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हैदराबाद बलात्कार का फैसला ऑन द स्पॉट हो गया

👤 Veer Arjun | Updated on:8 Dec 2019 4:41 AM GMT

हैदराबाद बलात्कार का फैसला ऑन द स्पॉट हो गया

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-अनिल नरेन्द्र

शुक्रवार सुबह जब मैं सो कर उठा तो खबर देखी कि तड़के हैदराबाद पुलिस ने बहुचर्चित रेप कांड के चारों आरोपियों को एनकाउंटर में मार गिराया तो मेरा पहला रिएक्शन था-शाबाश हैदराबाद पुलिस आपने न केवल पीड़ित महिला (मृतका) की आत्मा को शांति प्रदान की बल्कि पूरे देश में बलात्कारियों को कड़ा संदेश दिया कि अब आपको अपनी हैवानगी का तुरन्त परिणाम मिलेगा। पुलिस ने चारों आरोपियों को भागते समय उसी जगह पर मार गिराया जहां उन्होंने वेटेनरी डाक्टर के साथ दरिंदगी की थी। तेलंगाना पुलिस के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) ने बताया कि शुक्रवार की सुबह तीन बजे जब पुलिस वाले चारों अभियुक्तों को क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए घटनास्थल पर ले गई तो वे पुलिस के हाथों से रिवॉल्वर छीनकर भागने लगे, तब पुलिस ने एनकाउंटर कर उन चारों अभियुक्तों को मार गिराया। तेलंगाना पुलिस को लाख-लाख बधाई।

हमारे सामने निर्भया का केस भी है जिसमें सजा हुए सात साल हो चुके हैं और आज तक कानूनी दांव-पेंच के कारण अभी तक फांसी नहीं हुई। रेयर ऑफ रेटस्ट क्राइम करने वालों का यही हश्र होना चाहिए। दुनिया के कई देशों में भी तुरन्त मौत की सजा पूरी कर दी जाती है। न कोई अपील, न दलील, न वकील हाथ के हाथ मामला निपटा दिया जाता है। हमने यह भी देखा कि उत्तर प्रदेश में कुख्यात गैंगरेप केस में एक अभियुक्त को हाई कोर्ट ने बेल दे दी। उसने पहला काम यह किया कि अपने चन्द साथियों के साथ बेचारी, अभागी महिला को जिन्दा जला दिया और शनिवार को उसकी मौत हो गई। ऐसे जघन्य अपराधियों को हाई कोर्ट पता नहीं जमानत पर क्यों छोड़ देता है ताकि वह जेल से निकलते ही फिर कोई जघन्य अपराध करे? मैं यह भी जानता हूं कि इस एनकाउंटर पर कई तरह के सवाल उठेंगे। अभियुक्तों के मानवाधिकार की बात उठेगी, पुलिस कस्टडी में एनकाउंटर पर सवाल उठेंगे, पुलिस द्वारा एनकाउंटर कैसे हुआ इस पर सवाल उठेंगे। यह भी कहा जाएगा कि पुलिस को इस तरह खुलेआम एनकाउंटर को लाइसेंस नहीं दिया जा सकता, इसका दुरुपयोग हो सकता है। मगर मानवीय पक्ष तो यह है कि इससे मृतक की आत्मा को शांति मिलेगी। उसके परिवार के लोग चैन की सांस लेंगे। रेपिस्ट के मानवाधिकार की बात करने वाले लोगों को पीड़िता के मानवाधिकारों की भी तो चिन्ता होनी चाहिए। जिस पुलिया के नीचे यह एनकाउंटर हुआ है उसके ऊपर से जाने वाली बसों से महिलाओं की खुशी से चिल्लाने की आवाजें यह प्रदर्शित करती हैं कि महिलाएं इस एनकाउंटर से खुश हैं।

डर इसका भी है कि पुलिसिया बर्बरता के लिए यह एनकाउंटर रास्ते चौड़े कर रहा है। पुलिस कल को किसी को भी अपराधी बताकर मुठभेड़ में मार देगी और लोग तालियां बजाते रहेंगे। हमारा जोर न्याय व्यवस्था को मजबूत, पारदर्शी बनाने पर भी होना चाहिए। न्याय मिले और जल्दी मिले इसके लिए आवाज उठानी चाहिए न कि पुलिस मुठभेड़ों में आरोपियों-अपराधियों के मारे जाने का समर्थन करना चाहिए। मामला मानवाधिकार का नहीं, न्यायिक प्रक्रिया पर विश्वास का है। बलात्कार, जघन्य अपराध करने वालों को, फिर पीड़िता को जिन्दा जलाने वालों को हर व्यक्ति चाहता है कि मौत की सजा मिले। खाड़ी के देशों की तरह चौराहे पर सरेआम सूली पर टांग दिया जाना चाहिए के भी लोग पक्षधर हैं, जिससे कि इन अपराधियों में खौफ पैदा हो। लेकिन जन आक्रोश के मद्देनजर पुलिस एनकाउंटर करके एक नई परिपाटी शुरू कर दे, यह खतरनाक भी हो सकता है। जरूरत तो इस बात की है कि फास्ट ट्रेक पर ऐसे जघन्य अपराध के आरोपियों को दोषी करार देकर न्यायसम्मत सजा दी जाए। इस तरह के पाश्विक दरिंदों को मौत मिले, लेकिन कोर्ट से।

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