलाने की बात करना और सरकार चलाना दोनों दो बातें हैं। यह सच है कि संविधान में इस बात का कोईं उल्लेख नहीं है कि जेल जाने के बाद मुख्यमंत्री त्याग पत्र दे अथवा उसे राज्यपाल या उपराज्यपाल बर्खास्त कर दें। किन्तु जेल मैनुअल में यह बात स्पष्ट रूप से लिखी है कि किसी भी अंत:वासी को फाइल देखने या मंत्रियों व अधिकारियों के साथ बैठक करने की सुविधा उपलब्ध नहीं कराईं जाएगी। दिल्ली का प्रशासन पंगु होने से बचाने के लिए आम आदमी पार्टी के पास अभी भी एक विकल्प है।
इस विकल्प को अपनाते हुए यदि पार्टी के विधायक किसी और को अपने विधायक दल का नेता चुन लेते हैं तब तो पार्टी की सरकार बची रह सकती है अन्यथा यदि उपराज्यपाल सक्रिय हुए तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर पूरी सत्ता अपने पास समेट लेंगे। जहां तक अरविन्द केजरीवाल की वापसी का सवाल है तो इस संदर्भ में यही कहा जा सकता है कि अभी प्रवर्तन निदेशालय सारे सबूतों को दिखाकर केजरीवाल का बयान दर्ज करेगी फिर आरोपियों के सामने बैठाकर सभी के बयान दर्ज कर कड़ियों को जोड़ेगी। जांच प्रक्रिया में अदालतें हस्तक्षेप नहीं करतीं। इसलिए लगता है कि केजरीवाल लम्बे गए और पार्टी किकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है। इसी वजह से यह आशंका नकारी नहीं जा सकती की दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की प्रबल संभावनाएं हैं।