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बनेगा नजीर

👤 Veer Arjun | Updated on:5 April 2024 5:08 AM GMT

बनेगा नजीर

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शराब घोटाले संबंधी मामले में तो अभी गिरफ्तारियां और पूछताछ ही चल रही है कितु वास्तविकता यह है कि विधिक रूप से यह बहुत ही महत्वपूर्ण मामला है। यह मामला ठीक उसी तरह का है जैसा कि केशवानंद भारती का था जिसमें खुद तो वादी हार गया कितु आज भी संवैधानिक जटिलताओं को सुलझाने में इस केस का उदाहरण अदालतों में पेश किया जाता है। 1973 में 13 जजों की पीठ ने पैसले में स्पष्ट किया था कि संविधान संशोधन पर एक ही प्रतिबंध है कि उसके मूल ढांचे की क्षति नहीं होनी चाहिए। इसी मूल ढांचे की अपने-अपने पक्ष में सभी लोग व्याख्या करते हैं। आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं के खिलाफ चल रहे मुकदमों में गिरफ्तार हुए वादी अदालतों में यह अनुरोध नहीं कर रहे हैं कि उन पर जो भी घोटाले के आरोप लग रहे हैं, वह निराधार हैं। वे अदालत में कुछ घिसे-पिटे तर्क ही दे रहे हैं जैसे पहला—देश में चल रहे लोकसभा चुनावों से आप नेताओं को दूर रखने की साजिश।

दूसरा—बयान बदलते ही कुछ आरोपियों को जमानत मिल जाती है।

तीसरा—जांच एजेंसी के हाथ खाली हैं। चौथा—ईंडी को इतनी जल्दी क्या पड़ी थी जो वह आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया। पांचवां—यह चुनाव का समय है। छठा—आरोपी के भागने की आशंका नहीं है।

सातवां—धनशोधन मामले के दो वर्षो बाद हिरासत में क्यों लिया गया।

लेकिन केजरीवाल के वकीलों के जबाव में अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ने भी तर्क दिया कि क्या हत्या के दो दिन बाद चुनाव हो तो आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकती। क्या ऐसे मामले में संविधान के मूलभूत ढांचे को नुकसान पहुंचाने का तर्व दिया जा सकता है। ईंडी का दूसरा तर्व था कि वह अंधेरे में तीर नहीं चला रही है। उसके पास केजरीवाल के खिलाफ पर्यांप्त इलेक्ट्रानिक साक्ष्य हैं, प्रत्यक्ष गवाह हैं, व्हाट्सऐप चैट का सबूत है। यही नहीं हवाला आपरेटर के बयान और इन्कम टैक्स डेटा भी हैं। एसएजी ने दावा किया कि घोटाले में शामिल रहे कारोबारियों का सरकारी गवाह बनाया गया है। तीसरा—किसी भी धनशोधन के मामले की जांच करना ईंडी का कर्तव्य होता है। चौथी दलील थी कि सरकारी गवाहों पर भरोसा करना जरूरी होता है। पांचवीं एसएजी ने केजरीवाल की दलील का जबाव दिया कि आरोपी सामान्य व्यक्ति वैसे हैं। वह अत्यंत महंगे दो वरिष्ठ वकीलों की फीस दे रहे हैं। ईंडी का छठा जबाव बहुत महत्वपूर्ण है कि आम आदमी पार्टी की संपत्ति पर भी विवाद है क्योंकि उसका कोईं हिसाब-किताब ही नहीं मिल रहा है। केजरीवाल के वकील ने सातवां जबाव यह दिया कि संजय सिंह की जमानत ईंडी द्वारा दी गईं रियायत के आधार पर हुईं है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश में स्पष्ट है कि उनकी जमानत के लिए शीर्ष अदालत की टिप्पणियों को अदालतें मामले के संदर्भ में गंभीरता से न लें।

दरअसल पहले की अपेक्षा अब आरोपी ज्यादातर राजनेता हो रहे हैं। अफसरशाहों के मामले में कोर्ट में इतनी जिरह नहीं हो पाती। कितु मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को जमानत मांगने के लिए वरिष्ठ वकील जो तर्व पेश करते हैं, वह भविष्य में नजीर के रूप में अदालतों में दस्तावेज बन सवेंगे।

बहुत सारे मामले ऐसे होते हैं जिनमें जजों द्वारा दिए गए फैसलों और टिप्पणियों के साथ दोनों पक्षों के वकीलों द्वारा दिए गए तर्व भी दस्तावेज का हिस्सा बन जाते हैं। केशवानंद भारती जब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पैसले में हार गए तो लगा कि यह तो मामला बेवजह चला कितु आज भी जब कभी मौलिक अधिकारों का मुकदमा चलता है तो इस मामले की नजीरें जरूर दी जाती हैं। अरविंद केजरीवाल की तरफ से चाहे जितने भावनात्मक या प्रावृतिक न्याय का हवाला दिया जाए, विधिक प्रव्रिया से बाहर जाकर कोईं भी जज पैसला देने वाला नहीं है और जज जानते हैं कि सपेदपोशों के खिलाफ न्याय प्रव्रिया के लिए यह मामला मील का पत्थर साबित होगा, इसीलिए सभी जज इस मामले को गंभीरता से ले रहे हैं।

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