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कहीं देर न हो जाए

👤 Veer Arjun | Updated on:8 April 2024 4:28 AM GMT

कहीं देर न हो जाए

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रविवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार के नवादा में एक रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस के घोषणा पत्र पर टिप्पणी तो की ही साथ ही कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से चुनाव अभियान में सुस्ती के लिए तंज भी कसा। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के घोषणा पत्र को मुस्लिम लीग का बताया। यही आरोप भाजपा के प्रावक्ता ने शनिवार को भी लगाया था तब कांग्रेस के महासचिव और मीडिया प्राभारी ने जवाब में कहा था कि भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रासाद मुखजा ने बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ सरकार बनाईं थी। दरअसल कांग्रेस उस विदृाथा की तरह है जो लेख तैयार करके जाता है गाय पर किन्तु जब परीक्षा में लेख श्वान यानि वुत्ते पर आ जाता है तब भी वह गाय पर ही पूरा लेख लिख कर आ जाता है। मोदी और भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस का घोषणा पत्र उसी तरह अलगाववादी है जैसा कि मुस्लिम लीग का अलगाववादी सिद्धांत ‘द्विराष्ट्रवाद’ के कारण देश का विभाजन हुआ।

भाजपा खुलकर आरोप लगा रही है कि कांग्रेस ने आरक्षण के 50 प्रातिशत वैप को हटाकर और जाति के आधार पर सव्रेक्षण कराकर समाज की एकता को छिन्न-भिन्न करना चाहती है। यदि जयराम रमेश को जवाब देना ही था तो उन्हें भाजपा के इस आरोप का जवाब देना चाहिए था। जहां तक रही मुस्लिम लीग के घोषणा पत्र में तो भाजपा के इस आरोप का कांग्रेस प्रावक्ताओं को जवाब देने का अवसर मिला था कि वह स्पष्टीकरण देते कि आखिर चुनाव घोषणा पत्र में धर्म के आधार पर वह सुविधाएं देने का वादा क्यों करते हैं? कांग्रेस अपने संकल्पों को बताती और इसी बहाने उसे जनता को समझाने का अवसर मिलता। किन्तु कांग्रेस ने फिर वहीं मुस्लिम लीग का मुद्दा छेड़ा जो स्वतंत्रता के पहले उसके साथ सरकारें बनाईं जाती थीं। जयराम रमेश और कांग्रेस को पता है कि डॉ. श्यामा प्रासाद ने हिन्दू महासभा के नेता थे और उस वक्त भारतीय जनसंघ की स्थापना भी नहीं हुईं थी। सच तो यह है कि वर्ष 1941 में जब हिन्दू महासभा को मुस्लिम लीग तीन राज्यों सिध प्रांत, उत्तर पािम सीमा प्रांत और बंगाल में सरकार बनाने का निमंत्रण दिया उस वक्त इन्हीं दोनों पार्टियों को छोड़कर कांग्रेस सहित सभी पार्टियों पर प्रातिबंध लगा हुआ था। बाद में जब देश स्वतंत्र हो गया तो डॉ. मुखजा को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने मंत्रिपरिषद में उद्योग मंत्री बना दिया जो बाद में नेहरू-लियाकत अली के बीच 1950 में अल्पसंख्यकों से संबंधित समझौते के विरोध में त्यागपत्र देकर 1952 में भारतीय जनसंघ की स्थापना कर ली थी।

इस तरह तो नेहरू ने भी मुस्लिम लीग के साथ मिलकर 1946 में सरकार बनाईं थी जिसमें मुस्लिम लीग के कुल 5 मंत्री शामिल हुए और लियाकत अली वित्त मंत्री बनाए गए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच यह सरकार तब तक चली जब तक कि पाकिस्तान अलग मुल्क नहीं बन गया और लियाकत अली वहां के प्रधानमंत्री नहीं बन गए। आजादी के पूर्व की परिस्थितियां भिन्न थीं, उस वक्त जवाहर लाल ने जो शपथ ली थी वह ब्रिटेन के व््राउन के प्राति ली थी। कांग्रेस को मुस्लिम लीग हिन्दू पार्टी बताती थी और कांग्रेस मुस्लिम लीग को दंगाईं पार्टी मानती थी किन्तु अंग्रोजों के कारण उन्हें एक छाते के नीचे आना ही पड़ा था। बहरहाल गड़े मुर्दे उखाड़ने से किसी पार्टी का कोईं वोटर बढ़ता है तो उन्हें ऐसा करना चाहिए अन्यथा सवालों का जवाब देने का अवसर बर्बाद कर कांग्रेस अपने विरोधी को अवसर देने की गलती करने में माहिर है।

जहां तक बात कांग्रेस के चुनाव प्राचार में सुस्ती की तो यह आरोप तो खुद उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ही लगाया है। अपने एक साक्षात्कार में हरीश रावत ने ही कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बहुत मेहनत करते हैं और भाजपा का चुनाव प्राचार बहुत गति पकड़ चुका है जबकि कांग्रेस का चुनाव प्राचार सुस्त है। रविवार को ही देख लें भाजपा के सभी शीर्ष नेता रैली और चुनाव प्राचार करते दिखे जबकि कांग्रेस के नेताओं की कोईं बड़ी रैली नहीं हुईं। यही नहीं क्षेत्रीय दल टीएमसी और समाजवादी तो प्राचार में जोर-शोर से जुड़े हैं किन्तु इंडिया गठबंधन की एक भी रैली संयुक्त रूप से अभी तक नहीं हो पाईं। मोदी अभी तक अपने गठबंधन के साथियों के साथ 16 रैली से ज्यादा कर चुके हैं। यह सच है कि जब कहीं कोईं उम्मीद होती है तो राजनेता प्राचार के लिए उत्सुक होते हैं। लेकिन जब वे इसी उम्मीद में रहेंगे कि सरकार कोईं गलती करेगी तो उसका फायदा उठाकर उनकी पार्टी सत्ता में आ जाएगी, उन्हें इस आसमानी चमत्कार की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए। यह 2004 नहीं है। उस वक्त की भाजपा अटल और आडवाणी की थी जबकि आज भाजपा मोदी और शाह की है। अब ऐसे चमत्कार की उम्मीद पालकर चुनाव जीतना कांग्रेस नेतृत्व के लिए संभव नहीं है। उसे जमीनी हकीकत स्वीकार करके एक-एक कदम सावधानी से रखना होगा। यदि कांग्रेस ने खुद को असमर्थ साबित कर लिया तो 2024 ही नहीं 2029 में भी वुछ हाथ लगने वाला नहीं है।

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