आत्मघाती राजनीति
बिहार की जमुईं लोकसभा सीट पर मतदान से कुछ घंटे पहले मौजूदा सांसद और लोजपा (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान की मां को तेजस्वी यादव की जनसभा में मंच के सामने भीड़ से दी गईं गाली ने बवंडर खड़ा कर दिया है। भाजपा के नेता एक सुर से गाली को आरजेडी के जंगल राज की याद दिलाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं और कह रहे हैं कि राजद की गुंडागदा की प्रावृत्ति कभी भी नहीं बदलेगी। दरअसल दुष्ट प्रावृत्ति के राजनीतिक कार्यंकर्ता किसी भी पार्टी में हों, उन्हें किसी भी तरह की लक्ष्मण रेखा की परवाह नहीं होती। यदि आरजेडी के मंच से प्रातिद्वंद्वी राजनेता के खिलाफ सैद्धांतिक विरोध के लिए सभी स्वतंत्र हैं किन्तु उसकी मां को गाली देना न सिर्प अनैतिक है बल्कि अपराध भी है।
चिराग पासवान ने इस घटना के बाद तेजस्वी की मां राबड़ी देवी को अपनी मां जैसा बताकर अपने संस्कारों का परिचय तो दे दिया किन्तु लालू परिवार के किसी भी नेता ने अभी तक इस घटना में शामिल अपने उद्दंड कार्यंकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाईं तो दूर निंदा तक नहीं की। बहरहाल मां तो मां होती है, चाहे वह चिराग की हों या फिर तेजस्वी की किन्तु राजनेताओं को चाहिए कि वे अपने कार्यंकर्ताओं को इतनी निम्नस्तरीय एवं घटिया हरकत करने से बचाएं। इससे राजनीति तो कलंकित होती ही है, साथ ही इस बात का एहसास भी होता है कि राजद में कौन से लोग हैं जिनका सब वुछ गुंडागदा पर ही आश्रित है। आज की पीढ़ी को तो पता भी नहीं होगा जब 2005 से पहले और 1989 के बाद लालू शाही को विशुद्ध रूप से जंगल राज कहा जाता था। बिहार की अदालतें लालूराबड़ी सरकार को इस बात के लिए कईं बार फटकार लगा चुकी थीं कि वे जिस सरकार को चला रहे हैं, वह बिल्वुल जंगल राज की तरह हैं।
राजद की कोशिश तो यह है कि वह लालू को पीछे रखकर और तेजस्वी को आगे करके चुनाव लड़ना चाहते हैं ताकि 2005 के बाद होश संभालने वाले वोटरों को यह पता न चल जाए कि लालू का राजनीतिक और सामाजिक आतंक किस हद तक पैला हुआ था। बिहार में जब लालू की सरकार थी तो कानून व्यवस्था की दुर्दशा के लिए बिहार वुख्यात था किन्तु 2005 में पहली बार नीतिश सरकार और भाजपा की बहुमत वाली सरकार बनी तो प्राथमिकता के आधार पर राज्य में कानून व्यवस्था की वापसी हुईं थी। बृहस्पतिवार को हुईं गालीकांड की घटना से आरजेडी को कितना फायदा होगा इसका आंकलन तो संभव नहीं है किन्तु लालू राज में जंगल राज की कहानी नए वोटरों को जरूर पता चल जाएगी। नए वोटरों को बिहार की राजनीति का आभास हो ही जाएगा जब अपहरण उद्योग जोरों पर था और किसी के भी परिवार को अपमानित करना तो लालू शाही में सामान्य बात होती थी। कहने का मतलब यह कि चिराग की मां को गाली देने के उत्साह में आरजेडी कार्यंकर्ताओं ने उस प्रावृत्ति का परिचय दिया जिसे बिहार की जनता कईं बार नकार चुकी है।