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खतरे की घंटी

👤 Veer Arjun | Updated on:22 April 2024 4:49 AM GMT

खतरे की घंटी

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इजरायल और ईंरान के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है। इस तनाव से मात्र मध्य एशिया ही नहीं पूरी दुनिया के प्रभावित होने की है। ऐसे में भारत भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने इसीलिए इजरायल और ईंरान को युद्ध की स्थिति पैदा न करने की सलाह दी है। दरअसल पहले सीरिया स्थित दमिश्क के ईंरानी मिशन पर इजरायली हमले में 13 लोगों की जान जाने से बौखलाया ईंरान इजरायल पर मिसाइलों और ड्रोन से हमलाकर दिया। यदृापि इजरायल ने अपने अमेरिका और ब्रिटेन के आइरन डोम की मदद से 99 प्रतिशत हमले नाकाम कर दिए। जवाब में इजरायल ने भी गुरुवार की रात में ईंरान में धमाके किए। यह दूसरी बात है कि इस धमाके के बारे में ईंरान और इजरायल दोनों ही दावा नहीं कर रहे हैं।

अब असल समस्या यह है कि इन दोनों देशों के बीच संघर्ष के बाद भीषण युद्ध की आहट सुनाईं पड़ने लगी है। यही कारण है कि कच्चे तेल की कीमतें 90 अमेरिकी डालर प्रति बैरल के आसपास पहुंच गईं। यही कारण है कि विशेषज्ञ अब यह अनुमान लगा रहे हैं कि यदि ईंरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य को अवरुद्ध किया तो तेल और एलएनजी की तेजी से बढ़ना तय है। इस संकट की आशंका इसलिए है क्योंकि होर्मुज जलडमरूमध्य ओमान और ईंरान के बीच लगभग 40 किमी चौड़ी एक समुद्री पट्टी है। इस मार्ग के जरिए सउदी अरब 63 लाख बैरल प्रतिदिन, यूएईं, वुवैत, कतर, इराक 33 लाख बैरल प्रतिदिन और ईंरान 13 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का निर्यांत करते हैं। वैश्विक एलएनजी का 20 प्रतिशत हिस्सा इसी के माध्यम से जाता है। इसमें कतर और यूएईं लगभग सभी एलएनजी निर्यांत शामिल हैं। मजे की बात तो यह है कि एलएनजी के लिए कोईं दूसरा वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध ही नहीं है। भारत सउदी अरब, इराक और यूएईं से एलएनजी का आयात इसी मार्ग से करता है। यही कारण है कि भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने समकक्ष इजरायली और ईंरानी विदेश मंत्रियों से संयम बरतने का आग्रह किया है।

यह सच है कि ईंरान और इजरायल के बीच तनातनी को कम करने के लिए अकेले भारत ही प्रयत्नशील नहीं है बल्कि अमेरिका, प्रांस और ब्रिटेन भी चाहते हैं कि दोनों देश तनाव सैथिल्य को अपनाएं। इसलिए लगता तो यही है कि इजरायल अपने मित्र देशों की बात मान कर इजरायल नरम पड़ सकता है। जहां तक ईंरान का मामला है, वह इस वक्त ज्यादा ही आव्रामक है। इसलिए अमेरिका भी दोनों को ही अपनी प्रतिष्ठा युद्ध से जोड़ने के प्रति आगाह कर रहा है। अब सवाल यह है कि इजरायल खुद गाजापट्टी में जब पंसा है तो वह ईंरान के साथ पंगा लेने के लिए सोच भी वैसे सकता है?

असल में इजरायल खुफिया सूचना अकेले उसकी एजेंसी ही नहीं उपलब्ध कराती। वह अपने दुश्मनों की हरकतों पर पैनी नजर रखने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और प्रांस से भी मदद लेता है। यही कारण है कि उसके ऊपर आने वाले खतरों की सूचना मोशाद से पहले उसे दूसरे देशों की खुफिया एजंेसियां ही देती हैं। लेकिन जिन देशों को इजरायल की सुरक्षा संबंधी चिंता है, वे भी नहीं चाहते कि उसकी छवि एक झगड़ालू पड़ोसी की बन जाए और उसके कारण दूसरे देशों को भुगतना पड़े। यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन इजरायल को संयम बरतने की चेतावनी दे डाली है। लब्बोलुआब यह है कि इजरायल और ईंरान के बीच संघर्ष का परिणाम भारत को ही नहीं कईं देशों को भुगतना पड़ सकता है। इसलिए इस तरह के तनाव को शीघ्र-अतिशीघ्र खत्म होने में ही सबकी भलाईं है।

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