ताकि भारत दूरी बना ले रूस से
अमेरिका इस बात को अच्छी तरह जानता है कि भारत का रूस के साथ बहुत पुराना संबंध है, इसलिए दोनों देशों के बीच संबंधों में दूरी बनने में समय लगेगा। फिर भी वह कोशिश करता है कि रक्षा संबंधी भारत की जरूरतों को अमेरिका किस तरह पूरी करे ताकि नईं दिल्ली को मास्को पर निर्भर न रहना पड़े और भारत धीरे-धीरे रूस से दूरी बना ले।
स्वतंत्र कांग्रोसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) की एक रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रोस और अमेरिकी नीति-निर्माताओं के सदस्य रूस को वूटनीतिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग करने में मदद करने के लिए भारत को प्राोत्साहित करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए भारत की रूस पर निर्भरता कम करने की योजना बनाईं जा रही है। असल में सीआरएस अमेरिकी कांग्रोस का एक रिसर्च विग है, जिसमें दोनों पार्टियों डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पाटा के सदस्य शामिल होते हैं। यही विग समय-समय पर सांसदों के लिए जरूरी मुद्दों पर रिपोर्ट तैयार करता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कांग्रोस इस बात पर विचार करना चाहती है कि अमेरिका के विदेश और रक्षा जैसे द्विपक्षीय विभाग अपनी रणनीतियों में क्या बदलाव लाएं जिससे भारत और रूस की दूरी बढ़े। सीआरएस ने अपनी रिपोर्ट को 'भारत-रूस संबंध और अमेरिकी हितों के लिए निहितार्थ' शीर्षक दिया है।
सच तो यह है कि भारत ने अक्तूबर 2018 में तत्कालीन ट्रंप प्राशासन की चेतावनियों को अनदेखा करते हुए अपनी वायु रक्षा को मजबूत करने के लिए एस-400 मिसाइल प्राणाली की पांच इकाइयों को खरीदने के लिए 5 अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किया था। मिसाइलें भारत को मिलनी शुरू भी हो गईं। किन्तु अमेरिका ने भारत को अपने से दूर होने के डर से अपने काटसा कानून का इस्तेमाल नहीं किया अन्यथा एस-400 खरीदने पर तुका की भांति भारत पर भी प्रातिबंध लगा सकता था। भारत को काटसा प्रातिबंधों से छूट देने के उद्देश्य से ही अमेरिकी संसद में प्रास्ताव पारित कराया गया। इससे यह बात साफ होती है कि भारत की जरूरत अमेरिका अपने लिए कितनी ज्यादा मानता है और यह भी चाहता है कि नईं दिल्ली की निर्भरता रूस पर ज्यादा से ज्यादा कम कर दी जाए। (एसपी)