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कांग्रेस की चूक

👤 mukesh | Updated on:5 May 2024 4:41 AM GMT

कांग्रेस की चूक

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कांग्रेस की चूक चुनाव के वक्त राजनेताओं का पार्टी छोड़ना और दूसरी पार्टी में जाना सामान्य घटना मानी जाती है किन्तु जब पार्टी के जिम्मेदार नेता ऐसा करें और प्रत्‍याशी टिकट वापस करें अथवा नामांकन के बाद चुनाव लड़ने से ही मना कर दें तो इससे लगता है कि पार्टी में बहुत बड़ी समस्या है। कांग्रेस पार्टी के प्रत्‍याशी पहले सूरत में पार्टी को चुनाव के बीच मझधार में छोड़कर चले गए, उसके बाद इंदौर और शनिवार को पुरी की प्रत्‍याशी ने चुनाव मैदान से हटने की घोषणा कर दी। शनिवार का दिन दिल्ली कांग्रेस के लिए इतना अशुभ रहा कि प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरविन्दर सिह लवली के साथ शीला सरकार में लगातार 15 सालों तक मंत्री रहे राजकुमार चौहान, पूर्व विधायक और यमुनापार के प्रभावशाली नेता नीरज बसोया और अमित मलिक ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए।

दिल्ली कांग्रेस के ये नेता अपने शीर्ष नेताओं से इसलिए नाराज थे क्योंकि उन्होंने उसी पार्टी से समझौता कर लिया जिसकी वजह से कांग्रेस को दिल्ली में सत्ता से बाहर होना पड़ा। इन नेताओं ने कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के इस सिद्धांत का विरोध किया जिसके मुताबिक भाजपा के विरोधी उनके शुभचितक हैं। यह कितना आसान समीकरण है कि आम आदमी पार्टी यदि भाजपा का विरोध करके सत्ता विरोधी वोट हासिल करने का प्रायास कर रही है तो कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी से यह उम्मीद करना निर्थक है कि वह ऐसा उनके हितों के लिए कर रही है।

सच तो यह है कि आम आदमी पार्टी जितना भाजपा की विरोधी है, उतनी ही कांग्रेस की भी विरोधी है। आज जब उसे सहारे की जरूरत है तो उसने अपने बड़े विरोधी के खिलाफ छोटे विरोधी को साथ मिला लिया है। यही दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को अच्छा नहीं लगा। यह सच है कि लवली और चौहान दोनों पहले भी भाजपा में रह चुके हैं किन्तु बात यह नहीं है कि लवली, राजवुमार चौहान के वापस भाजपा में आने से कितना फायदा होगा? बल्कि सवाल तो यह है कि चुनाव के ठीक पहले इन नेताओ का पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए कितना घातक साबित होगा।

असल में कोईं भी पार्टी जब प्राभारियों पर निर्भर हो जाती है तो उसकी इसी तरह दुर्गति होती है। चुनावी अंक गणित का जो फार्मूला कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्राभारी दीपक बावरिया ने समझाया उन्होंने उसी को मान लिया। फिर जो आत्मघाती पैसले लिए उसकी परिणति यही होनी थी, जो हुईं है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में प्राभारी से पहली बार प्रदेश नेताओं का टकराव हुआ है, 2019 में भी तत्कालीन प्रदेश प्रभारी भी आम आदमी पार्टी से समझौता करना चाहते थे किन्तु उस वक्त शीला दीक्षित के सामने प्रदेश प्रभारी की नहीं चली। शीर्ष नेतृत्व ने शीला दीक्षित की इच्छा के विरुद्ध वुछ भी करना उचित नहीं समझा। यह सही है कि शीला जी के नेतृत्व में पार्टी बहुत बुरी तरह हारी किन्तु पार्टी टूटने से बच गईं थी।

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