कश्मीर में बंदूक नहीं रोटी-रोजी बड़ा सवाल
-अनिल नरेन्द्र
अनुच्छेद 370 समाप्त होने के एक साल बाद कश्मीर में कईं नए रंग नजर आने लगे हैं। बड़े बदलाव के बाद हालांकि सरकार तेजी से विकास के मोच्रे पर ध्यान वेंद्रित करके लोगों के दिलों को जीतने का दावा तो कर रही है पर एक साल बाद भी कश्मीर में रोटी-रोजी का सबसे बड़ा सवाल खड़ा है। लोग रोटी-रोजी और रोजगार के सवाल को प्राथमिकता दे रहे हैं।
लगातार दुष्प्राचार का एजेंडा चलाने में जुटे पाकिस्तान और अलगाववादियों को लेकर घाटी में ज्यादातर लोगों में कोईं सहानुभूति नहीं रही है। स्थानीय लोगों से बातचीत में मुख्य धारा के कश्मीरियों का कश्मीरी नेताओं से मोहभंग हो चुका है। पंचायतों के अलावा कईं स्तरों पर नया नेतृत्व उभर रहा है। सरकार से कईं मसलों पर लोगों की शिकायतें हैं। अनुच्छेद 370 के प्राति लोगों का मोह बरकरार है। वह आतंक के खिलाफ बोलने लगे हैं। उन्हें लगता है कि आतंकवाद, पाक के दखल की वजह से आम कश्मीरियों को निशाना बनाया जा रहा है और आम कश्मीरी निशाने पर आ गए हैं।
अनुच्छेद 370 के खत्म होने के एक साल बाद आज भी स्थानीय लोगों के सामने रोटी-रोजी सबसे बड़ा सवाल है। ज्यादातर भर्तियां ठप हैं। स्थानीय कश्मीरियों में काम नहीं होने की शिकायत आम है। बहुत से लोगों को अनुच्छेद 370 समाप्त होने से अपने हक में बाहरी दखल की आशंका भी नजर आने लगी है। आधिवासी नीति को लेकर भी बहुत से लोगों में सवाल उठ रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ बड़ी संख्या में प्रावासी मजदूरों का कश्मीर में दोबारा वापस आना एक अलग भरोसे की कहानी बयां कर रही है। श्रीनगर के फारुक ने कहा कि पाक ने आग लगाईं है। वह खुद भूखा-नंगा है, हमें क्या देगा? हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों को रोजगार मिले। एक अन्य नागरिक शकील ने कहा कि काम मिलेगा तो बच्चों का दिमाग इधर-उधर नहीं जाएगा। उधर अधिकारियों का कहना है कि पंचायतों के जरिये बड़े पैमाने पर काम हो रहे हैं। वेंद्र द्वारा स्पष्ट संकेत स्थानीय प्राशासन को है कि लोगों की शिकायतों को दूर करने, मुख्य धारा से जोड़ने का एकमात्र जरिया विकास है। शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि स्पष्ट संदेश है कि विकास में जो गैप था वह भरा जाए। बहुत से लोगों ने बदलाव स्वीकार किया है।
बाकी लोगों को भी आने वाले दिनों में फायदा नजर आएगा। लोगों से जुड़ने के लिए बैक टू विलेज प्राोग्राम सफल साबित हुआ है। यह सरकार का कहना है पर इससे लगता है कि ज्यादातर कश्मीरी सहमत नहीं हैं। उनके लिए रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार आज भी सबसे महत्वपूर्ण है।