जैसे को तैसा
भारत की आक्रामक विदेश नीति से जहां चीन हतप्रभ और परेशान है वहीं उसके पड़ोसी काफी उत्साहित दिख रहे हैं। इसीलिए चीन ने भारत के साथ बैठकों का दौर भी बढ़ा दिया है। चूंकि भारत में एक धारणा यह बनी हुईं है कि चीन जब भी कोईं घुसपैठ करता है तो भारत मजबूरी में उसे वार्ता के लिए आमंत्रित करता है। दरअसल इस धारणा का आधार 1962 के युद्ध में भारत की पराजय के कारण उत्पन्न हुईं है लेकिन 2014 ऐसे से कईं अवसर आए हैं जब मौजूदा सरकार ने चीन को इस बात का एहसास दिलाने की कोशिश की है कि अब भारत बदल चुका है।
चीन भले न बदला हो कितु भारत जैसे को तैसे का जवाब देने के लिए तैयार है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन द्वारा की गईं गुंडागर्दी के बाद भारतीय सैनिकों ने वही हथवंडा अपनाया जो वह हमेशा अपनाते थे। अब चीन गश्त करने वाले क्षेत्रों में स्थाईं निर्माण करता है तो भारतीय सेना उसके सामने ही चौकी बनाकर उन पर निगरानी तेज कर देती है अथवा पहाड़ी क्षेत्र में ऊंचाईं पर कब्जा कर लेती है। इससे चीनी सेना अब नए क्षेत्रांे में घुसपैठ करने से बच ही नहीं रही है बल्कि भारतीय समकक्ष अधिकारियों से आग्रह कर रही है कि पहले जैसी स्थिति स्थापित होनी चाहिए। भारत ने चीन को ताकत का एहसास कराने के लिए ही साउथ चाइना सी में अपने युद्धपोत भेजे हैं। पूर्वी कमांड से तीन पोत आईंएनएस शक्ति और आईंएनएस किल्तन इसी व्रम में सिंगापुर पहुंचे हैं जहां उनका भव्य स्वागत हुआ। सिंगापुर के साथ ही भारत ने चीन के धुर विरोधी फिलीपींस को भी साधने की कोशिश की है।
साउथ चाइना सी में चीन फिलीपींस के क्षेत्राधिकार का उल्लंघन करता रहता है। भारत की अडानी समूह की वंपनी ने फिलीपींस के बातान शहर में एक एयरपोर्ट और एक बंदरगाह बनाने का प्रस्ताव किया जिसे वहां की सरकार ने स्वीकार कर लिया। लब्बोलुआब यह है कि चीन के खिलाफ भारत ने सख्त नीति अपना ली है।