चीन की झल्लाहट का नतीजा है एलएसी पर झड़प
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हैं और गत 5 मईं को दोनों सेनाओं में मारपीट शुरू हुईं और 6 मईं को सुबह शांत हो गईं। बलवान घाटी और पैंगांग झील में तैनात भारत और चीन के सैनिक इतनी बुरी तरह उलझे ि़क सीमा क्षेत्र पर तैनात दोनों तरफ सैनिक बल बढ़ा दिए गए और 9 मईं को सिक्किम के उत्तरी क्षेत्र में संघर्ष हुआ। इसके बाद लाहौल स्फीति में दोनों देशों के सैनिक उलझे। जब पूरी दुनिया इस वक्त कोविड-19 से निपटने में जुटी हुईं है तो चीन भारत को युद्ध के लिए उकसा रहा है। सच तो यह है कि इसमें हैरानी की कोईं बात नहीं है। कारण है कि कोरोना वायरस को लेकर चीन विश्व के लगभग 120 देशों के निशाने पर आ गया है। इसलिए वह जिस देश को धमका पा रहा है उसे धमका रहा है। गत सप्ताह आस्ट्रेलिया से भी चीन उलझ चुका है किन्तु चूंकि इस बार चीन के खिलाफ गुटबंदी का नेतृत्व करने वाले देश एकजुट हैं इसलिए चीन का एक-एक देश को धमकाने की रणनीति शायद ही काम आए।
बहरहाल भारत चीन के विरुद्ध सव््िराय रणनीतिक देशों के साथ मिला हुआ है और वह चीन को बार-बार इस बात का संकेत देता रहा है कि यदि वह भारत के साथ मित्रवत व्यवहार नहीं कर सकता तो शत्रु की तरह भी नहीं रहे। किन्तु चीन अब विश्व राजनीति की इस वास्तविकता को समझ चुका है कि अमेरिका और उसके साथी यूरोपीय एवं अन्य देश एशिया में भारत को समर्थन करने के लिए तैयार हैं। सच तो यह है कि भारत अमेरिका ही नहीं रूस से भी चीन के खिलाफ रणनीति बनाकर चीन के पड़ोसी देशों में अपनी धाक जमाने के लिए बहुत पहले से काम शुरू कर दिया था। चीन की मुश्किल यह है कि उसके देश के अंदर इस बात को लेकर घबराहट है कि आने वाले दिनों में चीन की हालत खराब होने वाली है। चीन भारत के खिलाफ मोर्चा खोलकर अपने देश के लोगों का ध्यान हटाना चाहता है किन्तु दूसरी तरफ वह दुनिया को यह बताना चाहता है कि वे जिस भारत पर इतना भरोसा करते हैं उसके पड़ोसी ही उससे परेशान हैं। इसीलिए उसने नेपाल को उकसा कर नया मानचित्र जारी कराया जिसमें उत्तराखंड के लिपुलेख और कालापानी को अपने क्षेत्र में दिखाया। चीन की सलाह पर ही नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार ने ऐसा दुस्साहस किया। विदेश मंत्री जयशंकर ने स्पष्ट कहा है कि किसी के कहने पर नेपाल ने ऐसा विवादास्पद मुद्दा उठाया है। चीन भी ऐसे ही करता है। दूसरे देश के किसी क्षेत्र को अपने मानचित्र में दिखाता है और जब शोर मचता है तो कहता है कि गलती हो गईं। फिर अपने मानचित्र में उसी क्षेत्र को दिखाता है। वुछ दिन बाद सीमा को विवादास्पद क्षेत्र घोषित कर देता है और वुछ दिन बाद कब्जा करने की कोशिश करता है। नेपाल में इन दिनों केपी शर्मा ओली और प्राचंड दोनों ही चीन के चहेते नेता हैं और दोनों 1816 की नेपाल और ब्रिटिश सरकार के बीच सम्पन्न हुईं सुगौली संधि की आलोचना करते हैं। इस संधि के तहत ही अंग्रोजों ने लिपुलेख और कालापानी को भारत में मिला दिया था जबकि मिथिला क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा नेपाल को दे दिया था।
असल में चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा तक अपने देश में सड़वें बना ली हैं किन्तु भारत ने नहीं बनाईं थी। 2016 के बाद भारत ने सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा तक सड़वें बनाने का काम शुरू कर दिया। अब सभी सड़वें चीन सीमा तक पहुंचने वाली हैं। चीन इसलिए भी झल्लाया हुआ है कि भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा तक सड़कों का निर्माण कार्यं लगभग पूरा वैसे कर लिया। चीन ने दक्षिण चीन सागर को कब्जाने का जो षड़्यंत्र रचा था उसके खिलाफ अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, भारत और आस्ट्रेलिया एकजुट हो चुके हैं।
चीन ने गलकटईं की राजनीति करके रूस को पहले ही नाराज कर लिया है। अमेरिका चाहता है कि चीन के खिलाफ रूस को भारत खड़ा करे और इसको लेकर वह भारत के साथ सौदेबाजी भी कर रहा है। पहले चीन पाकिस्तान के पीठ पर हाथ रखकर भारत को परेशान करता था। अब पाकिस्तान आर्थिक रूप से जर्जर हो चुका है और उसको भारत के खिलाफ जेहादी जंग का फायदा तो मिला नहीं उल्टे तबाही ही मिल रही है। ऐसे में चीन को लगता है कि यदि भारत पाक अधिवृत कश्मीर को वापस लेने के लिए बल प्रायोग करता है तो पाकिस्तान में गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो जाएगी, चीन के भी आर्थिक और सामरिक समीकरण ध्वस्त हो जाएंगे। पाक अधिवृत कश्मीर में चीन के सैनिक पहले से ही मौजूद हैं।
चूंकि भारत ने पाक अधिवृत कश्मीर पर अपना अधिकार जमाने के उद्देश्य से वहां का मौसम जारी करना शुरू कर दिया है इससे चीन और तिलमिला गया है। वह एक तरफ भारत को इस बात का एहसास दिलाना चाहता है कि उसे चीन से दुश्मनी बहुत भारी पड़ेगी। चीन की भारत के खिलाफ इतनी नाराजगी इसलिए भी है कि भारत ने हिन्द महासागर में चीन के मंसूबों पर पानी पेर दिया है। मालदीव और श्रीलंका में उसने अपना जंगी ठिकाना बनाने के लिए जितने प्रायास किए भारत ने उन सभी पर एतराज जताया। मालदीव में चीन समर्थक सरकार ही बदल गईं और उसने चीन की तमाम परियोजनाओं को रोक दिया जबकि श्रीलंका ने क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बनाए रखने के लिए भारत की परियोजनाओं को भी मंजूरी दे दी। चीन ने जो सोचा था वह हिन्द महासागर में इसलिए कर पाने में असमर्थ है क्योंकि भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान ने खुलकर न सिर्प विरोध कर दिया बल्कि अपने-अपने जंगी जहाजों को तैनात कर दिया है।
चीन इस बात को समझता है कि भारत अब अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया के साथ सामरिक सहयोग की दृष्टि से इतने आगे बढ़ चुका है कि उसका वापस आना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है। इसके साथ ही अमेरिका अब अपनी वंपनियों को चीन से निकालकर भारत में पूंजी निवेश की सलाह देगा जो चीन की छवि को एशिया में काफी क्षति पहुंचाएगी। यही कारण है कि वह भारत को उलझाए रखना चाहता है। किन्तु भारत की सामरिक नीति पर चीन के इस दबाव की राजनीति का कोईं असर पड़ेगा, इसकी बहुत कम संभावना है क्योंकि अब भारत 1962 वाला नहीं है। चीन और भारत की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हो रही झड़पों का कोईं भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसका समझौता भारत और चीन के बीच हुआ हो। सच तो यह है कि बलवान घाटी और पैंगांग झील से लगती सीमा रेखा का समझौता ब्रिटिश सरकार और तिब्बत सरकार से हुआ था, चीन ने भारत को छोड़कर अपने सभी पड़ोसियों से सीमा विवाद हल कर लिया है किन्तु भारत के साथ वह सीमा विवाद बनाए रखना चाहता है ताकि भारत पर दबाव बनाया जा सके और एशिया में अपने प्राभाव को बनाए रखा जा सके।
लब्बोलुआब यह है कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के साथ चाहे जितना उलझे किन्तु भारतीय सेना और नेतृत्व दोनों उसके दबाव में आकर कोईं पैसला करने वाले नहीं हैं। यही कारण है कि चीनी सेना के भारतीय क्षेत्र में घुसने के तुरन्त बाद सेना प्रामुख नरवणे ने लद्दाख का दौरा किया जो बहुत गंभीर बात है।
सच तो यह है कि भारत भी यह बात अच्छी तरह समझता है कि यदि ड्रैगन को एक के बाद एक वूटनीतिक व सामरिक झटके लगेंगे तो एशिया में भारत की स्थिति अपने आप मजबूत रहेगी और इसके लिए उसे चीन की सदाशयता की जरूरत नहीं है बल्कि जरूरत है उसे उसकी औकात दिखाने की।