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धाकड़ जीत

👤 Veer Arjun | Updated on:7 Aug 2022 4:15 AM GMT

धाकड़ जीत

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उम्मीद के मुताबिक उपराष्ट्रपति चुनाव में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कांग्रोस और विपक्ष की उम्मीदवार मारग्रोट अल्वा को हराकर धाकड़ जीत हासिल की है। धनखड़ को 528 वोट जबकि विपक्ष के उम्मीदवार को सिर्प 182 वोट मिले। विपक्षी उम्मीदवार को उम्मीद से 23 वोट कम मिले। अच्छा होता कि आम सहमति से ही उपराष्ट्रपति चुने जाते किन्तु सत्तापक्ष और विपक्ष में सहमति न बन पाने के कारण चुनाव अनिवार्यं हो गया। विपक्ष खुद भी एकजुट नहीं रह पाया। टीएमसी ने इस चुनाव से खुद को दूर रखा था किन्तु पाटा के दो सांसदों शिशिर अधिकारी और दिव्येन्दु अधिकारी ने शीर्ष नेतृत्व के पैसले का उल्लंघन करके वोट डाला। इसके अलावा सपा के दो और बसपा के एक सांसद ने वोट नहीं डाला। भाजपा व शिवसेना के भी दो सांसदों ने वोट नहीं डाला।

राज्यसभा का पदेन सभापति होने के कारण उपराष्ट्रपति सभी सदस्यों का अभिभावक होता है। राज्यसभा के संचालन में वह सभी पार्टियों के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा तो करता ही है बल्कि निष्पक्षता का पालन करते हुए दिखता भी है। कईं अवसर आते हैं जब सत्तापक्ष और विपक्ष के सदस्यों के बीच तनातनी बढ़ जाती है तो उपराष्ट्रपति दोनों के बीच सहमति का रास्ता सुझाने की भूमिका निभाते हैं क्योंकि विपक्ष भी सभापति को अपना ही मानते हैं। किन्तु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि विपक्ष के सदस्य पूर्वाग्राहवश सभापति को सत्तापक्ष का मानकर उच्च सदन को अशांत करने के लिए प्रातिबद्ध होते हैं तो सभापति को विवश होकर कार्रवाईं करनी पड़ती है। विपक्ष यदि सभापति को अपना ही माने तो सदन में व्याप्त गतिरोध को तोड़ने में मदद मिलती है। इसके लिए सभापति को भी निष्पक्षता का भाव दिखाते हुए विपक्ष के सदस्यों को संसदीय अधिकारों का सरकार से सुरक्षा प्रादान कराने का एहसास दिलाना होगा।

जगदीप धनखड़ अत्यंत व्यावहारिक व्यक्तित्व के तो हैं ही उन्हें संसदीय मर्यांदाओं के पालन का भी अनुभव है, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी सदस्यों को वह अपना और सभी सदस्य उन्हें अपना ही मानेंगे। (एसपी)

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