कंगाली की आहट
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआईं) ने राज्यों को सलाह दी है कि वह लोकलुभावन योजनाओं में कटौती करें अथवा उनको पुनर्गठित करें अन्यथा उनकी वित्तीय स्थिति बेहद खराब हो जाएगी। एसबीआईं के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्या कांत घोष ने एसबीआईं द्वारा जारी एक शोध रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि अब तक राज्य मुफ्त की योजनाएं वेंद्र सरकार से मिलने वाले उन पैसों से कर रहे थे जो जीएसटी के बदले क्षतिपूर्ति के रूप में 2017 से मिल रहा था। असल में यह राशि 5 वर्ष तक मिलनी थी क्योंकि जब जीएसटी लागू हुईं तो वुछ राज्यों को राजस्व क्षति उठानी पड़ी। इसलिए तय यह हुआ कि वेंद्र सरकार राज्यों को राजस्व घाटा पूरा करने के लिए 5 वर्षो तक क्षतिपूर्ति की राशि देगी और अब जून 2022 से क्षतिपूर्ति की यह सुविधा खत्म हो जाएगी। फिर भी यदि राज्य सरकार इन योजनाओं को जारी रखेंगे तो कर्ज बढ़ेगा फिर उनकी आर्थिक तबाही तय है।
दरअसल मार्च में वेंद्रीय मंत्रालयों के सचिवों ने प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करके उनसे आग्राह किया कि वह राज्यों द्वारा चलाईं जा रही खैराती योजनाओं पर रोक लगवाने के लिए मुख्यमंत्रियों से बात करें अन्यथा उनकी हालत भी श्रीलंका जैसी ही हो जाएगी।
सच तो यह है कि वुछ राज्य खैराती योजनाओं को चला रहे थे तो उन्होंने यह नहीं सोचा कि ऐसी योजनाओं की सीमा भी होती है। उन्होंने कर्ज माफी, पुरानी पेंशन की शुरुआत जैसी योजनाओं के ऐसे महत्वाकांक्षी और लुभावने सपने दिखाए कि जनता को उनसे आशा बंधी किन्तु योजनाएं राज्य के आर्थिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने के लिए पर्यांप्त हैं।
तेलंगाना जैसा राज्य अपने वुल राजस्व का 35 प्रातिशत लोक-लुभावनी योजनाओं पर खर्च करता है जबकि राजस्थान 31 प्रातिशत। दूसरे राज्य भी खर्च करते हैं और यह दो राज्य सबसे ज्यादा। इनके अलावा छत्तीसगढ़, आंध्र प्रादेश, बिहार, झारखंड और पािम बंगाल जैसे राज्य अपने वुल राजस्व का 5-19 प्रातिशत हिस्सा लोक-लुभावन योजनाओं पर खर्च करते हैं। वुछ राज्यों के मामले में यह भागीदार 63 प्रातिशत तक पहुंच जाती है। एसबीआईं को इस बात का डर है कि जब जून 2022 से सरकार जीएसटी की क्षतिपूर्ति राशि देना बंद कर देगी तब उनकी खैराती योजनाओं का क्या होगा? इसीलिए अभी से वुछ राज्य भूमिका बांधने लगे हैं कि वेंद्र अभी इस क्षतिपूर्ति की राशि को देना जारी रखे।
रोचक सवाल है कि जून के बाद खैराती योजनाएं राज्यों की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बनेंगी या फिर राज्य सरकारें इन योजनाओं को अपने आप बंद करने पर विवश होंगी? किन्तु वंगाली की आहट से घबराईं हुईं वुछ समझदार राज्य सरकारों ने मुफ्त सुविधाओं पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया है।
लब्बोलुआब यह है कि एसबीआईं की सलाह मानकर राज्य अपने- अपने ढांचागत विकास पर ध्यान दें और कमजोर वर्ग को ही मुफ्त योजनाओं का लाभ दें। जो वर्ग सक्षम हो या आयकर भुगतान करने की स्थिति में हो उन्हें मुफ्त में कोईं सुविधा न दे। अपने संसाधनों का उपयोग उत्पादन एवं निर्माण क्षेत्र में उपयोग करें ताकि खैराती योजनाओं की जरूरत ही न पड़े।
वेंद्र सरकार की तमाम योजनाएं चल रही हैं जो राज्यों को मुफ्त अनाज, मुफ्त वैक्सीन तो दे ही रही हैं साथ ही सड़क, पुल, एयरपोर्ट, रेल पटरियों को बिछाने, अस्पताल एवं उच्च शिक्षण संस्थानों, फ्लाईंओवर का निर्माण, रक्षा क्षेत्र में उत्पादन एवं विकास इत्यादि जिन्हें सरकार रोक कर राज्यों की मुफ्त योजनाओं को चलाने के लिए राज्यों को धनराशि उपलब्ध कराने वाली नहीं है। राज्य सरकारों ने यदि शीघ्रतिशीघ्र इन योजनाओं पर कोईं सुधारात्मक पैसला नहीं लिया तो उन्हें वित्तीय संकट से जूझना पड़ सकता है। इसलिए अभी से वंगाली की आहट सुनने का प्रायास करें राज्य सरकारें।