मांग बनाम दावा
रविवार को दो रैलियां आयोजित की गईं थीं। एक रैली इंडिया गठबंधन की नईं दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित की गईं थी जिसमें पांच मांगे रखी गईं। पहली मांग थी कि भारत के चुनाव आयोग को लोकसभा में समान अवसर सुनिश्चित करने चाहिए। दूसरी मांग चुनाव आयोग को चुनाव में हेरापेरी करने के उद्देश्य से विपक्षी राजनीतिक दलों के खिलाफ आयकर विभाग, प्रावर्तन निदेशालय और केन्द्रीय जांच ब्यूरो की कार्रवाईं को बलपूर्वक रोकना चाहिए। तीसरी मांग थी कि हेमंत सोरेन और अरविन्द केजरीवाल की तत्काल रिहाईं की जानी चाहिए। चौथी मांग चुनाव के दौरान विपक्षी दलों का आर्थिक रूप से गला घोंटने की जबरन कार्रवाईं तुरन्त बंद होनी चाहिए। पांचवीं मांग चुनावी बांड का उपयोग करके भाजपा द्वारा बदले की भावना, जबरन वसूली और धन शोधन के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक एसआईंटी गठित होनी चाहिए।
रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने हेमंत सोरेन और अरविन्द केजरीवाल को अपना प्लेयर बताया तथा अम्पायर के साथ भाजपा का सांठ गांठ बताया। उन्होंने कहा कि अम्पायर के साथ मिलकर उनके दोनों प्लेयरों को अंदर डाल दिया। अब यह तो राहुल ही बता सकते हैं कि वह अम्पायर अदालतों को मानते हैं या जांच एजेंसियों को। दूसरी रैली मेरठ में प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा कि ‘‘भ्रष्टाचारी कान खोल कर सुन लें, ये मोदी है रुकने वाला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट तक से जमानत नहीं मिल रही है। कईं बड़े-बड़े भ्रष्टाचारियों को कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। इसलिए पूरे देश में बिस्तर से नोटों के ढेर निकल रहे हैं, कहीं दीवारों से नोट के ढेर निकल रहे हैं।’’
दरअसल इंडिया गठबंधन के लोग जहां जांच एजेंसियों पर अति सव््िरायता पर आपत्ति जताते हैं और अदालतों में यह साबित नहीं कर पाते कि उनके खिलाफ जांच का विषय गलत है। उदाहरण के लिए अरविन्द केजरीवाल का ही मामला जब हाईंकोर्ट में दो जज सुन रहे थे और उन्होंने ईंडी से सवाल किया कि वह इस बात को स्पष्ट करे कि आखिर उसे क्या जरूरत पड़ गईं कि वह केजरीवाल को हिरासत में रखना क्यों चाहती है? इस पर ईंडी की तरफ से पैरवी करने वाले सरकारी वकील ने दोनों जजों को केजरीवाल और अन्य आरोपियों के बीच बातचीत की रिकार्डिग सुना दी। इसके बाद हाईंकोर्ट के दोनों जजों ने कहा कि वह केजरीवाल की गिरफ्तारी पर रोक नहीं लगा सकते। मतलब यह कि जब एजेंसियां अदालतों को सबूत मुहैया करा रही हैं तो आरोपियों को राहत वैसे मिल सकती है। उन्हें एजेंसियों के आरोपों को निराधार साबित करना ही पड़ेगा। राजनीति के लिए अथवा सहानुभूति हासिल करने के लिए वुछ भी कहा जा सकता है। लेकिन भ्रष्टाचार को यदि विपक्षी गठबंधन को सहानुभूति से जोड़ने की कोशिश करता है तो मोदी अपने समर्थकों को इस बात का एहसास दिलाते हैं कि 2024 का चुनाव भ्रष्टाचारियों को नेस्तनाबूद करने और विकास के लिए तय दिशा पर बढ़कर मंजिल हासिल करने के लिए है। मतलब विपक्ष की मांग है कि उनके भ्रष्टाचारी प्लेयरों को रिहाईं मिलनी चाहिए जबकि मोदी दावा करते हैं कि उनको जनता ने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाईं के लिए पहले भी चुनाव और कार्रवाईं के लिए ही फिर चुनेगा। अब यह पैसला तो जनता ही करेगी कि उसे किसकी बातें अच्छी लग रही हैं किन्तु इतना अवश्य है कि चुनावी विमर्श तय करने में जो तरीका विपक्ष अपना रहा है, उसकी स्वीकारोक्ति समाज में कितनी है, इसका आंकलन करने में वह सर्वथा असमर्थ रहा है।
जबकि मोदी सामाजिक मनोभावों का व्याकरण समझने में हमेशा बाजी मार लेते हैं। यदि इस सच्चाईं को हम नकारना चाहते हैं तो हमारी मजा किन्तु हकीकत तो यही है कि लोकतंत्र में कभी भी चेहरे पर भ्रष्टाचार के दागी को समर्थन नहीं मिला है। ललाट पर ईंमानदारी का चंदन ही चमकता है। विपक्ष को ऐसे मुद्दों को उठाने से बचना चाहिए जिसे समाज में समर्थन न मिलता हो अन्यथा उनकी यह रणनीति उनके लिए आत्मघाती साबित हो सकती है।