Home » संपादकीय » आईंएसआईं और खालिस्तानियों की साजिश

आईंएसआईं और खालिस्तानियों की साजिश

👤 Veer Arjun | Updated on:30 Jan 2021 10:25 AM GMT

आईंएसआईं और खालिस्तानियों की साजिश

Share Post

आंदोलन कोईं भी हो जब उसमें हिसा पैलाने वाले तत्व शामिल हो जाते हैं तो उसका कमजोर होना स्वाभाविक है। दिल्ली की सीमाओं पर जमें किसानों को स्थानीय लोगों का जो समर्थन मिलने का दावा 25 जनवरी तक किया जाता रहा, वैसा दावा 26 जनवरी की घटना के बाद नहीं किया जा रहा है। सच तो यह है कि सिघु बार्डर, गाजीपुर और टीकरी बार्डर पर जमें किसानों को स्थानीय लोगों के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है।

दरअसल जितने भी उपद्रवियों ने 26 जनवरी को दिल्ली में तांडव किया वे सभी एक लिखी स्व््िराप्ट पर अपनी भूमिका निभा रहे थे। सिख मामले की निगरानी करने वाले खुफिया तंत्र को यह जानकारी मिल चुकी थी। किसान नेता राकेश टिवैत सहित पंजाब से आए दूसरे किसान नेता यूं ही नहीं दिल्ली के आईंटीओ और लाल किले पर उपद्रव की बातें कर रहे थे। इन किसान नेताओं को यह पता ही नहीं था कि खुफिया तंत्र ने उनकी सारी गतिविधियों पर नजर गड़ा रखी है। खुफिया तंत्र ने सारे किसान नेताओं की बातचीत, निर्देशन एवं वक्तव्य की वीडियो बना रखी है। उन्हें यह बात अच्छी तरह पता थी कि 25 जनवरी की रात में किसान नेताओं की बैठक में यह बात सभी को बता दी गईं थी कि सिख संगत ने लाल किले पर निशान ध्वज फहराने का पैसला लिया है।

सच तो यह है कि खालिस्तान की जो हिसक और आतंकी गतिविधियां पंजाब में 1980 के दशक में चलती थी, उसकी बागडोर सीमापार आईंएसआईं के हाथ में थी। आईंएसआईं ने मिशन पंजाब को कभी छोड़ा ही नहीं। 1990-91 में जब आतंकियों को पुलिस ने निपटा दिया तब भी उन परिवारों के संपर्व में आईंएसआईं थी जिनके परिवार के लोग पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे। इसके लिए आईंएसआईं ने उन सिख खुराफातियों को माध्यम बनाया जिन्हें वह या तो भारत से बाहर निकालने में सफल हो गईं थी या फिर जो पहले से ही भारत से बाहर रहते थे। 1991 से अब तक अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और पाकिस्तान के खालिस्तानी संगठन लगातार आईंएसआईं के संपर्व में रहते हैं और इसके लिए वे सहायता राशि संग्राह करते हैं। संभव है कि किसान नेताओं ने आईंएसआईं की गहरी चाल पर भरोसा नहीं किया हो क्योंकि जो लोग दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन चला रहे हैं उन्हें पुलिस अधिकारियों की इन चेतावनियों में कोईं खास रुचि नहीं थी कि 'आपके आंदोलन में वुछ खुराफाती घुस गए हैं।' यही कारण है कि वे पुलिस के शीर्ष अधिकारियों से अपनी हर मुलाकात में एक ही बात करते थे कि 'हम तो अपना आंदोलन वृषि कानूनों को लेकर चला रहे हैं। यदि हमारे बीच वुछ उपद्रवी तत्व आ गए हैं तो हम उन्हें पहचानें वैसे?'

खुफिया तंत्र, दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा के अनुरोध पर ही पंजाब पुलिस के आईंपीएस अफसर लगातार आंदोलन स्थल पर खुराफातियों की पहचान के लिए सतर्व रहे। किन्तु सच यह भी है कि सरकार, खुफिया तंत्र के तमाम सक्र‍ियता के बावजूद उपद्रवियों का प्राभाव बढ़ता रहा और किसान संगठनों के नेता न चाहते हुए भी उनकी गतिविधियों को नजरंदाज करते रहे। किसान संगठनों के नेता यह तो जानते थे थोड़ी-बहुत गड़बड़ होगी तो कोईं बात नहीं किन्तु उन्हें यह पता नहीं था कि हिसा को प्रायोजित करने वाले उपद्रवियों को एकत्र करने का षड्यंत्र भी रच रहे हैं। बहुत सारे उपद्रवियों को किसान नेता पहचानते भी नहीं होंगे क्योंकि उनके आंदोलन में प्रात्यक्ष रूप से शामिल वुछ लोगों ने अलग से आईंएसआईं और खालिस्तानियों का एजेंडा चलाया। किसान संगठनों के शीर्ष नेताओं को इस बात की भनक भी नहीं लगी होगी किन्तु ऐसे तत्वों ने करोड़ों रुपए डकार कर उपद्रव कराए।

बहरहाल सरकार को ऐसे तत्वों की जानकारी है। ऐसे तत्व 2016-17 से ही पंजाब में सव््िराय हैं। मुख्यमंत्री वैप्टन अमरिन्दर सिह और गृह मंत्रालय इस संदर्भ में लगातार विचार-विमर्श करते रहे। चिन्ता की बात यह है कि लाल किले और आईंटीओ के बाद अब उनका अगला निशाना कौन है। और क्या समय रहते ऐसे तत्वों को पुलिस और राज्य सत्ता नियंत्रित कर पाएगी।

Share it
Top