चीन की चालबाजी
चीन अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आता इसलिए एक तरफ तो वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थिति को सामान्य करने के लिए भारतीय सेना से बातचीत कर रहा है जबकि दूसरी तरफ वूटनीतिक टकराव बढ़ाने के लिए अरुणाचल प्रादेश में शहरों और क्षेत्रों का नाम परिवर्तित कर रहा है।
कमांडर्स बाइएनुअल मीटिग में रक्षामंत्री राजनाथ सिह ने इस बात को माना कि हमारी चीन के साथ डिसइंगेजमेंट और डिएस्केलेशन की प्रक्रिया को जारी रखे हुए हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि लद्दाख की सीमा पर हमारे सैनिकों के शौर्यं के कारण ही चीन की गलत हरकतें सफल नहीं हो पा रही हैं। सच तो यही है कि भारतीय सैनिकों की तैनाती जिस रणनीतिक तरीके से की गईं है, उससे चीन का बौखलाना स्वाभाविक है। चीन को लगता था कि इस तरह की रणनीति तो वही अपनाता है लेकिन अब जबसे भारत ने सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ठिकानों पर कब्जा करके भारतीय सैनिकों की तैनाती शुरू कर दी वह उनके लिए सिरदर्द बन गए हैं।
दिलचस्प बात तो यह है कि चीनी सैनिक पहले अग्रिम क्षेत्रों में मार्च करते थे और बैठक में उन क्षेत्र पर अपना अधिकार जताते थे अब उनका सारा ध्यान उन्हीं क्षेत्रों पर रहता है, जहां हमारे सैनिक घात लगाकर वुंडली मारे बैठे हैं। चीन के साथ हमेशा ‘जैसे को तैसा’ का ही फार्मूला सफल हो सकता है। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर इसलिए चीन द्वारा अरुणाचल प्रादेश में नामकरण पर तंज कसते हुए कहते हैं कि नाम रखने से कोईं क्षेत्र चीन का नहीं हो जाएगा। चीन दबाव डालने के लिए बौखलाहट में नामकरण का खुरापाती चाल चला है। लब्बोलुआब तो यह है कि चीन के साथ हमारे संबंध सामान्य नहीं हैं। दोनों ही भूराजनीतिक वूटनीति में एक दूसरे के खिलाफ तनातनी संबंधों में लिप्त हैं।