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हरियाणा में डेंट, महाराष्ट्र में डैमेज और झारखंड में डिफीट

👤 Veer Arjun | Updated on:26 Dec 2019 7:46 AM GMT

हरियाणा में डेंट, महाराष्ट्र में डैमेज और झारखंड में डिफीट

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-अनिल नरेन्द्र

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदम्बरम ने बेल पर रिहा होने के बाद झारखंड में मीडिया से बातचीत में दावा किया था कि हरियाणा में हमने डेंट दिया, महाराष्ट्र में डैमेज किया और झारखंड में निश्चित तौर पर भाजपा को डिफीट कर देंगे। चुनाव परिणामों ने चिदम्बरम की इस बड़ी भविष्यवाणी को सच साबित कर दिया। हरियाणा में भाजपा ने जोड़-तोड़ कर सरकार जरूर बना ली, लेकिन इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि पिछले दो माह में तीन राज्यों में हुए चुनाव परिणामों ने भाजपा को बड़ा झटका दिया है।

झारखंड के चुनाव परिणामों का झटका दिल्ली तक महसूस किया गया और अब यह माना जा रहा है कि दिल्ली में अगले वर्ष के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम पर भी इसका सीधा असर देखने को मिल सकता है। झारखंड विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नौ और अमित शाह की एक दर्जन जनसभाओं के साथ-साथ तमाम केंद्रीय मंत्रियों ने पिछले एक माह के दौरान झारखंड को अपना पैंप कार्यालय भी बनाया, लेकिन परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए। पांच चरणों में हुए चुनावों में भाजपा ने लगभग हर मंच पर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370, तीन तलाक, अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का जिक्र करने के साथ-साथ अंतिम दो चरणों में नागरिकता संशोधन कानून का मुद्दा बनाया लेकिन वह काम नहीं आया।

इसके उलट यह हुआ कि इन भारी-भरकम मुद्दों ने झारखंड के स्थानीय मुद्दों को दबा दिया। विकास के एजेंडे से शुरू हुई लड़ाई का विषय परिवर्तन होने का नकारात्मक असर देखा गया। विकास बनाम बदलाव की ल़ड़ाई में जनता ने बदलाव को चुना। 2017 के बाद से झारखंड सातवां ऐसा राज्य है जो भाजपा के हाथों से निकला है। दिसम्बर 2017 में भाजपा व एनडीए की 19 राज्यों में सरकार थी। तब 72 प्रतिशत आबादी और 75 प्रतिशत भू-भाग पर भगवा लहरा रहा था। दिसम्बर 2019 आते-आते 15 राज्यों में ही भाजपा व एनडीए की सरकारें बची हैं। इनमें 42-30 प्रतिशत आबादी और 35 प्रतिशत भू-भाग आता है। हालांकि कर्नाटक, मिजोरम, त्रिपुरा व मेघालय में भाजपा ने सरकार बनाई थी। इनमें कर्नाटक ही बड़ा राज्य है।

भाजपा का मिशन 65 फेल होने के कई कारण रहे। प्रमुख हैं-रघुवर दास से गहरी नाराजगी, गैर आदिवासी चेहरा खारिज, सरयू राय जैसे नेताओं की अनदेखी, भीतरघात व दलबदलू नेताओं पर भरोसा और आजसू से 20 साल पुरानी दोस्ती टूटना। और तो और विपक्ष का तोड़ नहीं निकाल पाए। स्थानीय मुद्दे विकास के राष्ट्रीय नारे पर भारी रहे। भू-अधिग्रहण व कामंतकारी कानून पर लचर रवैया। राम मंदिर व नागरिकता कानून का विरोध भाजपा को भारी पड़ा। झामुमो, राजद व कांग्रेस के महागठबंधन ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा। भाजपा अकेली पड़ गई। नरेंद्र मोदी का क]िरश्मा अब काम नहीं आया। अहंकार और ओवर कॉन्फिडेंस भाजपा को ले डूबा।

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