पुलिस का ऐसा एनकाउंटर जिसमें अपने ही 8 खो दिए
-अनिल नरेन्द्र
उत्तर प्रदेश के कानपुर में गुरुवार-शुक्रवार की रात हिस्ट्रीशीटर पकड़ने के लिए पुलिस पर उसके बदमाशों ने ऑटोमैटिक हथियारों से गोलियां बरसाईं। इसमें सीओ (डीएसपी), 3 सब-इंस्पेक्टर समेत 8 पुलिस वाले शहीद हुए। वुछ घायल हुए जो शहीद हो सकते हैं। बदमाशों ने एके-47 समेत कईं हथियार भी छीने। घटना चौबेपुर थाना इलाके के बिकरू गांव की है। पुलिस अपहरण, लूट और हत्या के प्रायास में वांछित बिकरू गांव के हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को पकड़ने गईं थी।
बताते हैं कि पुलिस आने की खबर दुबे को पहले ही मिल गईं थी। जैसे ही पुलिस दल गाड़ियों से उतरा, 15-20 बदमाशों ने घरों के अंदर और आसपास की छतों से गोलियां बरसा दीं। जान बचाने के लिए छिपे पुलिस वालों को ढूंढ-ढूंढकर गोली मारी गईं। वारदात के बाद बदमाशों की तलाश कर रही पुलिस ने शुक्रवार सुबह दो अपराधी मार गिराए। बदमाश विकास दुबे पर 60 केस दर्ज हैं। साल 2003 में उसने शिवली थाने में घुसकर दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या की थी। उसकी गिरफ्तारी पर 50 हजार का इनाम का ऐलान किया गया था। सूचना गुप्त रहेगी। पुलिस कर्मियों को शहीद और घायल करने के बाद विकास और उसके साथी घरों से बाहर निकले और पुलिस कर्मियों की दो पिस्टल, एक इंसास राइफल और एक एके-47 राइफल लूटकर भाग निकले। बिकरू गांव में शहीद हुए सीओ और पुलिस कर्मियों के परिजनों को राज्य सरकार एक करोड़ रुपए मुआवजा और असाधारण पेंशन देगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि साथ ही परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी दी जाएगी। ऐसा नहीं कि विकास दुबे कोईं अचानक उभरा माफिया है। जो किसी पर्दे में छिपा हुआ था। पिछले कईं सालों से अपने अपराधों और लगभग हर राजनीतिक पाटा में अपनी पहुंच के बूते उसने रसूख कायम किया था। जिस नामजद और जाने-माने अपराधी के खिलाफ 60 से ज्यादा मामले दर्ज हैं, वह अलग-अलग घटनाओं में थाने में घुसकर एक नेता और पुलिस कमा समेत अन्य लोगों की हत्या करने का अपराधी है।
आखिर वह किसके संरक्षण में या फिर किन वजहों से बिना किसी हिचक के अपना सामान्य जीवन जीता रहा है और स्थानीय राजनीति में सक्रिय भी रहता है? 80 के दशक में चंबल घाटी में सक्रिय दस्यु गिरोह रहे हों या फिर मौजूदा शहरी सयता में पनपे-फले-पूले हिस्ट्रीशीटर से छुटभैया बने नेता.. हर किसी के उद्धव के पीछे किसी न किसी सियासी सूरमा का बदहस्त रहा है। जरायम की दुनिया में चमकने के बाद चुनावों में स्वार्थसिद्धि के बलबूते यह छुटभैया हिस्ट्रीशीटर पहले तो सियासी आका के बाजीगर हुए.. फिर खुद सियासत में पैर जमाकर पुलिस हो या आम आदमी उनके शोषण की दास्तां लिखते रहे हैं। कानपुर के विकास दुबे की कहानी भी ऐसी ही हकीकत के इर्द-गिर्द परवान चढ़ती रही है। उत्तर प्रादेश पुलिस का यह ऐसा एनकाउंटर है जिसमें उसने अपने ही 8 जवान खो दिए। हम शहीद हुए पुलिस कर्मियों को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं। कारण तो जांच का विषय है पर कटु सत्य तो यही है कि एनकाउंटर करने गए पुलिस वाले ही उलटा शहीद हो गए।