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कांग्रेस भी गुलाम से आजाद हुईं

👤 Veer Arjun | Updated on:27 Aug 2022 5:21 AM GMT

कांग्रेस भी गुलाम से आजाद हुईं

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कुछ दिनों से कईं राज्यों में और पार्टियों में हलचल मची हुईं है। एक तरफ झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विधायक पद का अयोग्य ठहराया जा रहा है और इस पर सियासी हलचल मची है तो वहीं आज कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने खुद को कांग्रेस से पूरी तरह से आजाद करने की घोषणा कर दी जिसका अंदाजा तभी लग गया था जब गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में अपना विदाईं भाषण दिया था और प्राधानमंत्री मोदी उनके लिए आंसू बहाते दिखे थे।

गुलाम नबी आजाद का पाटा की प्राथमिक सदस्यता समेत सभी पदों से इस्तीफा देना कोईं अचानक उठाया गया कदम नहीं है। गुलाम नबी आजाद की पाटा से नाराजगी तब से ही शुरू हो गईं थी जब से पाटा आलाकमान ने उन्हें दोबारा राज्यसभा नहीं भेजने का पैसला लिया था। अभी हाल ही में उन्होंने कश्मीर में पाटा प्राचार समिति से भी इस्तीफा दिया था जिसके लिए उन्होंने पहले अपनी हामी भरी थी।

यही आनंद वुमार शर्मा ने भी किया जब पाटा ने उन्हें हिमाचल में पाटा के चुनाव समिति की कमान सौंपी तो उन्होंने भी यह जिम्मेदारी न लेते हुए इस्तीफा दे दिया। वैसे इसका भी अब इंतजार है जैसे पहले जी-23 के सदस्य कपिल सिब्बल ने पाटा से इस्तीफा देकर सपा की मदद से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा पहुंचे तो तभी लग गया था कि अब आजाद और आनंद शर्मा भी जाएंगे वैसे पंजाब से भी एक नेता के पाटा छोड़ने की चर्चाएं हो रही हैं।

आजाद ने सोनिया गांधी को भी उस समय पत्र लिखा है जब वो राहुल गांधी व प््िरायंका गांधी के साथ अपने इलाज के लिए विदेश में गईं हुईं हैं। सब जानते हैं कि उनकी तबीयत काफी समय से खराब चल रही है। गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पांच पन्नों का अपना इस्तीफा भेजा है और अपने इस्तीपे का ठीकरा राहुल गांधी पर फोड़ने की कोशिश की। उन्होंने अपने इस्तीपे में लिखा कि राहुल गांधी अनुभवहीन लोगों से घिरे हुए हैं और राहुल गांधी के अध्यक्ष (2013) बनने के बाद पुरानी कांग्रेस को खत्म कर दिया गया जिससे धीरे-धीरे पाटा के जमीनी नेता दूर हो गए।

गुलाम नबी आजाद की नाराजगी को दूर करने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने उनके करीबी रहे विकार रसूल वानी को प्रादेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया परन्तु आजाद तो 10 दिनों से अपने इस्तीपे की ड्राफ्टिंग करने में लगे थे और उन्होंने मौका चुना जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने इलाज के लिए देश से बाहर हैं।

फरवरी 2021 में राज्यसभा से अपनी विदाईं के बाद से उन्होंने सोनिया गांधी से दूरी बनानी शुरू कर दी थी और गत दो-तीन वर्षो से वो कांग्रेस नेतृत्व को खुलकर चुनौती दे रहे थे और असंतुष्ट कांग्रेसियों के समूह जी-23 के वे निर्विवाद रूप से नेता रहे हैं और उन्हीं के घर पर सभी मीटिंगें भी होती रही हैं। गुलाम नबी आजाद ने अपने इस्तीपे में लिखा कि 'बड़े अफसोस और बेहद भावुक दिल के साथ मैंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अपना आधी सदी पुराना नाता तोड़ने के पैसला किया है।'

गुलाम नबी आजाद कांग्रेस पाटा से आजाद होने के लिए जब इस्तीफा दे रहे थे तो उनको यह जरूर याद आया होगा कि कांग्रेस ने उनके करियर को कितना सजाया संवारा। शुरुआती दौर में दो साल तक जम्मू-कश्मीर युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे फिर वो लगातार 37 वर्षो तक कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रहे। इंदिरा गांधी, नरसिम्हाराव, मनमोहन सिह के वैबिनेट में वो वरिष्ठ मंत्री रहे। सात वर्षो तक राज्यसभा में नेता प्रातिपक्ष बने रहे। इसके अलावा वो जम्मूकश्मीर के मुख्यमंत्री रहे बेशक वो अपना पूरा कार्यंकाल नहीं कर सके।

30 साल बाद जब राज्य में कांग्रेस की वापसी हुईं तभी कहा जाने लगा था कि गुलाम नबी आजाद ने कश्मीर की राजनीति को दूर रहकर ही भोगा है और राज्य में इनके अपनी पाटा में ही बहुत विरोधी थे। अत: आजाद के लिए भी आसान नहीं था मुफ्ती मोहम्मद सईंद की पाटा पीडीपी के साथ साझा सरकार चलाना जिसका अनुमान पहले ही लग चुका था। आजाद ने मुफ्ती के लिए भी कईं तरह की मुश्किलें पैदा करने की कोशिश की। उनके लिए मुफ्ती को रियासत का नाकामयाब नेता साबित करना आसान नहीं था और कांग्रेस के लिए 'अभी या कभी नहीं' वाली बात थी। अत: अम्बिका सोनी, सलमान खुशाद, अहमद पटेल जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने उन्हें कश्मीर की राजनीति में उनके मन के विरुद्ध धकेल दिया। उस समय आतंकवाद का भी दौर था।

आजाद की आदत है जब वह खुद को साबित नहीं कर पाते तो दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं जैसा उन्होंने राहुल गांधी पर बयान देकर साबित किया। मुफ्ती मोहम्मद सईंद का कांग्रेस छोड़ने की बड़ी वजह गुलाम नबी आजाद थे और उन्होंने कांग्रेस छोड़कर वीपी सिह के जनमोर्चा में शामिल हो गए जो बाद में जनता दल बनी और उसमें वह वेंद्रीय मंत्री भी बने। आजाद राजनीति के बड़े खिलाड़ी हैं उन्हें जब लगा कि अब उनकी छवि खराब हो रही है तो वह फारुख अब्दुल्ला के सहयोग से राज्यसभा पहुंच गए।

खैर! कश्मीर पहुंचकर उन्होंने मुफ्ती के लिए मुश्किलें भी पैदा करने की कोशिश की मगर मुफ्ती जमीनी नेता थे। उन्होंने कांग्रेस में दो-दो गुट बना दिए। एक गुट आजाद को मुख्यमंत्री बनाने की बात करता था तो दूसरा चाहता था कि मुफ्ती मोहम्मद सईंद रियासत के लिए बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। उनको ही चलने दिया जाए परन्तु आजाद को अब जल्दी थी। अत: मुफ्ती मोहम्मद सईंद जिन्होंने 2 नवम्बर 2002 को मुख्यमंत्री का पद्भार संभाला था और 2005 तक अपना तीन साल का कार्यंकाल पूरा किया अब आईं गुलाम नबी आजाद की बारी। उन्होंने 2 नवम्बर 2005 को मुख्यमंत्री पद ग्राहण किया और 11 जुलाईं 2008 को ही वह वहां से भाग आए क्योंकि अमरनाथ की यात्रा में आतंकवादी हमला इनके कार्यंकाल में हुआ जिसकी वजह से यह एक नाकामयाब मुख्यमंत्री साबित हुए और दो साल में ही यह इस्तीफा देकर वापस आ गए। यह वही बम बम भोले था जिसके लिए प्राधानमंत्री मोदी जी आजाद की विदाईं के समय भाषण देते समय रोये थे।

बेशक आजाद की किस्मत अच्छी थी कि उनके रियासत के अध्यक्ष रहते पाटा ने अच्छा प्रादर्शन किया जबकि वो अपने यस मैन पीरजादा मोहम्मद सईंद को जेकेपीसीसी का अध्यक्ष बनाकर रिमोट से पाटा चलाते थे और फारुख अब्दुल्ला के सहयोग से राज्यसभा आ गए और दिल्ली में जम गए।

आजाद जम्मू-कश्मीर की जिम्मेदारी लेने से हमेशा बचते रहे हैं। क्योंकि उन्होंने पाटा को स्ट्रांग करने के लिए वहां वुछ नहीं किया सिवाय गुटबाजी के। जब राहुल गांधी ने उन्हें प्रादेश में पाटा को पुनर्गठन और स्ट्रांग करने की जिम्मेदारी देनी चाही तो उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि कांग्रेस का वहां जनाधार नहीं है। जब एक बड़ा नेता यह कहता है कि पाटा का रियासत में जनाधार नहीं है तो इससे साफ जाहिर है कि उसने पाटा को सशक्त करने के लिए रियासत में कोईं काम नहीं किया बस अपनी राज्यसभा की सीट पक्की की और मंत्री पद लिया।

आज जब राहुल गांधी को देश ही नहीं विदेश में भी एक गंभीर नेता के रूप में माना जाने लगा है और लोग उन्हें गंभीरता से लेते हैं जो खुलकर हर मंच पर हर सवालों का जवाब देते हैं उस समय गुलाम नबी आजाद का पाटा के नेता के लिए बचकाना शब्द का इस्तेमाल साफ जाहिर करता है वो किसकी भाषा बोल रहे हैं। यह तो सभी जानते हैं कि आजाद की पाटा छोड़ने की खिचड़ी काफी समय से पक रही थी और जैसे ही उन्हें पता चला कि 25 लाख वोटर बाहर के भी आ गए हैं जो भाजपा के समर्थक रहेंगे तो उन्होंने उपयुक्त समय समझा पाटा छोड़ने का और उनके पाटा छोड़ने की घोषणा करते ही जीएम सरोरी, हाजी अब्दुल रशीद, मोहम्मद अनीम बट्ट, गुलजार अहमद वानी और चौधरी अकरम ने भी आजाद के पक्ष में कांग्रेस पाटा से इस्तीफा दे दिया। अत: साफ जाहिर है कि आजाद अपनी अलग पाटा बनाएंगे और भाजपा के सहयोगी दल बनेंगे। (सीकि)

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